लुधियानाः कूड़े के ढेर को बना दिया खूबसूरत पार्क
तत्कालीन पार्षद ने तो दो टूक कह दिया था कि इस पार्क को विकसित ही नहीं होने दिया जाएगा।
जज्बा और हौसला हो तो असंभव कुछ भी नहीं। इसकी मिसाल है लुधियाना के 66 वर्षीय दविंदर सिंह। जिन्होंने अकेले अपने दम पर ही दुगरी सीआरपी कॉलोनी में कूड़े के ढेर वाली जगह को इतना खूबसूरत पार्क बना दिया कि आसपास के इलाके से लोग इसको देखने के लिए पहुंचने लगे। पांच सौ फीट लंबे और पचास फीट चौड़े इस पार्क के निर्माण का कारवां जो 2013 से शुरु हुआ तो ऐसा बढ़ा कि इसकी गिनती शहर के खूबसूरत पार्क में शुमार हो गई।
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इस अनूठे प्रयास के लिए उन्हें स्टेट अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है। 15 लाख रुपये की लागत से बने इस खूबसूरत पार्क में बैडमिंटन कोर्ट, सेल्फी प्वाइंट, म्यूजिक सिस्टम, स्टाइलिश बेंच, आरओ सिस्टम लगा वॉटर कूलर, सौ से अधिक किस्म के खुश्बू बिखेरते फूलों के अलावा यहां की लैंड स्केपिंग ऐसी है कि देखने वाला देखता ही रह जाए।
हमने सोचा कब्जा कर रहे हैं दविंदर
पार्क के सामने वाली साइड पर कारोबारी राजिंदर सिंह भाटिया रहते हैं। वह बताते हैं कि घर के सामने लगे कूड़े के ढेर से हम लोग परेशान थे। अक्सर निगम अधिकारियों को सिफारिश करके सफाई करवाते रहते। एक दिन देखा एक सरदार जी वहां सफाई में जुटे है। पड़ोसी ने कहा कि यह बंदा यहां कब्जा कर लेगा। पूछा तो जवाब मिला पार्क बना रहे हैं। लगातार एक महीना इनको काम करते देखा तो यकीन हो गया कि उनकी नियत ठीक है। फिर हम लोग भी मदद करने लगे। पहले सपरिवार तो क्या अकेले भी इस ओर नहीं जाते थे। अब इलाके के लोग फैमिली गेट टूगेदर भी यहां करने लगे। दविंदर सिंह के प्रयास ऐसे थे कि निवासियों ने सर्वसम्मति से इस पार्क का नाम उनके सरनेम से सोनी पार्क कर दिया।
पार्क में व्यक्ति को हार्ट अटैक आया तो किया फैसला
हार्ट पेंशट दविंदर सिंह ने घर के सामने कूड़े के ढेर को अपने दम पर ही खूबसूरत पार्क में बदल दिया। पांच साल पहले बदबू से घिरी इस जमीन पर नशेड़ियों के जमावड़े से पंद्रह लाख रुपये खर्च करके बनाए गए पांच सौ फीट लंबे और पचास फीट चौड़े इस पार्क की खूबसूरती की चर्चा पूरे लुधियाना में है। पार्क बनाने का किस्सा भी खूब रोचक है।
दविंदर सिंह हार्ट पेंशेट हैं और डॉक्टर ने उन्हें रेगुलर सैर की सलाह दी तो वह घर से चार किलोमीटर दूर लैय्यर वैली में सैर के लिए जाने लगे। एक दिन वहां एक व्यक्ति को हार्ट अटैक आ गया तो उसे पहचानने वाला कोई नहीं था। जेब तलाशने पर भी कोई पता नहीं मिल पाया। घर के आसपास ही सैर करने का निर्णय लिया। वहां कोई पार्क ही नहीं था। ग्रीन बेल्ट को लोगों ने कूड़े के ढेर में बदल दिया था। दविंदर सिंह ने इसी को साफ करने की ठानी जो अब खूबसूरत पार्क बन चुका है।
अब कई रिहायशी एसोसिएशन भी पार्क की सलाह के लिए बुलाने लगीं
दविंदर सिंह के पार्क की चर्चा दुगरी से फैलती हुई शहर भर में फैल गई। जवाहर नगर कैंप में यमला जट्ट पार्क का निर्माण शुरू हुआ तो निवासियों ने गाइडलाइन के लिए दविंदर सिंह को आमंत्रित किया। दविंदर ने भी निराश नहीं किया। पार्क के लिए सलाह तो देते ही थे साथ ही निर्माण प्रक्रिया के दौरान भी खूब समय दिया। यह तो एक मिसाल भर है। शहर के विभिन्न हिस्सों की रेजिडेंट एसोसिएशन अपने इलाके के पार्क विकसित करने के लिए इनसे सलाह मशविरा करती हैं।
पार्क निर्माण से चिढ़े लोगों ने किया तंग, तीन महीने के लिए छोड़ा शहर
पार्क निर्माण में दविंदर सिंह ने श्रम भी लगाया और धन भी, लेकिन राह इतनी आसान नहीं रही। कुछ लोगों को यह प्रयास रास नहीं आया। एक व्यक्ति ने आरटीआई लगाकर पेड़ काटने का ही आरोप जड़ दिया। कुछ मुखर होकर विरोध में उतर आए। परेशान दविंदर सिंह ने शहर ही छोड़ दिया। तीन महीने अपने रिश्तेदारों के पास मुंबई चले गए। इस दौरान पार्क की हालत खस्ता हो गई।
निगम साथ देता तो चंद दिनों में ही और बिखर सकती थी खूबसूरती
दविंदर सिंह को गिला है निगम और प्रशासन से। अब जब पार्क विकसित हो गया तो निगम सहयोग के लिए आगे आ गया, लेकिन एक समय था जब निगम और प्रशासन पार्क बनाने की प्रक्रिया में सहयोग की बजाए अड़ंगा ही डाल रहा था। तत्कालीन पार्षद ने तो दो टूक कह दिया था कि इस पार्क को विकसित ही नहीं होने दिया जाएगा। दविंदर कहते है कि जो सरकार का काम है अगर वह लोग खुद कर रहे हैं तो विभागों को इसमें रूकावट डालने की बजाए इसे प्रोत्साहित करना चाहिए।