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राउंड टेबल कांफ्रेंसः कारपोरेट सेक्टर लुधियाना के विकास में योगदान को तैयार

आरटीसी में उपस्थित एक्सपर्टस का मानना था कि ज्यादातर राजनेता अपने क्षेत्र के विकास को ही तवज्जो देते हैं, जबकि उन्हें पूरे शहर के विकास को एक रूप से देखना चाहिए।

By Gaurav TiwariEdited By: Published: Sun, 02 Sep 2018 06:01 AM (IST)Updated: Thu, 06 Sep 2018 12:57 PM (IST)
राउंड टेबल कांफ्रेंसः कारपोरेट सेक्टर लुधियाना के विकास में योगदान को तैयार

जागरण संवाददाता, लुधियाना। पंजाब के औद्योगिक राजधानी लुधियाना के सिलसिलेवार विकास के लिए यहां का कारपोरेट सेक्टर, एनजीओ व अन्य संगठन आर्थिक योगदान के लिए तो तैयार हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें कारगर योजना का इंतजार है। उन्हें इस बात का भी डर है कि उनके द्वारा सीएसआर के तहत दिए जाने वाले फंड का दुरुपयोग न हो, इसलिए वह खुलकर सामने नहीं आते। यह बातें दैनिक जागरण के 'माय सिटी, माय प्राइड’ अभियान के तहत शनिवार को हुई राउंड टेबल कांफ्रेंस में सामने आईं।

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आरटीसी में उपस्थित एक्सपर्टस का मानना था कि ज्यादातर राजनेता अपने क्षेत्र के विकास को ही तवज्जो देते हैं, जबकि उन्हें पूरे शहर के विकास को एक रूप से देखना चाहिए। शहर में 95 पार्षद हैं, लेकिन वह अपने ही इलाके का विकास पूरी तरह से नहीं करवा पाते। उन्हें सिर्फ अपने चहेतों के काम करवाने की चिंता रहती है। लोग शहर का विकास करने को तैयार हैं, लेकिन नगर निगम तैयार नहीं। इतना ही नहीं, कई विकास कार्य कारपोरेट सेक्टर करवाता है लेकिन उसके रखरखाव को लेकर निगम के ढुलमुल रवैये से उद्यमी हाथ खींच लेते हैं। कई बार विकास के लिए निगम की अनुमति तक नहीं मिलती।

दैनिक जागरण के सिटी कार्यालय में आयोजित आरटीसी में उपस्थित एक्सपर्टस ने कहा कि वह विकास में योगदान देने को तैयार हैं और उनके पास कई योजनाएं भी हैं। आरटीसी में लुधियाना स्मार्ट सिटी के डायरेक्टर संजय गोयल, कोटनीस अस्पताल के डा. इंदरजीत ढींगरा, अन्न जल सेवा सोसाइटी के शिव राम सरोय, एनजीओ हितैषी के प्रधान सुनील प्रभाकर, एसपीएस अस्पताल की डा. शिवानी टंडन, शिक्षा के क्षेत्र में योगदान करने वाले डा. सुरजीत सिंह, इंजीनियर एसोसिएशन के कपिल शर्मा और कुलवंत सिंह मुख्य रूप से उपस्थित थे। 

रेडिमेड सोल्यूशन से नहीं होगा शहर का विकास
लुधियाना स्मार्ट सिटी लिमिटेड के डायरेक्टर संजय गोयल ने कहा कि शहर को बेहतर ढंग से लिवेबल बनाने के लिए शहर के आम जन की भागीदारी अनिवार्य है। इसके लिए शहर के अपने अपने क्षेत्र में माहिर लोगों की स्थाई सिटीजन कमेटी बनानी होगी। यह कमेटी सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर शहर के विकास के लिए लंबी अवधि के लिए प्लानिंग करे। मसलन शहर का मास्टर प्लान कम से कम साल 2050 तक का बनाया जाए। इसे पूरा करने के लिए एनजीओ, कारपोरेट्स, सामाजिक संगठन समेत हर वर्ग का सहयोग लिया जाए। उपर से आ रहे रेडिमेड सोल्यूशन से शहर में सुधार नहीं होगा। समस्याओं का स्थाई हल नहीं होगा और लोग खामियाजा भुगतने को मजबूर हैं। शहर को स्मार्ट बनाने की बात की गई है, लेकिन उस दिशा में समयबद्ध तरीके से ठोस उपाय नहीं किए जा रहे हैं। लुधियाना में विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने के लिए फंड की कमी नहीं है, लोग सीएसआर में फंड देने को तैयार हैं, लेकिन तालमेल की कमी है। शहर के विकास के लिए पूरे शहर की एकबार में ही लांग टर्म प्लानिंग कर उस पर काम करना होगा। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है।

भरोसे की कमी, योगदान को तैयार
एनजीओ हितैषी के प्रधान सुनील प्रभाकर ने कहा कि निगम और जनता के बीच आपसी तालमेल और भरोसे की कमी के कारण ही शहर का सही विकास नहीं हो रहा है। हालत यह है कि लोग मिल कर शहर के विकास के लिए फंड लगाने को तैयार हैं, लेकिन निगम से सहयोग नहीं मिल पा रहा है। यदि लुधियाना को वाकई में बेहतर बनाना है तो मोहल्ला कमेटियां बना कर लोगों को जिम्मेदारी देनी होगी। साथ ही शहर के कल्याण के लिए होने वाले तमाम कामों को निगम का भरपूर सहयोग अनिवार्य है। हालत यह है कि निगम शहर के सिर्फ दस फीसद लोगों को ही शुद्ध पानी दे पा रही है। जबकि शहर में न अच्छी सड़कें हैं और न ही मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर। हितैषी ने बरसाती पानी की जमीन में री-चार्जिंग के लिए निगम से इजाजत मांगी थी, लेकिन मंजूरी न मिली। ऐसे में निजी संस्थाएं आगे अपने कदम नहीं बढ़ा सकती। हितैषी ने आपस में मिल कर कई सड़कों में पड़े गड्डे तक भरे। शहर में 95 पार्षद हैं, लेकिन उनकी कोई जिम्मेदारी तय नहीं है। उनको इलाके के विकास में जनसहयोग के साथ कदम उठाने होंगे।

सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे
एसपीएस अस्पताल की एचओडी एंड कोर्डिनेटर (क्वालिटी एंड ऑपरेशन) डॉ. शिवानी टंडन कहती हैं कि यदि बदलाव लाना है, तो हम सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे। जिसमें सरकार का अहम रोल है। सरकार ऐसी एनजीओ, औद्योगिक इकाईयों और लोगों को प्रोत्साहित करें जो अलग अलग क्षेत्रों में बदलाव के लिए कार्य कर रहे हैं। एसपीएस अस्पताल द्वारा स्वस्थ समाज की स्थापना के मिशन के तहत स्कूलों में हेल्दी किड्स कैंपेन चलाकर हाइजीन के प्रति जागरूकता फैलाईं जा रही है। थैलासीमिया के बच्चों को गोद लेकर उनका इलाज करवाया जा रहा है। लोगों को सस्ता इलाज उपलब्ध करवाने के लिए फ्री मेडिकल चेकअप कैंप आयोजित किए जा रहे हैं। कई प्रमुख चौकों का सौंदर्यीकरण किया जा रहा है। यह प्रयास आगे भी जारी रहेंगे। स्कूलों गंदगी व मच्छरों की वजह से होने वाली बीमारियों को लेकर वर्कशाप करवाई जाएंगी। महिलाओं को खुद की सेहत के प्रति जानकारी देने के लिए कैंप लगाए जाएंगे।

ड्रग्स खत्म करने को तैयार
कोटनिस एक्यूपंक्चर अस्पताल के डायरेक्टर इंद्रजीत ढींगरा ने कहा कि वर्तमान परिवेश में पंजाब में नशा सबसे बड़ी समस्या है। युवा सिंथेटिक ड्रग्स की चपेट में आकर मर रहे हैं। क्योंकि ग्राउंड लेवल पर नशे की समस्या को खत्म करने के लिए काम नहीं हो रहा है। एसी कमरों में बैठकर योजनाएं बन रही हैं। जबकि जो एनजीओ नशे के खिलाफ काम कर रही है, उन्हें किनारा कर दिया गया है। नशे की समस्या तब तक खत्म नहीं होगी, जब तक पब्लिक पाटर्नरशिप के तहत काम नहीं होगा। चाइना में जो तरक्की हुई है, वह पब्लिक पाटनरशिप में ही हुई है। वह भी सालों से नशे के खिलाफ जागरूकता के लिए कार्य कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे। उनकी ओर से आने वाले दिनों में स्कूल, कॉलेज व इंस्टीट्यूट में सेमिनार व वर्कशाप के जरिए बच्चों व युवाओं को जागरूक किया जाएगा।

मंत्री विधायकों को खुश करने के लिए न बने प्लानिंग
कौंसिल ऑफ इंजीनियर्स के अध्यक्ष कपिल कुमार का कहना है कि शहर के विकास के लिए अफसरों की अहम भूमिका होती है। लेकिन ज्यादातर अफसर जल्दी जल्दी बदल जाते हैं। इससे शहर के विकास की सही प्लानिंग नहीं हो पा रही। शहर के विकास के लिए सिटीजन कमेटी बने जिसमें इंफ्रास्ट्रक्चर से संबंधित एक्सपर्ट हों। प्रोजेक्ट तैयार करने से पहले कमेटी की राय ली जाए और कमेटी विकास प्रोजेक्टों को सुपरविजन करे। उनका कहना है कि शहर के विकास के लिए नगर निगम अगर उनकी कौंसिल से कोई सलाह लेना चाहती है तो वह फ्री में देने को तैयार हैं। उन्होंने कहा निगम अफसर असल में नहीं चाहते कि शहर के लोगों की भागीदारी हो। प्रोजेक्ट की प्लानिंग शहर की वर्तमान और भविष्य की जरूरतों को देखकर की जाए, न की मंत्री और विधायकों को खुश करने के लिए।

हम देंगे रीचार्ज वेल लगाने का डिजाइन
इंजीनियर कुलवंत सिंह का कहना है कि वाटर लॉगिंग की समस्या से शहर जूझ रहा है। वाटर लॉगिंग की वजह से सड़कें टूट रही हैं। निगम को हर साल करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है और शहरवासियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। कुलवंत सिंह का कहना है इंजीनियर्स नगर निगम को रेनवाटर रीचार्ज वेल का डिजाइन फ्री में देने को तैयार है। साथ ही जो संस्थाएं वेल बनवाना चाहती हैं इंजीनियर्स उनको सहयोग करेगी और वेल निर्माण कार्य का पूरा सुपरविजन करेगी। ताकि तकनीकी तौर पर कोई खामी न रहे। उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले वह रिचार्ज वेल के लिए अपना प्रोजेक्ट लेकर नगर निगम अफसरों के पास गए थे लेकिन निगम अफसरों ने इस पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। उन्होंने कहा कि अगर कोई संस्था आगे आती है तो वह उसे पूरा तकनीकी सहयोग देंगे।

निशुल्क खाने के साथ और भी हैं योजनाएं
अन्न जल सेवा सोसायटी के प्रधान शिवराम सरोए ने कहा कि सिविल अस्पताल में उनकी संस्था प्रतिदिन पांच सौ से अधिक जरुरतमंदों तक खाना पहुंचा रही है। लेकिन हमारी संस्था का मानना है कि अगर लोगो को बीमारियों के प्रति सही से जागरुक कर दिया जाए तो मरीजों की संख्या में कमी हो सकती है। इसी के चलते हम लोग सामाजिक दायित्व का निर्वाह करते हुए निशुल्क खाना तो दे ही रहे है, वहीं सिविल अस्पताल में मरीज व उनके परिजनों को बीमारियों के प्रति जागरुक भी कर रहे है कि कैसे बीमारी से बचा जा सकता है। अभी तक हमारा कार्य सिविल अस्पताल तक सीमित है। अगर सरकार मदद करें तो इसका दायरा हम शहर के अन्य अस्पतालों तक भी बढ़ा सकते है। हमारे वांलटियर मरीजों व उनके परिजनों को समझाते भी है और साथ ही कुछ लिटरेचर हमने प्रिंट करवा रखे है वह भी उनको बांटते है। अगर सरकार से आर्थिक मदद मिले तो इस मिशन को और आगे बढञाया जा सकेगा।

सरकार साथ दे तो छात्रों की संख्या डबल कर दें
अंबेडकर वेलफेयर सोसायटी के चेयरमैन डाक्टर सुरजीत सिंह ने कहा कि उनकी संस्था 265 बच्चों को प्राइमरी शिक्षा दिलवाने में सहयोग दे रही है। तीन बच्चों से शुरु किया कारवां अब 265 तक पहुंच गया है। अच्छे नंबर लेने वाले बच्चों की हायर एजुकेशन का प्रबंध भी हम लोग करते है। इसके लिए मापदंड बनाए गए है कि 80 प्रतिशत से अधिक नंबर लेने वालों की ही मदद हम लोग करते है। संस्था का दायरा सीमित है। हम लोग चाह कर भी और छात्रों की मदद में असहाय महसूस करते है। कई बार निर्णय लिया कि 80 प्रतिशत के पैमाने को नीचे लाकर 70 प्रतिशत कर दिया जाए। पर सीमित साधन आड़े आते है। अगर इस मामले में सरकार मदद करें तो इसका दायरा बढ़ाकर और बच्चों तक भी इसका लाभ पहुंचाया जाता है। एक और बात कि सरकारी शिक्षण संस्थानों में पब्लिक पार्टीसिपेशन बढ़ानी चाहिए। अभी बहुत से काम है जो सिर्फ दस्तावेजों में ही हो रहे है। पब्लिक पार्टीसिपेशन की सूरत में इस पर भी लगाम लगेगी।


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