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सच्ची सांझ सेवा केंद्र चला रहा 'हुनर का लंगर', दिव्यांग को बना रहे आत्म निर्भर

जिन मानसिक व शारीरिक रूप से दिव्यांग बच्चों को समाज ने अलग किया था, वही बच्चे आज हुनरमंद होने के साथ आत्म निर्भर भी होने लगे हैं।

By Krishan KumarEdited By: Published: Wed, 26 Sep 2018 06:00 AM (IST)Updated: Wed, 26 Sep 2018 06:00 AM (IST)
सच्ची सांझ सेवा केंद्र चला रहा 'हुनर का लंगर', दिव्यांग को बना रहे आत्म निर्भर

जागरण संवाददाता, लुधियाना। कहीं रोटी, राशन, कपड़े और कहीं किताबों का लंगर लगाया जाता है। मगर शहर की एक मात्र संस्था सच्ची सांझ सेवा केंद्र ने अपनी तरह का अनोखा लंगर शुरू किया। नाम रखा 'हुनर का लंगर'। लंगर में पेट भरने की बजाय बच्चों के हाथों में हुनर भर दिया। नतीजा यह रहा है कि जिन मानसिक व शारीरिक रूप से दिव्यांग बच्चों को समाज ने यह कह कर खुद से अलग थलग कर दिया था कि वो कुछ नहीं कर सकते, वही बच्चे आज हुनरमंद होने के साथ आत्म निर्भर भी होने लगे हैं। उनके हाथ से बनाई गई पेंटिंग और राखियों को लोग उत्साह के साथ खरीदने आते हैं। शादी और त्यौहार के अवसर पर मेहंदी लगवाने के लिए महिलाएं विशेष रूप से उनके पास पहुंचती हैं।

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सेवा केंद्र के दस कार्यकर्ता पूरी मेहनत के साथ बच्चों को शिक्षित करने के लिए जुड़े हुए हैं। मगर हुनर के लंगर लगाने का पूरा श्रेय सच्ची सांझ सेवा केंद्र की प्रधान मीनाक्षी वर्मा को जाता है। जो तन मन के साथ उन बच्चों को ट्रेनिंग देने में जुटी हुई हैं। बातचीत के दौरान मीनाक्षी ने बताया कि उनकी संस्था एक जोत विक्लांग स्कूल के साथ मुस्कान स्पेशल स्कूल के बच्चों को आर्ट वर्क की ट्रेनिंग दे रही है। जो बच्चे पहले खुद अपने हाथ से खाना नहीं खा पाते थे। अब वो अपने हाथ से पेंटिंग, क्ले मॉडल तथा राखियां बनाते हैं। उनसे लोग उनसे मेहंदी लगवाने के लिए आते हैं। उनके हाथ से बने आर्ट एंड क्राफ्ट के स्टॉल लगाए जाते हैं। जिससे उनकी आमदनी का जरिया शुरू हो गया।

मीनाक्षी ने कहा कि लोग भले ही बेटा व बेटी को एक समान होने का दावा करते रहें। मगर समाज में आज भी बेटी को बेटे के बाद ही देखा जाता है। बेटी से ज्यादा बेटे की शिक्षा पर ध्यान दिया जाता है। उनके साथ भी ऐसा ही हुआ था। जिसके बाद उन्होंने ठान ली कि कुछ करके दिखाना है। उन्होंने पेंटिंग्स, आर्ट एंड क्राफ्ट तथा ब्यूटीशियन के कोर्स किए। पहले वो निजी संस्थानों में टीचर की जॉब करती थी। मगर जब विक्लांग बच्चों को हुनर सिखाने का तय हुआ तो उन्होंने वो नौकरी छोड़ दी। वो बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार काम सिखाती हैं। उनके काम सिखाने के ढंग से प्रभावित हुए 'इस्कॉन' संस्था ने भी उन्हें अपने स्कूल में ट्रेनिंग देने के लिए आमंत्रित किया है।


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