भक्ति में श्रद्धा व समर्पण होना चाहिए : साध्वी रत्न संचिता
धर्म सभा में साध्वी रत्न संचिता ने कहा कि भगवान महावीर से भी पूछा गया कि धर्म कहां पर है? प्रभु ने कहा कि आज्ञा में ही धर्म होता है? जो गुरु की भगवान की आज्ञा में होता है। वह धर्म में है।
संस, लुधियाना : तपचंद्रिका श्रमणी गौरव महासाध्वी वीणा महाराज, नवकार आराधिका महासाध्वी सुनैया म., प्रवचन भास्कर कोकिला कंठी साध्वी रत्न संचिता महाराज, विद्याभिलाषी अरणवी म., नवदीक्षिता साध्वी अर्शिया, नवदीक्षिता आर्यनंद ठाणा-6 एस एस जैन स्थानक रुपा मिस्त्री गली में सुखसाता विराजमान है। धर्म सभा में साध्वी रत्न संचिता ने कहा कि भगवान महावीर से भी पूछा गया कि धर्म कहां पर है? प्रभु ने कहा कि आज्ञा में ही धर्म होता है? जो गुरु की भगवान की आज्ञा में होता है। वह धर्म में है। अरे एक छोटा सा बालक है, उसे उसके मां बाप आसमान में उछालते है। पर वो बच्चा रोने की बजाए हंसता है, उसे इस चीज का डर नहीं है? कि मैं नीचे गिर जाऊंगा। उसे भरोसा है? कि मां बाप मुझे गिरने नहीं देंगे। हमारी भक्ति भी ऐसी ही हो। उसे बच्चे की तरह भक्ति भाव प्रभु व गुरु पर विश्वास हो। गुरुदेव ने कहा एक बंदरी का बच्चा होता है। एक बिल्ली का बच्चा। दोनों की मां अपने-2 बच्चों को उठाती है, पर बिल्ली के बच्चे का पूरा समर्पण है, पर बंदरी के बच्चें को मां पर भरोसा नहीं है? वो अपनी मां की छाती से चिपक जाता है। अगर भक्ति करनी है? तो बिल्ली के बच्चे जैसी हों न कि बंदरी के बच्चे जैसी। यहां प्रश्न खड़ा होता है? कि भक्ति क्या है? भक्ति कैसे करें? भक्ति में श्रद्धा है, समर्पण है, अपने आप को अपने आराध्य के प्रेम में प्यार में भुला देना खो जाना भक्ति है। इस दौरान महासाध्वी वीणा महाराज ने कहा कि संयम में रहना सीखो। संयम में रहने से आत्मा व इन्द्रियां हमारे वश में हो जाती है। समय का अर्थ होता है? आत्म कंट्रोल। संयम ही जीवन होता है।