..जब भगवान महावीर को विरोधों का सामना करना पड़ा था
भगवान महावीर आत्म साधना में मौन रहते थे और स्तृति निदा में समभाव रखते थे। एक बार वे मोराक नामक ग्राम में दुजित नामक कुलपति के आश्रय में चातुर्मास के लिए ठहरे।
लुधियाना : इतिहास साक्षी है कि जब भी कोई महापुरुष गृह त्याग कर सत्य की खोज के लिए प्रस्थान करता है तो उसके मार्ग में बाधाएं आती ही हैं। भगवान महावीर भी इसके अपवाद नहीं थे। भगवान महावीर आत्म साधना में मौन रहते थे और स्तृति निदा में समभाव रखते थे। एक बार वे मोराक नामक ग्राम में दुजित नामक कुलपति के आश्रय में चातुर्मास के लिए ठहरे। दुजित कुलपति भगवान महावीर के पिता सिद्धार्थ के मित्र थे। भगवान महावीर समाधि स्थ खडे़ थे। कुटिया घास फूस की बनी थी। गायें आई और कुटिया को उजाड़ गई। जब कुलपति को पता चला, तो उन्होंने महावीर को बुरा भला कहा कि आप कैसे तपस्वी है जो आसपास की रक्षा भी नहीं कर सकते। महावीर ने संकल्प किया कि वे ऐसे स्थान पर नहीं ठहरेंगे, जहां दूसरों से कष्ट हो। भगवान महावीर को अज्ञानी लोग कष्ट देते और विरोध करते थे। वे किसी पर द्वेष नहीं करते थे। चंडकौशिक नाग ने उनके पांवों पर दंशाघात डंक किया, परंतु उसे चेति-चेति कहकर सावधान किया। संगम नामक देव ने उन्हें अनेकों कष्ट दिए। इसी तरह एक ग्वाले ने उन्हें असहाय यातनाएं दी, परंतु महावीर तो महावीर थे। उन्होंने सभी को क्षमा कर दिया। भगवान महावीर ने यज्ञों में पशु-बलि का विरोध किया और याज्ञिकों ने महावीर को पाखंडी और अधर्मी कहा, परंतु उन्होंने समभाव से सब कुछ सहन किया। आजीवक संप्रदाय के प्रवर्तक गोशालक ने महावीर के ऊपर तेजोलेश्या से उद्वार किया, परंतु महावीर पर इसका प्रभाव न पड़ा। भगवान महावीर ने सभी विरोधों के बावजूद लोगों में यह संदेश दिया कि दूसरों को क्षमा करना सबसे बड़ा धर्म है।
- साहित्य रत्न डा. मुलख राज जैन