जप, तप व स्वाध्याय का सुमेल है, चातुर्मास पर्व
पर्व दो प्रकार के होते है- लौकिक और लोकोत्तर। लौकिक पर्व का अर्थ होता है-हर्ष उल्लास और आमोद प्रमोद। वह शरीर की सीमा में बंद रहता है।
कृष्ण गोपाल, लुधियाना : पर्व दो प्रकार के होते है- लौकिक और लोकोत्तर। लौकिक पर्व का अर्थ होता है-हर्ष, उल्लास और आमोद प्रमोद। वह शरीर की सीमा में बंद रहता है। शरीर में स्थित चेतनामय ज्योति तक वह नहीं पहुंच पाता। लौकिक पर्व मनुष्य के शरीर का ही पोषण करता है, उसके मन और आत्मा का नहीं। इसके विपरीत लोकोत्तर पर्व शरीर की सीमाओं से ऊपर ज्योतिर्मय चेतना के दिव्य लोक में पहुंच कर मनुष्य को। आत्म-रत, आत्मा संलग्न और आत्म प्रिय बनता है। चातुर्मास में आठ दिवसीय पर्यूषण पर्व में हम सभी को धर्म की स्थापना के साथ जप, तप में सम्मालित होना चाहिए, ताकि सभी का भला हो सके। चातुर्मास भी इसका ही एक उदाहरण है, जिसमें जप, तप व स्वाध्याय का सुमेल मिलता है।
::::::::: भगवान महावीर के अहिसा दर्शन का सम्मान
मोती लाल जैन, अश्वनी जैन बिटटू, अरिम जैन ने कहा कि भगवान महावीर के अहिसा दर्शन का सम्मान है। धर्म हमें जोड़ना सिखाता है, तोड़ना नहीं। धर्म के क्षेत्र में हिसा घृणा भय व नफरत का कोई स्थान नहीं है। आज अपेक्षा है धर्म को आध्यात्म विज्ञान व समाज सेवा से जोड़ा जाएं। उन्होंने कहा कि शारीरिक व्याधियों, मन के संक्लेश आत्मा को कर्मों से भारी बनाकर बैठे हैं, यह एक भव नहीं, अनेक भवों से दुख भरे संसार में घूम रहे हैं, इनसे पार पाना हो तो सदगुरुओं का संयोग जरूरी है। यह सब चातुर्मास के संगम में मिलता है। गुरु व शिष्य का मिलन का पर्व
नरेश जैन शारु, संजीव जैन टोनी, नंद कुमार जैन ने कहा कि गुरु के बिना ज्ञान, अनुशासन और भक्ति नहीं मिलती और इनके अभाव से ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। चातुर्मास की चार माह की सभा में गुरुओं व शिष्यों का मिलन होता है, जिसका लाभ इस चार माह में सभी श्रावक श्राविकाएं ग्रहण करती है यह सब कुछ संतों के संगम व उनके दर्शन से मिलता है। महापर्व साधु साध्वियों आध्यात्मिता बनाएं रखने की प्रेरणा देते हैं
महेंद्र पाल जैन, विनीत जैन, रमांकात जैन, संदीप बेदी ने कहा कि इस महापर्व में साधु-साध्वियां समाज में परस्पर भाईचारा, सदभावना और आध्यात्मिता बनाएं रखने की प्रेरणा देते है। चातुर्मास काल आत्म जागृति का कारण होता है। चार महीनें का सुदीर्घ समय जिसमें हमें पूजा संत-मुनियों की संगति करने का स्वर्ण अवसर मिला है। जब हम किसी पूज्य संत महात्मा के पास जाते है। उनकी संगति करते है तो वह हमारा समय महामूल्यवान बनता है।