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संयम और शाकाहार से कोरोना से बचाव संभव

मुंह पर पट्टी बांधना मांसाहार से परहेज शारीरिक दूरी बनाए रखना। यह जैन समुदाय के हजारों वर्ष के इतिहास में एक तपस्या का हिस्सा रहा है। प्रथम देव ऋषभ देव से आरंभ हुई यह तपस्या 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर से लेकर आज तक जैन मुनि इसका अनुसरण कर रहे है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 29 May 2021 06:22 AM (IST)Updated: Sat, 29 May 2021 06:22 AM (IST)
संयम और शाकाहार से कोरोना से बचाव संभव
संयम और शाकाहार से कोरोना से बचाव संभव

कृष्ण गोपाल, लुधियाना : मुंह पर पट्टी बांधना, मांसाहार से परहेज, शारीरिक दूरी बनाए रखना। यह जैन समुदाय के हजारों वर्ष के इतिहास में एक तपस्या का हिस्सा रहा है। प्रथम देव ऋषभ देव से आरंभ हुई यह तपस्या 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर से लेकर आज तक जैन मुनि इसका अनुसरण कर रहे है। यह कहना है साहित्य रत्न डा. मुलख राज जैन का। डा. जैन का कहना है आज कोरोना महामारी के कारण विश्व भर में त्राहिमाम मचा है। मनुष्य अपनी अज्ञानता और अमर्यादित जीवन शैली के कारण कई सदियों से ऐसी महामारियों के प्रकोप का शिकार होता रहा है। जैन धर्म के भगवान ऋषभ देव से लेकर भगवान महावीर तक के तीर्थंकरों ने मानव मात्र के कल्याण के लिए संयम, शाकाहार और परस्पर सात्विक सदव्यवहार की जो गवेषणाएं की थी वो आज भी समाचीन है। जैन तीर्थंकरों ने जीवन को संयमित और शाकाहार को अपनाने पर बल दिया है।

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आचार्य डा. शिवमुनि के अनुसार जैन परंपरा में भगवान महावीर स्वामी का संदेश है हिसा छोड़कर अहिसा को अपनाना, चाहे वो मनुष्य हो या कोई जीव जंतु। उनको मारना नहीं, बचाना हमारा कर्तव्य है, इसी भावना को लेकर जैन परंपरा चल रही है जिसका आज दुनिया संज्ञान ले रही है।

गच्छाधिपति आचार्य नित्यानंद सूरी महाराज ने कहा कि जैन धर्म के इन्हीं नियमों को भारत सरकार बार बार जन हित में जारी कर रही है। लाकडाउन एक तरह का एकांतवास ही है, जो जैन धर्म की साधना का ही महत्वपूर्ण अंग है। आज इस विश्व व्यापी आपदा से बचने का यही उपाय है कि हम धर्म के चिरस्थायी नियमों का पालन करें और अपने तीर्थंकरों के बताएं मार्ग का अनुसरण करें।

उपाध्याय जितेंद्र मुनि ने कहा कि जैनाचार्यों और जैन मुनियों ने सैकड़ों वर्ष पूर्व मुंह ढांप कर बात करने (अर्थात मास्क पहनना) जीवन में मर्यादा रखने तथा मांसाहार से बचने का संदेश दिया है। आज विश्व भर में उन्हीं नियम का पालन करने पर बल दिया जा रहा है। संतजनों ने तपस्या भाव के रुप इसे अपनाया था। यदि हम अपने देश को इस महामारी के संकट से सुरक्षित रखना चाहते है तो अपने महापुरुषों के बताएं मार्ग पर चलना पड़ेगा। सारा विश्व एक महान संकट में से गुजर रहा है। हमने प्रकृति के शाश्वत नियमों से खिलवाड़ किया और मर्यादाएं भंग की है। इसलिए हम घोर संकट में घिर गए है।


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