सनातन धर्म की परंपरा में दो, जैन समुदाय में चार माह का होता चातुर्मास
जैन धर्म में विशेष प्रकार की साधना एवं धर्माराधना का चयन एक ही स्थान पर चार मास तक ठहरने को चातुर्मास की संज्ञा दी गई है। सनातन परंपरा में भी चातुर्मास की परंपरा है परंतु अब यह दो मास के लिए होता है परंतु जैन परंपरा में चातुर्मास चार का ही होता है।
कृष्ण गोपाल, लुधियाना : जैन धर्म में विशेष प्रकार की साधना एवं धर्माराधना का चयन एक ही स्थान पर चार मास तक ठहरने को चातुर्मास की संज्ञा दी गई है। सनातन परंपरा में भी चातुर्मास की परंपरा है, परंतु अब यह दो मास के लिए होता है, परंतु जैन परंपरा में चातुर्मास चार का ही होता है। इस बार 23 जुलाई को जैन स्थानकवासी, मंदिर मार्गीय व तेरापंथ समाज का एक ही साथ चातुर्मास सभा प्रारंभ हो गई, इससे पहले कभी जैन स्थानकवासी, मंदिर मार्गीय की व कभी तेरापंथ व जैन स्थानकवासी व मंदिर मार्गीयों के बीच होती रही है, लेकिन तीनों समुदाय का एक साथ चातुर्मास सभा का प्रारंभ होना सभी के लिए आपसी प्रेम, भाईचारे व सदभावना का मेल बढे़गा।
::::::::::::::
संयम, त्याग और अहिसा का संदेश देता है चातुर्मास
राकेश जैन लक्की, अशोक जैन, सुशील जैन ने कहा कि चातुर्मास में तप, जप, संयम, त्याग और अहिसा आदि के संदेश के साथ-साथ युवा पीढ़ी को सामाजिक एकता और राष्ट्रीय उत्थान का पाठ भी पढ़ा सकते हैं। आधुनिक युग संदर्भ में यह अधिक उपादेय है। चातुर्मास में महापर्व संवत्सरी के लिए जैन बंधु जप, तप, स्वाध्याय के साथ-साथ अनेक अनुष्ठानों का पालन भी करते है। यह महापर्व परस्पर प्रेम, भाईचारे और सदभावना का संदेश भी लाता है। स्वाध्याय तप त्याग की क्रिया से मिलता है धर्म का लाभ
प्रेमचंद जैन, अमित जैन, नीरज जैन ने कहा कि हमने सारे चातुर्मास में कितना स्वाध्याय क्रिया, कितना तप-त्याग क्रिया, समाज की कितनी सेवा की और हमारे जीवन में कितना परिवर्तन आया। यदि हम इन चातुर्मासों में से कुछ सीख ले सकें और अपने परिप्रेक्ष्य को स्वच्छ, सुंदर और स्वस्थ बनाकर अपने और दूसरों के जीवन में सुख शांति भर सकेंगे तो मेरा मानना है कि हमारा चातुर्मास सफल होगा। भयमुक्त व शाकाहार के संदेश से प्रेरित है पर्व
नीरज आहुजा बूटा, नरभूषण जैन, कुलदीप जैन, फूलचंद जैन शाही लिवास ने कहा कि जैन धर्म में चातुर्मास की परंपरा किसी औपचारिकता का निर्वाह करने के लिए नहीं है, अपितु सामाजिक उत्थान और अध्यात्म को प्रश्रय देने के उद्देश्य से किया जाता है। हमारे साधु-साध्वियां लोगों को भगवान महावीर के संयम, मर्यादा और शाकाहार का संदेश देकर उन्हें भयमुक्त करने का भागीरथ प्रयत्न कर सकते है। चातुर्मास को वर्षावास भी कहा गया है।