संसार को पकड़ा है, तो छोड़ना भी हमें ही पडे़गा : साध्वी प्रीति
साध्वी प्रीति सुधा श्री म. सा. साध्वी प्रीति यशा श्री म. आदि ठाणा-3 ने प्रवचन किया।
संस, लुधियाना : वर्तमान गच्छाधिपति शांतिदूत जैनाचार्य श्रीमद विजय नित्यानंद सूरीश्वर म. सा. की आज्ञानुवर्तिनी साध्वी रंजन श्री म.सा., साध्वी प्रीति सुधा श्री म. सा., साध्वी प्रीति यशा श्री म. आदि ठाणा-3 के सानिध्य में चातुर्मासिक सभा में पू. हरिभद्र सूरि द्वारा विरचित ललित विस्तरां ग्रंथ का वाचन प्रतिदिन चल रहा है।
साध्वी प्रीति सुधा म.सा. ने कहा कि एक मुसाफिर अपनी मंजिल की तरफ जा रहा था, कि चलते-चलते जंगल में पहुंच गया। वहा किसी आदमी की आवाज आ रही है, बचाओ -बचाओ। जाकर देखा तो वो व्यक्ति वृक्ष को बाहों के पाश में लेकर चिल्ला रहा था। मुसाफिर के पूछने पर बताया कि पेड़ में जो भूत है, उसने मुझे पकड़ रखा है। मुसाफिर के कहने पर भी उसने बांहों को ढीला नहीं किया। जिसने पकड़ा है, उसे ही तो छोड़ना पडे़गा। हमने भी तो संसार को पकड़ा है, तो छोड़ना भी हमें ही पडे़गा। पकड़ना वो मोह का शासन है, छोड़ना वो जिन शासन है। खींचना वो मोह का शासन है, जोड़ना वो जिन शासन है। जिन शासन की डोर चोल पट्टे वालों को सौंपी था।धोती वालें को साधु को या श्रावक को। साधु को। साधु और श्रावक में क्या अंतर है। जिनकी ड्रेस एक ओर एड्रेस अनेक वो साधु। जिनकी ड्रेस अनेक और एड्रेस एक वो श्रावक। परमात्मा ने यह बागडोर साधु को सौंपी। हमारा सस्ता, मैला कुचैला, घिसा-पिटा, कपड़ा होगा, फिर भी यह महावीर का है और आपकी महंगी पोशाक भी मोह के घर की है। इसलिए परमात्मा ने जिन शासन की बागडोर साधुओं को सौंपी। हमारे सिर पर भी गुरु होना आवश्यक है। गुरु बिना जीवन की शुरुआत ही नहीं हुई। सार्थवाह को ऋषभ देव में कन्वर्ट करने वाले धर्मघोष गुरु ही थे। आम राजा के सिर पर बप्प भट्ट सूरि, कुमार पाला राजा के सिर पर हेमचंद्र सूरि. म. सा. थे।