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दूसरों के दोष की जगह अपने दोष देखिए : डा. राजेंद्र मुनि

डा. राजेंद्र मुनि यदि आपको निदा करने की आदत हो गई दोष देखने की वृति बन गई है तो फिर इस दृष्टि को थोड़ा सा घुमाना होगा। वृति को थोड़ा सा मोड़ देना होगा और वह मोड़ यही है कि आप दूसरों के दोष की जगह अपने ही दोष देखिए।

By JagranEdited By: Published: Wed, 19 Jan 2022 07:03 PM (IST)Updated: Wed, 19 Jan 2022 07:03 PM (IST)
दूसरों के दोष की जगह अपने दोष देखिए : डा. राजेंद्र मुनि
दूसरों के दोष की जगह अपने दोष देखिए : डा. राजेंद्र मुनि

संस, लुधियाना :

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एसएस जैन स्थानक सिविल लाइंस में श्रमण संघीय प्रवर्तक डा. राजेंद्र मुनि, साहित्य रत्न सुरेंद्र मुनि ठाणा-2, श्रमण संघीय सलाहकार डा. दिनेश मुनि, ठाणा-3 के सानिध्य में दीक्षा महोत्सव के उपलक्ष्य धर्म सभा जारी है। बुधवार की सभा में डा. राजेंद्र मुनि यदि आपको निदा करने की आदत हो गई, दोष देखने की वृति बन गई है तो फिर इस दृष्टि को थोड़ा सा घुमाना होगा। वृति को थोड़ा सा मोड़ देना होगा और वह मोड़ यही है कि आप दूसरों के दोष की जगह अपने ही दोष देखिए। दूसरों की निदा की जगह आत्मा निदा कीजिए। आप अपने चश्मे से अपने को देखिए कि आपके मन के भीतर क्या हो रहा है। कितना कूड़ा एवं मैला भरा है। प्राचीन ग्रंथों में एक कहानी है कि एक शिष्य ने गुरु की सेवा करके एक वरदान प्राप्त किया। वह वरदान में गुरु से उसे एक ऐसा शीशा मिला जो किसी के सामने करने से उसे व्यक्ति के मन का पूरा चित्र उसमें झलक उठता-शिष्य को जैसे ही शीशा मिला। उसे सर्वप्रथम गुरु पर ही उसका प्रयोग किया तो देखा गुरु के मन में भी एक कोने में अहंकार दबा पड़ा है, दूसरी ओर वासना व लोभ के छोटे-2 कीटाणु कुल बुला रहे है। शिष्या बड़ा आश्चर्य हुआ- ओ यह क्या उसका मन गुरु की सेवा से टूट गया है। अब वह हर किसी के सामने शीशा करता और उसके मन छिपे सारी गंदगी देखकर दंग रह जाता। वह कुछ ही दिनों में घबरा उठा एवं गुरु के पास दौड़ा आया और कहा गुरु जी इस संसार में कोई भी सत्पुरुष नहीं है। हर मन के अंदर वासना, अहंकार की गंदगी से भरा है एवं आपके मन में भी कीटाणु भरे है। गुरु ने शिष्य का हाथ पकड़ कर घुमाया। वत्स इस शीश को दूसरों के सामने करन से पूर्व अपने सामने करके देखों। गुरु की आज्ञा से जब शिष्य ने अपनी तरफ शीशा किया तो दग रह गया। उसके मन में कहीं अहंकार के बडे़-2 कीडे़ छिपे कहीं वासना, कहीं लोभ के अजगर मुंह फाडे़ बैठे है। दिनेश मुनि महाराज ने कहा कि वत्स जो शीशा दिया गया है वो दूसरों को दिखाने के लिए नहीं, यह स्वयं को देखने के लिए दिया गया है। आज की तिलक रस्म का लाभ जैन पवन हौजरी के जगमिंदर जैन ने लिया।


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