बैलगाड़ी दौड़ का रोमांच ढूंढता लुधियाना का किलारायपुर खेल मेला, पहले सुप्रीम कोर्ट की रोक और अब लगा कोरोना का ग्रहण
लुधियाना जिले के किलारायपुर के मिनी ओलंपिक के नाम से मशहूर खेल मेले में पिछले 83 सालों से बैलगाड़ी दौड़ का हमेशा से ही रोमांच रहा है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद पिछले तीन साल से किलारायपुर का स्टेडियम रोमांच से महरूम है।
लुधियाना, [भूपेंदर सिंह भाटिया]। पंजाब के ग्रामीण खेल मेलों में हमेशा से ही बैलगाड़ी दौड़ खेल प्रेमियों के बीच आकर्षण का केंद्र रही है। खासकर लुधियाना जिले के किलारायपुर के मिनी ओलंपिक के नाम से मशहूर खेल मेले में पिछले 83 सालों से बैलगाड़ी दौड़ का हमेशा से ही रोमांच रहा है। खासकर विदेशों से इस खेल मेले में पहुंचने वाले पंजाबी एनआरआई बैलगाड़ी दौड़ पर खूब ईनाम लूटाते रहे हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मेले में पशुओं पर होने वाले क्रूरता के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इस दौड़ पर प्रतिबंध लगा दिया था। उसके बाद कुछ साल से हो रहे इस प्रतिष्ठित व सबसे पुराने खेल मेले में से एक किलारायपुर में दर्शक आज भी बैलगाड़ी दौड़ का रोमांच ढूंढते रहते हैं।
खासकर विदेशों से इस खेल मेले को कवर करने के लिए विदेशी मीडिया भी पहुंचता रहा है, जिसने इस खेल मेले को विश्व भर में ख्याति दिलाई। यह खेल मेला मुख्यत: फरवरी माह के पहले सप्ताह में होता रहा है और बड़ी संख्या में एनआरआई और विदेशी लोग पहुंचते हैं। लेकिन पिछले तीन साल से किलारायपुर का स्टेडियम रोमांच से महरूम है। इस साल भी लोगों को मेले का इंतजार था, लेकिन कोविड ने इस पर भी ग्रहण लगा दिया।
पंजाब सरकार ने इस संबंध में एक मत पारित कर फिर से पंजाब के खेल मेलों की रौनक लौटाने का प्रयास किया है। हालांकि इसमें अभी समय लगेगा। किलारायपुर खेल मेले के आयोजक ग्रेवाल स्पोर्ट्स के पदाधिकारी कहते हैं कि खेल मेले में ग्रामीण भाग लेते हैं और बैलगाड़ी दौड़ उनके बीच मुख्य आकर्षण का केंद्र होती है। सरकार को इस पर विचार करना चाहिए।
बैलों को देसी घी खिलाकर बनाया जाता है ताकतवर
उल्लेखनीय है कि बैलगाड़ी दौड़ में भाग लेने वाले बैल लाखों की कीमत के होते हैं और उनकी देखरेख बच्चों की तरह की जाती है। अकसर खेल मेलों में बैल लेकर पहुंचने वाले बलकार सिंह कहते हैं कि वह बैलों को देसी घी खिलाकर ताकतवर बनाते हैं। कई खेल मेलों में उनके बैल ईनाम जीत चुके हैं। लेकिन अब इस पर प्रतिबंध लगने के बाद मायूसी हाथ लगी है। खासबात यह है कि जिनके यह बैल होते हैं, वह इन्हें नहीं दौड़ाते हैं। इसके लिए खास जॉकी होते हैं, जो बैलों को दौड़ाने के लिए दिहाड़ी लेते हैं और वह खास तौर पर प्रशिक्षित होते हैं।
बैलगाड़ी दौड़ पर क्यों लगा प्रतिबंध?
इन खेल मेलों में पहले बैलों की दौड़ अन्य खेलों की तरह होती थी। लेकिन उसके बाद शिकायतें आईं कि कुछ बैल मालिक अपने बैलों को नशा करवाने के साथ लोहे की खास नोक वाली छोटी क्रिच से उसे मारते हैं, ताकि वह तेज भाग सके। इसकी शिकायत पहुंचने के बाद एनिमल वेलफेयर बोर्ड की टीमें कई बार इस खेल मेले में जांच के लिए भी पहुंचे। हालांकि आयोजकों ने कुछ साल बैलों के साथ क्रूरता न हो, इस पर पूरी नजर रखी, लेकिन उसके बाद अदालत के प्रतिबंध के बाद इस पर रोक लगा दी गई। बैलगाड़ी दौड़ पर प्रतिबंध लगते ही इसका रोमांच कम होने लगा और दर्शकों की संख्या भी कम हो गई।
मेले में दौड़ चले आते थे सत्ताधारी राजनीतिज्ञ
खेल मेले के रोमांच का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि इसमें मेहमान के रूप में पहुंचने के लिए सत्ताधारी राजनीतिज्ञ हमेशा उतारू रहते थे। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक हमेशा इस खेल मेले के मेहमान रहे हैं। उस समय खेल मेले में मेहमानों और दर्शकों का तांता लगा रहता था, लेकिन बैलगाड़ी दौड़ की अनुपस्थिति ने मेले की रौनक ही छीन ली।