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जेल की सलाखों में कटा मासूम बच्चों का 'बाल दिवस'

बदनसीबी क्या होती है। जेल में बंद यह बात तो दस मासूम बच्चे ही बता सकते हैं। यह वो अभागे बच्चे हैं, जिन्होंने जेल की चार दीवारी से बाहर कभी पैर नहीं रखा। इन्हें तो यह भी नहीं पता की बाल दिवस के मायने क्या होते हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Nov 2018 07:16 AM (IST)Updated: Thu, 15 Nov 2018 07:16 AM (IST)
जेल की सलाखों में कटा मासूम बच्चों का 'बाल दिवस'
जेल की सलाखों में कटा मासूम बच्चों का 'बाल दिवस'

दिलबाग दानिश, लुधियाना

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बदनसीबी क्या होती है। जेल में बंद यह बात तो दस मासूम बच्चे ही बता सकते हैं। यह वो अभागे बच्चे हैं, जिन्होंने जेल की चार दीवारी से बाहर कभी पैर नहीं रखा। इन्हें तो यह भी नहीं पता की बाल दिवस के मायने क्या होते हैं। कुछेक तो ऐसे हैं जिनका जन्म ही जेल की चारदीवारी में हुआ है और उन्होंने जेल की बैरक, जेल की दीवारों के अलावा कुछ नहीं देखा। उन्हें यह तक नहीं पता बाहर की जिंदगी कैसी होती है। कसूर सिर्फ इतना है कि उन्होंने उन मांओं की कोख से जन्म लिया है, जो क्रिमिनल हैं। हाल ही में मोती नगर पुलिस ने घोड़ा कॉलोनी से ममता को काबू किया है। साथ में उसका तीन माह का बच्चा भी है। ममता पर आरोप है कि वह नशीले पदार्थो की तस्कर है। बाल दिवस पर कोई समारोह नहीं

बाल दिवस पर जब सभी स्कूलों में समारोह मनाया जा रहा था। गिफ्ट दिए जा रहे थे और अधिकारों के बारे में जागरूक किया जा रहा था तो ये बच्चे जेल की दीवारों के बीच शायद अपने आप को कोस रहे होंगे। जेल में किसी भी प्रकार का बाल दिवस पर ऐसा कोई समारोह नहीं मनाया जाता। जेल प्रबंधन का कहना है कि वह बिना आदेश कुछ नहीं कर सकते हैं और इसका कोई आदेश उन्हें नहीं मिला था। नहीं पता क्या है गुबारे और खिलौने

इन दस बच्चों की परवरिश और पढ़ाई का जिम्मा लोज विश्वकर्मा नामक संस्था ने लिया हुआ है। यहां की शिक्षिका श्रुति शर्मा बताती हैं कि इन अभागों को क्या पता खिलौने और गुब्बारे क्या होते हैं। जब कभी भी वह किसी बच्चे का जन्म दिन मनाते हैं तो वह स्कूल की डेकोरेशन को ही निहारते रहते हैं। कई बार तो इनके मासूम से सवालों के जवाब नहीं होते हैं। बच्चे पूछते हैं पापा कब आएंगे, घर क्या होता है। वह घर कब जाएंगे। या फिर कार क्या है। फिर वह उन्हें पोस्टर के जरिए इन सभी चीजों के बारे में बताते हैं। छह साल तक ही रह सकते हैं बच्चे

यह वह बच्चे हैं, जिनकी मां किसी न किसी क्राइम में नामजद हैं और जेल में बंद हैं। इन्हें बाहर संभालने वाला कोई नहीं है या फिर वह मां के दूध के बगैर पल नहीं सकते। ऐसे बच्चों को जेल मैनुअल के अनुसार जेल में रखा जाता है। वह छह साल की उम्र तक ही यहां रह सकते हैं। इसके बाद उन्हें या तो उनके रिश्तेदार या फिर किसी आश्रम में भेज दिया जाता है।

चंचल, एडिशनल सुपरिंटेंडेंट, वुमेन जेल, लुधियाना हर खुशी देना हमारा लक्ष्य, मगर माहौल तो परिवार ही देगा : सोई

हम 2014 से यहां पर जेल का स्कूल चला रहे हैं। यहां पर बच्चों के जन्म दिन मनाए जाते हैं और पर्व पर उन्हें मिठाई दी जाती है। हम उन्हें हर खुशी दे सकते हैं मगर अच्छा माहौल तो उनके माता पिता ने ही देना होता है।

अमन सोई, सचिव, हमन सोई


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