दो माह बाद आई जान में जान, इंडस्ट्री की उखड़ती सांसों को मिली राहत
रेलगाड़ियों का आवागमन शुरू होने के साथ ही लुधियाना के उद्योग जगत में भी चहल-पहल शुरू हो गई है। पहले उद्योगपतियों को आए दिन हो रहे नुकसान की चिंता सता रही थी। रेल मार्ग खुलने के इंडस्ट्री भी अब पटरी पर आती दिख रही है।
लुधियाना, [राजीव शर्मा]। कृषि सुधार कानून के विरोध में पहली अक्टूबर से किसानों ने सूबे में रेल का चक्का जाम कर रखा था। इससे जहां रेल यात्री परेशान थे, उससे कहीं अधिक उद्योग व्यापार जगत संकट में था। माल का आना-जाना पूरी तरह बंद था। कच्चे माल के अभाव में औद्योगिक मशीनों का पेट नहीं भर रहा था। उद्यमियों का भी आर्थिक सिस्टम डगमगा रहा था। बार-बार केंद्र और राज्य सरकार को गुजार लगाई जा रही थी। आखिर लंबे वक्त के बाद किसानों ने ट्रैक खाली किए तो रेलगाड़ियों का आवागमन शुरू हो गया। उद्योग जगत में भी चहल-पहल शुरू हो गई। इस पर उद्यमी नरेंद्र कहते हैं कि दो माह बाद अब जान में जान आई है। पहले तो सुबह से शाम तक यही सोचते थे कि फैक्ट्री को कैसे चलाना है। इसके जुगाड़ में दिन-रात बीत रहे थे। अब रेल सेवा थमनी नहीं चाहिए, अन्यथा सांसें फिर से उखडने लग जाएंगी।
कब थमेगी उड़ रही राख
ताजपुर रोड पर थोक में डाइंग मिलें हैं। इन मिलों के बायलर में ज्यादातर धान के छिलके को जलाया जाता है। अब इन छिलकों की राख आसपास के मोहल्लों के लोगों के सिर में पड़ रही है। साथ ही वातावरण प्रदूषित भी हो रहा है। इसको लेकर ताजपुर रोड के आसपास के रिहायशी इलाकों में रहने वाले लोग भी परेशान हैं। लोग इसकी शिकायत कई बार अधिकारियों एवं नेताओं से कर चुके हैं। इस मुद्दे को लेकर इलाका विधायक संजय तलवाड़ ने डाइंग उद्यमियों से बैठक भी की। दबी जुबान में उद्यमी भी मानते हैं कि कुछ पहुंच रखने वाले कारोबारी बड़े-बड़े पंखे लगाकर राख को हवा में उड़ा रहे हैं। विधायक ने तेवर तीखे किए और उद्यमियों को कह दिया कि ऐसा न किया जाए। अब लोग चर्चा कर रहे हैं कि विधायक ने तलखी तो दिखाई, लेकिन इसका परिणाम कब आएगा इसका इंतजार रहेगा। फिलहाल सिर में राख पडऩा जारी है।
सरकार की कथनी व करनी में अंतर
इन दिनों कारोबारी प्रदेश के आबकारी एवं कराधान विभाग की ओर से भेजे गए सात-सात साल पुराने वैट नोटिसों से परेशान हैं। इसको लेकर उन्होंने सत्तापक्ष के नेताओं एवं अफसरों से गुहार लगाई। नेताओं ने सरकार की तरफ से नई सेटलमेंट स्कीम लाने का वादा किया। तब उद्यमियों के चेहरे से शिकन थोड़ी कम हुई, लेकिन अभी तक स्कीम न आने से कारोबारियों की भौहें फिर से तन गई हैं, क्योंकि उनको लगता है कि वेट नोटिसों की आफत पीछा नहीं छोड़ने वाली। ऐसे में कारोबारी सरकार को याद दिला रहे हैं कि एक माह में सेटलमेंट स्कीम लाने का वादा किया था अब वह मुकर रही है। यह अच्छा संकेत नहीं है। कारोबारी मुकेश कहते हैं कि सरकार की कथनी एवं करनी में फर्क है। अब अपनी बात मनवाने के लिए किसानों की तरह सड़क पर आना ही होगा। व्यापारियों को भी अपने तेवर दिखाने होंगे। तभी कुछ होगा।
प्लाटां दे नाम ते कदों रुकेगी लुट
30 साल पहले फोकल प्वाइंट में फेज आठ के लिए औद्योगिक प्लाट काटे गए थे। तब बड़ी संख्या में उद्यमियों ने औद्योगिक इकाइयां लगाने के लिए फटाफट प्लाट खरीद लिए। तब रेट भी जायज था, नतीजतन उद्यमियों ने भी अच्छा रिस्पांस दिया। मगर इसके बाद से उनको अहसास हुआ कि सरकार ने धोखा किया है। उद्यमियों से तीस साल बाद भी नए-नए कारण बताकर जमीन की अतिरिक्त कीमत वसूल की जा रही है। अब फिर से एनहांसमेंट के नोटिस जारी होने से उद्यमी पशोपेश में हैं। बार-बार आ रहे नोटिसों से कई उद्यमी झुंझला गए हैं। इनमें उद्यमी विकास भी शामिल हैं। वह कहते हैं, असीं तां प्लाट लै के ही फस्स गये आं, बार-बार पैसे वसूले जा रहे ने। पंजाब स्माल इंडस्ट्रीज एंड एक्सपोर्ट कारपोरेशन उद्यमियां तो पैसे लै के आपणा खजाना भरणा चाहुंदी ए। समझ नहीं आ रेहा के दित्ते प्लाटां लई हो रही एह लूट कदों रुकेगी।