कोरोना ने तोड़ी सात जन्मों की कसमें, लुधियाना सिविल अस्पताल में 10 दिन पड़ा रहा महिला का शव; जानें पूरा मामला
लुधियाना में कोरोना संक्रमित महिला का पति उसे अस्पताल में छोड़कर भाग गया। महिला की मौत होने के 10 दिन तक शव सिविल अस्पताल में पड़ा रहा। आखिर में मंगलवार को समाज सेवी संस्था ने आगे आकर संवेदना ट्रस्ट की मदद से शव का अंतिम संस्कार करवाया।
लुधियाना, [राजन कैंथ]। कोरोना महामारी में अपनों के साथ छोड़कर चले जाने के कई मामले सामने आए हैं। लुधियाना में कोरोना के कारण पत्नी की मौत के बाद पति सात जन्म की कसम तोड़कर साथ छोड़ गया। दस दिन तक पत्नी का शव सिविल अस्पताल में पड़ा रहा। आखिर में मंगलवार को समाज सेवी संस्था ने आगे आकर संवेदना ट्रस्ट की मदद से शव का कोरोना नियमों के तहत अंतिम संस्कार करवाया।
जीवन नगर इलाके में रहने वाली 42 वर्षीय चिंतपूर्णी देवी पिछले कुछ समय से बीमार चल रही थी। पति एक होटल में कभी कभार काम किया करता था। पैसे नहीं होने के कारण उसने पत्नी का इलाज भी नहीं करवाया। 23 मार्च को इलाके के लोगों की मदद से उसे सिविल अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। 26 मार्च को उसकी मौत हो गई। महिला के कोरोना सैंपल की रिपोर्ट पाजिटिव पाई गई। मौत होने के बाद पति मुकेश कुमार सिविल अस्पताल से गायब हो गया और वापस नहीं आया।
संवेदना ट्रस्ट ने कराया अंतिम संस्कार
दस दिन बाद एक समाज सेवी संस्था के सदस्य संजय जायसवाल, रिंकू त्रिपाठी, भिखारी यादव, अभि मिश्रा और एसवी सिंह ने जीवन नगर चौकी के इंचार्ज धर्मपाल को इस मामले की जानकारी दी। चौकी इंचार्ज ने एनजीओ टीम के साथ सिविल अस्पताल के एसएमओ को लिखित में दिया कि महिला की इलाज के दौरान मौत हो चुकी है और पति फरार हो गया है। महिला का कोई परिजन नहीं होने के कारण एसएमओ ने संवेदना ट्रस्ट के इंचार्ज जनप्रीत सिंह को शव का अंतिम संस्कार करने के लिए कहा। मंगलवार शाम पांच बजे दाना मंडी में अंतिम संस्कार किया गया।
छह महीने पहले हो गई थी बेटे की मौत
महिला के 21 वर्षीय बेटे नीरज कुमार की करीब छह महीने पहले मौत हो गई थी। परिवार में अब महिला और उसका पति थे। नीरज फोकल प्वाइंट स्थित एक फैक्ट्री में काम करता था। वही घर का खर्च चलाता था। बेटे की मौत के बाद भी नरेश कुमार बीमार पत्नी को छोड़कर चला गया था। वह भी एक होटल में काम करता था। एक महीना पहले ही लौटा था। उसकी भी हालत ठीक नहीं थी। चिंतपूर्णी जीवन नगर की झुग्गी में चाय की दुकान चलाती थी। करीब दस साल से यह लोग वहां रह रहे थे।
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