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फुलकारी से भरे महिलाओं की जिंदगी में रंग, पटियाला की लाजवंती ने सैकड़ों को बनाया आत्मनिर्भर

कई राज्यों की 500 से अधिक महिलाओं लाजवंती ने हुनर के बल पर रोजगार दिलाया। लाजवंती जरूरतमंद महिलाओं को फुलकारी का छापा कपड़े और रील जैसी सामग्री वह खुद मुहैया करवाती हैं। ये महिलाएं फुलकारी से अच्छी आमदनी कमा रही हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 08 Mar 2021 07:30 AM (IST)Updated: Mon, 08 Mar 2021 09:25 AM (IST)
फुलकारी से भरे महिलाओं की जिंदगी में रंग, पटियाला की लाजवंती ने सैकड़ों को बनाया आत्मनिर्भर
फुलकारी से लाजवंती महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं। जागरण

पटियाला [सुरेश कामरा]। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की 500 से अधिक महिलाएं लाजवंती के साथ जुड़कर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहीं हैं। ये महिलाएं फुलकारी का काम सीखकर आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। अब वे और महिलाओं को अपने साथ जोड़ कर उन्हें फुलकारी की कढ़ाई सिखा रही हैं। जरूरतमंद महिलाओं को फुलकारी का छापा, कपड़े और रील जैसी सामग्री वह खुद मुहैया करवाती हैं। ये महिलाएं फुलकारी से अच्छी आमदनी कमा रही हैं। वे ग्रुप और सोसायटी के जरिए महिलाओं आत्मनिर्भर बना रही हैं।

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पटियाला शहर के त्रिपड़ी टाउन इलाके की लाजवंती को फुलकारी का प्रचार-प्रसार करने के लिए सरकार ने पद्मश्री देने का एलान किया है। फुलकारी के को खास मुकाम दिलाने के लिए देश-विदेश में उनका नाम है। उनकी मांग है कि हरियाणा व अन्य राज्यों की तरह पर कामकाजी महिलाओं के मुफ्त बस पास सहित अन्य सुविधाएं देनी चाहिए। इससे और ज्यादा महिलाएं इस काम से जुड़ेंगी और पंजाब की फुलकारी का विस्तार होगा। हालांकि उन्हें इस बात का मलाल है कि पंजाब सरकार ने उनकी सुध नहीं ली।

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बुजुर्गों से सीखी कला

लाजवंती ने फुलकारी की कढ़ाई करने और कपड़े बनाने का काम अपनी परिवार की बुजुर्ग महिलाओं से सीखा है। वह कहती हैं, विवाह-शादियों में रिश्तेदारों को फुलकारी की कढ़ाई के सूट व अन्य कपड़े तैयार करके देती थीं। धीरे-धीरे काम बढ़ाया और यह काम परिवार की जरूरत बन गया। विवाह के बाद कुछ हालात बदले तो फुलकारी की कढ़ाई को आगे बढ़ाने का फैसला किया।

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1992 में मिला राष्ट्रीय पुरस्कार

फुलकारी की कढ़ाई के कपड़़े तैयार करके खुद ही बाजार में बेचने शुरू किए। फुलकारी की मांग बढ़ी तो दूसरी महिलाओं को अपने साथ जोड़ा। धीरे-धीरे काफी संख्या में महिलाएं उनके साथ जुड़ गईं। महिलाओं के परिवार भी इसी काम पर निर्भर हो गया। वर्ष 1992 में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ सम्मानित किया गया। इसके बाद उन्होंने दिन-रात एक करके फुलकारी को विशेष मुकाम तो दिलाया ही, साथ ही सैकड़ों महिलाओं के लिए रोजगार के रास्ते भी खोल दिए।

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