Move to Jagran APP

मान्यता: इस सिद्धपीठ में दो वृक्षों पर लगातार 40 दिन जल अर्पित करने से पूरी होती है हर मनोकामना

दंडी स्वामी के समाधि स्थल के साथ पीपल व वटवृक्ष है। जो लोग सिद्धपीठ में आते हैं वह इन दोनों वृक्षों पर लगातार 40 दिन तक जल अर्पित करते हैं तो उनकी मनोकामनापूरी हो जाती है।

By Sat PaulEdited By: Published: Sat, 11 Jan 2020 12:18 PM (IST)Updated: Sun, 12 Jan 2020 08:23 AM (IST)
मान्यता: इस सिद्धपीठ में दो वृक्षों पर लगातार 40 दिन जल अर्पित करने से पूरी होती है हर मनोकामना
मान्यता: इस सिद्धपीठ में दो वृक्षों पर लगातार 40 दिन जल अर्पित करने से पूरी होती है हर मनोकामना

लुधियाना, [राजेश भट्ट]। लुधियाना में श्री दंडी स्वामी जी महाराज की तपस्थली व समाधि स्थल आस्था का प्रमुख केंद्र है। लाखों लोग इस सिद्धपीठ की महत्ता को नतमस्तक करते हुए यहां पर माथा टेकने आते हैं। श्री दंडी स्वामी महाराज ने जीवन के अंतिम दिन यहां बिताए थे। कहते हैं कि आखिरी दिनों में उन्होंने मिस्त्री अमर सिंह को एक तख्तपोश बनाने को कहा। 23 अगस्त 1963 को तख्तपोश बनकर तैयार हुआ और वह 24 अगस्त को उस तख्तपोश पर समाधि अवस्था में बैठ गए। तख्तपोश में बैठते ही उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।

loksabha election banner

सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लाखों शहरवासी श्री दंडी स्वामी सिद्धपीठ की महत्ता से वाकिफ हैं। सिद्धपीठ में जिस स्थान पर उनका देवलोकगमन हुआ था उसी स्थान पर उनकी समाधि बनाई गई है। यही नहीं जिस तख्तपोश पर बैठक कर उन्होंने आखिरी सांस ली थी, वह तख्तपोश भी उसी समाधि स्थल पर रखा गया है और उसी पर दंडी स्वामी जी की प्रतिमा को स्थापित किया गया है। दंडी स्वामी के समाधि स्थल के साथ पीपल व वटवृक्ष लगा दिया गया था। जो लोग अपनी मनोकामना लेकर सिद्धपीठ में आते हैं वह इन दोनों वृक्षों पर लगातार 40 दिन तक जल अर्पित करते हैं तो उनकी मनोकामनापूर्ण होती है।

गिने-चुने भक्तों को ही दर्शन देते थे स्वामी

बताते हैं कि दंडी स्वामी जी महाराज तपोवन में तपस्या में लीन रहते थे और वह गिने चुने भक्तों को ही दर्शन दिया करते थे। 1951 में पंडित जगदीश चंद्र कोमल महाराज जी से मिले और उन्होंने कहा कि सत्संग कर भक्तों को दर्शन दें। तब उन्होंने रविवार के दिन शाम को चार घंटे का सत्संग शुरू किया। जब तक दंडी स्वामी जी तपोवन में रहे, वहां पर सत्संग होता रहा और जब वह सिद्धपीठ में आए तो फिर यहां पर सत्संग शुरू हो गया। दंडी स्वामी जी के समाधि में लीन होने के बाद भी रविवार के सत्संग की यह प्रथा अब भी जारी है।

1962 में स्वामी ने सिद्धपीठ में किया था प्रवेश

सिद्धपीठ दंडी स्वामी जी महाराज के एक सेवक हरिपाल आहुजा ने उनके जीवन पर एक किताब प्रकाशित की है। किताब के मुताबिक तपोवन के सामने सिद्धपीठ का निर्माण शुरू हो गया था और तब भक्तों ने स्वामी जी को तपोवन से सिद्धपीठ में चलने का आग्रह किया। 14 सितंबर 1962 को भाद्रपद की पूर्णिमा के दिन दंडी स्वामी जी ने सिद्धपीठ में प्रवेश किया। तब से लेकर 24 अगस्त 1963 तक स्वामजी यहीं पर रहे। 

ऐसे आए थे दंडी स्वामी जी महाराज लुधियाना

हरिद्वार में चौमासा करने के दौरान साहनेवाल के पास नत गांव के मिस्त्री राम सिंह की श्री दंडी स्वामी जी महाराज से धर्मशाला निर्माण के वक्त हुई। इसी दौरान राम सिंह का बेटा बीमार हो गया और वह उदास था। जिस पर स्वामी जी ने उसे अपने चिप्पी से जल दिया और उसे कहा कि इस जल को अपने बच्चे को पिला देना। राम सिंह ने जल अपने बच्चे को दिया और वह ठीक हो गया। उसके बाद राम सिंह की स्वामी जी में असीम आस्था हो गई। अब वह उन्हें अपने गांव नत लाना चाहता था। चौमासा खत्म करने के बाद स्वामी जी ने राम सिंह को कहा कि वह उन्हें काशी की गाड़ी में बैठा दे। राम सिंह ने स्वमी जी को काशी के बजाय लुधियाना आने वाली गाड़ी में बैठा दिया और खुद भी गाड़ी में बैठ गए। रास्ते में स्वामी जी ने उसे कहा कि वह कहां जा रहा है तो उसने कह दिया कि वह भी काशी ही जा रहा है।

दोराहा आते ही उसने स्वामी जी को कहा कि काशी आ गया है उतर जाएं। जब उतरे तो वह काशी नहीं था। स्वामी जी ने पास खड़े टीटी को कह दिया कि उन्हें काशी जाना था और यह राम सिंह उन्हें यहां ले आया। टीटी ने स्वामी जी को कहा कि अगली गाड़ी काशी वाली ही आ रही है तो वह उन्हें उस गाड़ी में बैठा देंगे। जिस पर स्वामी जी ने कहा कि मिस्त्री ने मुझे काशी ले जाने की बात की थी, अब वह यहीं पर काशी बना लेंगे। उसके बाद वह नत गांव में गए और पंडित जग्गनाथ ने उन्हें अपने खेत में रहने के लिए जगह दी।

1905 से 1908 तक नत गांव में रहे

1905 से 1908 तक स्वामी जी नत गांव में रहे। उसके बाद स्वामी जी चौमासा करने लुधियाना में एक बगीचे में आए। 1914 में भक्तजनों के साथ मिलकर मुन्नी लाल ढांडा उन्हें बाग ढंढेयां में ले आए। जो कि अब तपोवन के नाम से प्रसिद्ध है। उसके बाद स्वामी जी ने पुराना बाजार में भद्रकाली मंदिर की स्थापना करवाई।

हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.