त्याग, तप व स्वाध्याय का अनुष्ठान है पर्यूषण महापर्व
पर्यूषण पर्व जैन स्थानकवासी व तेरापंथ का एक साथ प्रारंभ हो रहा है।
संस, लुधियाना : पर्यूषण पर्व का अपना अलग ही महत्व है। भाद्रो त्रयोदशी से प्रारंभ होकर भाद्रो शुक्ल पंचमी तक श्वेतांबरों में व ऋषि पंचमी से पूर्णामाशी तक दिगंबरों में मनाया जाने वाला यह महापर्व त्याग, तप व स्वाध्याय का अनुष्ठान है। पर्यूषण पर्व जैन स्थानकवासी व तेरापंथ का एक साथ प्रारंभ हो रहा है जबकि मंदिर मार्गीय का एक दिन पहले शुरू हो गया है। पर्यषूण पर्व 15 से 22 अगस्त तक मनाया जाएगा। 22 अगस्त को जैन समाज का सबसे बड़ा महापर्व संवत्सरी पर्व सादगी से मनाया जाएगा। सरकार की गाइडलाइंस का पालन करते हुए यह उत्सव मनाया जाएगा। फिलहाल कोरोना वायरस की वजह से इस बार जैन स्थानकों, मंदिर मार्गीयों व तेरापंथ में वैसा माहौल कम ही दिखेगा। श्रावक-श्राविकाएं जप, तप व स्वाध्याय घरों में ही करेंगे। महापर्व की विशेषता
पर्यूषण पर्व की महत्ता बताते हुए कोमल कुमार जैन ड्यूक, महेंद्र जैन, नरेश जैन शारु ने कहा कि बहुत से पर्व आमोद प्रमोद के लिए होते हैं, लेकिन यह पर्व आत्मा साधना का पर्व है। इस पर्व के आठ दिनों में जैन धर्मावलंबी जप, तप, व्रत, पूजा तथा स्वाध्याय आदि अनुष्ठानों को प्रश्रय देते हैं।
------ पर्यूषण शब्द का अर्थ है 'आत्मा के समीप निवास करना'
दीपक जैन, संदीप जैन, अनूप जैन ने कहा कि पर्यूषण शब्द का अर्थ है आत्मा के समीप निवास करना। आत्मा के निज स्वरूप को जानना और स्वयं को परखना ही पर्यूषण पर्व का लक्ष्य है। पर्यूषण पर्व की श्रृंखला प्राचीन है। कल्पसूत्र जैनागम में स्पष्ट उल्लेख है- आषाढ़ चातुर्मास के आरंभ से एक मास और 20 रात्रि व्यतीत होने व 70 दिन शेष रहने पर भगवान महावीर स्वामी ने पर्यूषण पर्व के दिनों में जप, तप व ध्यान स्वाध्याय आदि का आलंबन लेते हैं। साधु-साध्वियां कल्पसूत्र की करते हैं वाचना
विशाल जैन, जोगिदर पाल जैन, देवराज जैन ने कहा कि इस पर्व में इन दिनों साधु-साध्वियां अंतगढ़ और कल्पसूत्र की वाचना करते हैं। जैन धर्म निवृति प्रधान धर्म है। इसमें त्याग और वैराग्य आदि पर बल दिया जाता है। यह पर्व साधक को जन सेवा की ओर प्रेरित करता है। इस पर्व को जन जन तक पहुंचाने का यही एक मार्ग है।