लुधियाना में आज भी खड़ी है अंग्रेजों के जमाने के जेलर की कोठी, जानें क्या है खासियत
शहर की आबादी बढ़ी तो जेल शहर के बीचोंबीच आ गई तो इसे यहां से ताजपुर रोड पर शिफ्ट कर दिया गया। जेल शिफ्ट हुए तीन दशक से ज्यादा का वक्त बीत गया। सिविल अस्पताल के बगल में अब पुरानी जेल का नामोनिशां तक मिट गया।
लुधियाना, [राजेश भट्ट]। लुधियाना शहर में अंग्रेजों के जमाने से ही जेल रही है। अंग्रेजों ने यहां स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलनकारियों को भी रखा। कूका आंदोलन के सूबा रतन सिंह और ज्ञानी रतन सिंह को भी इसी जेल में रखा गया और उनको इसी जेल की डय़ोढ़ी पर फांसी दी गई। आजादी के बाद तक भी सिविल अस्पताल के बगल पर जेल बनी रही।
जैसे-से शहर की आबादी बढ़ी तो जेल शहर के बीचोंबीच आ गई तो इसे यहां से ताजपुर रोड पर शिफ्ट कर दिया गया। जेल शिफ्ट हुए तीन दशक से ज्यादा का वक्त बीत गया। सिविल अस्पताल के बगल में अब पुरानी जेल का नामोनिशां तक मिट गया लेकिन अंग्रेजों के जमाने की बनी जेलर की कोठी आज भी पुरानी जेल के अंदर मौजूद है।
नामधारी स्मारक के तौर पर प्रसिद्ध हुआ स्थान
जेलर की कोठी के ठीक सामने पुरानी जेल का मुख्य गेट होता था और जेलर अपनी कोठी में बने दफ्तर से जेल में आने जाने वालों पर नजर भी रखता है। इसी कोठी के सामने कैदियों और बंदियों मिलने के लिए डयाेढ़ी बनी थी। अब यह स्थान नामधारी स्मारक के तौर पर प्रसिद्ध हो चुका है और यह कोठी भी नामधारी स्मारक के कैंपस में ही है। नामधारी संप्रदाय इस कैंपस का नवीनीकरण कर रहा है लेकिन अंग्रेजों के जमाने के जेलर की इस कोठी को संरक्षित रखने का फैसला किया है।
जेलर के रहने के लिए बने थे कमरे
इस कोठी में जेलर के रहने के लिए कमरे बने थे और साथ ही जेलर का एक दफ्तर भी बना है। आजादी के बाद जब तक जेल यहां पर रही तब तक भी जेलर का दफ्तर इसी कोठी में रहा। इस जेल में आजादी के बाद आपातकाल के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, पूर्व सेहत मंत्री सतपाल गोसाईं समेत कई बड़े नेताओं को इस जेल में रखा गया था।
यह भी पढ़ें-Income Tax Case : पंजाब के CM अमरिंदर सिंह के खिलाफ सुनवाई 23 दिसंबर तक टली