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सरकार रोड मैप बनाए तो इंडस्ट्री के लिए भविष्य का फ्यूल हो सकता है पराली Ludhiana News

पंजाब में 220 लाख टन धान की पराली पैदा होती है। करीब 150 लाख टन पराली किसान खेतों में ही जला देते हैं। पराली पंजाब ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्यों की हवा में भी जहर घोल रही है।

By Edited By: Published: Wed, 16 Oct 2019 07:45 AM (IST)Updated: Wed, 16 Oct 2019 09:23 AM (IST)
सरकार रोड मैप बनाए तो इंडस्ट्री के लिए भविष्य का फ्यूल हो सकता है पराली Ludhiana News
सरकार रोड मैप बनाए तो इंडस्ट्री के लिए भविष्य का फ्यूल हो सकता है पराली Ludhiana News

लुधियाना [राजीव शर्मा]। पंजाब में 65 लाख एकड़ में धान पैदा किया जाता है। इसमें से 220 लाख टन धान की पराली पैदा होती है। करीब 150 लाख टन पराली किसान खेतों में ही जला देते हैं। जलती हुई पराली पंजाब ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्यों की हवा में भी जहर घोल रही है, वहीं इससे मानव के लिए सांस लेना तक कठिन हो रहा है। ऐसे में केंद्र से लेकर प्रदेश सरकारों तक सभी कृषि वेस्ट पराली को इस्तेमाल में लाने के उपाय तलाश रहे हैं। बावजूद इसके पराली जलाने के केस कम नहीं हो रहे हैं। अब इंडस्ट्री भी इसके उपयोग की संभावनाओं को खंगाल रही है।

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इसे लेकर दैनिक जागरण की ओर से इंडस्ट्रियल एरिया स्थित ओरिएंटल डाइंग इंडस्ट्रीज में उद्यमियों के बीच पेनल डिस्कशन कराई गई। इसमें मौजूद उद्यमियों ने कहा कि कृषि वेस्ट को मनी में तबदील करना होगा, तभी इसे भविष्य का फ्यूल बनाया जा सकता है। साथ ही पराली को मार्केटिंग की आइटम बनाना होगा ताकि किसान की आमदनी शुरू हो, तभी वे पराली को जलाना बंद करेंगे। इन बातों को साबित करने के लिए उन्होंने तर्क दिया कि आज से 25-30 साल पहले धान का छिलका गंभीर समस्या था। शुरुआत में जलाने के लिए उद्योग को धान का छिलका मुफ्त में दिया जाता था, जब इसके परिणाम बेहतर आए और मांग निकली तो आज वही छिलका उद्यमी पांच रुपये प्रति किलो में खरीद रहे हैं। इसी तरह ही पराली को भी भविष्य के फ्यूल में तबदील करके इस समस्या से निजात पाई जा सकती है और इससे किसानों की आमदनी भी बढ़ाई जा सकती है।

डाइंग उद्योग में रोजाना जलता है 30 लाख किलो फ्यूल 

लुधियाना के डाइंग उद्योग में लगभग तीन सौ ब्वायलर लगे हुए हैं, जिनमें रोजाना 30 लाख किलो फ्यूल जलाया जाता है। फिलहाल इसमें ज्यादातर कोयला, धान का छिलका इत्यादि का उपयोग किया जाता है। अनुसंधान के बाद पराली को भी इस उद्योग में खपाया जा सकता है। अनुसंधान के लिए प्रदेश सरकार का साइंस एंड टेक्नोलॉजी विभाग काफी सहायक साबित हो सकता है।

पराली को खपाने की नीति बनाने के लिए कमेटी बनानी होगी: रजत सूद

लुधियाना डाइंग एसोसिएशन कॉटन डिवीजन के जनरल सेक्रेटरी रजत सूद ने बातचीत के दौरान बताया कि धान की वेस्ट को फार्म से लेकर इसको खपाने तक का पूरा प्रबंधन करना अनिवार्य है। इसके लिए बकायदा एक रोडमैप बनाना होगा। दूसरा पराली को खपाने की नीति बनाने के लिए किसान, उद्यमी, कृषि माहिर, साइंस एंड टेक्नोलॉजी के माहिरों की कमेटी बनाकर पूरा खाका तैयार करना होगा, साथ ही इंडस्ट्री में पराली का कहां कहां उपयोग हो सकता है, इस पर रिसर्च करनी होगी।

सरकार को पराली का लंबी अवधि का हल निकालना होगा: समीर कुमार

एचसी डाइंग के एमडी समीर कुमार बोले कि सरकार ने कई विभाग बनाए हैं। पराली का प्रदूषण दिल्ली तक जाता है, इसका आरोप पंजाब पर लगाया जाता है। सरकार को पराली का लंबी अवधि का हल निकालना होगा। इसकी डिस्पोजल का सही इंतजाम करना होगा। इंडस्ट्री भी जरूरत के मुताबिक इसके उपयोग के लिए तैयार है, लेकिन इसकी पहले प्रोसेसिंग करनी होगी। इसके लिए सरकार को ही पहल करनी होगी।

पराली की स्टोरेज व मार्केटिंग का इंतजाम करना होगा: राम पाल

आरपी प्रोसेसर्स के एमडी राम पाल त्रिखा ने भी माना कि पराली यहां की गंभीर समस्या बनी हुई है। इसमें इंडस्ट्री अपने तौर पर कुछ नहीं कर सकती। सरकार का सहयोग अनिवार्य है। पराली भी एक तरह से फ्यूल है, लेकिन इसे मौजूदा शेप में स्टोर करना संभव नहीं है। पराली की स्टोरेज एवं मार्के¨टग का इंतजाम सरकार को करना होगा। हालांकि प्रदेश में कई कंपनियों ने आकर मशीनें लगाई हैं और पराली की गांठ बनाकर उनको आगे उपयोग में लाया जा रहा है। इसके लिए सरकार को पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर देना होगा।

किसानों को समझना होगा, पराली कमाई का भी साधन: रूही

महिला उद्यमी रूही ने कहा कि किसानों को जागरूक करना भी जरूरी है। उनको यह समझाना होगा कि पराली से भी कमाई की जा सकती है, लेकिन इसमें सरकार का सहयोग अनिवार्य है। पराली को कई उद्योगों में खपाया जा सकता है। उनको चिन्हित करना अनिवार्य है। दूसरे पराली को खेतों में जलाया जा रहा है। इससे पर्यावरण का भी नुकसान हो रहा है। उद्यमी भी पराली का उपयोग करने के लिए तैयार हैं, लेकिन इसके लिए रोडमैप देना होगा।

सरकारी अनुसंधान विभाग कर सकता है मार्गदर्शन: अभिषेक कुमार

ओरिएंटल निटफैब के डायरेक्टर अभिषेक कुमार के अनुसार पराली को खेतों में जलाने से ज्यादा प्रदूषण फैलता है, क्योंकि वह अनियंत्रित तरीके से जलाया जाता है। इंडस्ट्री में कंट्रोल्ड तरीके से प्रदूषण के तमाम मानकों के अनुरूप तैयार सिस्टम में जलाया जाए तो इससे प्रदूषण की मात्रा को 95 फीसद तक कम किया जा सकता है। इसी तरह के पराली को भी ब्वॉयलर में सीधे नहीं जलाया जा सकता। इसके लिए पराली को पहले प्रोसेस करना होगा। इसके लिए सरकारी अनुसंधान विभाग रिसर्च के बाद मार्गदर्शन कर सकते हैं।

मशीनों से पराली की गांठें बनाने के किए जा सकते हैं प्रयोग: ईशान

ईशान एंटरप्राइजेज के डायरेक्टर ईशान ने कहा कि कुछ औद्योगिक इकाइयां मशीनों से पराली की गांठें बना रही हैं। इसकी स्टोरेज भी आसान हो गई है और इनको जलाना भी सुविधाजनक है। इसी तरह के प्रयोग इंडस्ट्री में किए जा सकते हैं। इसके अलावा प्रदेश में पराली से बिजली बनाने के भी सफल प्रयास किए जा रहे हैं। नए पॉवर प्लांट आ रहे हैं। उनसे भी फार्मूला समझा जा सकता है। पराली की बनी राख का प्रबंधन करना होगा, यह बड़ा मुद्दा: रजत गीता एंटरप्राइजेज के डायरेक्टर रजत सूद ने कहा कि पराली प्रबंधन के लिए सरकार को युद्धस्तर पर काम करना होगा। पराली को खेतों से उठाकर प्रोसेस कर इंडस्ट्री तक पहुंचाना होगा। इसके लिए आरएंडडी की जरूरत है। इसके अलावा पराली जलाने के बाद बनी राख का किस तरह से प्रबंधन होगा। यह बड़ा मुद्दा है। इससे ब्रिक्स भी तैयार की जा सकेंगी। इसके लिए अलग से इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने की जरूरत है।

पराली से किसान की आमदनी शुरू होना ही इसका समाधान: विक्रम

सनशाइन डाइंग के डायरेक्टर विक्रम का तर्क रहा कि जब तक पराली से किसान की आमदनी शुरू नहीं की जाती, इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। इसके लिए सरकार को भी सही दिशा में होमवर्क करके पूरा सोल्यूशन किसान एवं उद्योगों को देना होगा। तभी पराली की इस गंभीर समस्या से निजात पाई जा सकती है,अन्यथा यह जीवन के लिए भी खतरनाक बनी रहेगी।


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