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औद्योगिकरण की राह नहीं अासान, लुधियाना के फोकल प्वाइंट में उद्यमियाें काे नहीं मिल रही सुविधाएं

शहर में उद्यमियाें काे काेराेना संकट के बाद मूलभूत सुविधाअाें से जूझना पड़ रहा है। खस्ताहाल सड़कें खराब सीवरेज सिस्टम टूटी-फूटी स्ट्रीट लाइटों समेत तमाम कमियों से वे जूझ रहे हैं।

By Vipin KumarEdited By: Published: Thu, 13 Aug 2020 08:22 AM (IST)Updated: Thu, 13 Aug 2020 08:22 AM (IST)
औद्योगिकरण की राह नहीं अासान, लुधियाना के फोकल प्वाइंट में उद्यमियाें काे नहीं मिल रही सुविधाएं
औद्योगिकरण की राह नहीं अासान, लुधियाना के फोकल प्वाइंट में उद्यमियाें काे नहीं मिल रही सुविधाएं

लुधियाना, [राजीव शर्मा]। पंजाब में औद्योगिकरण के लिए सरकार ने फोकल प्वाइंट बनवाए और उद्यमियों को तमाम सहूलियतें देने का वादा किया। इस पर उद्यमियों ने भी प्लॉट लेकर अपनी इकाइयां स्थापित कर लीं। उद्यमी बेहतरीन सहूलियतों के सपने देखते रहे। अब हालत यह है कि उद्यमी सरकार को करोड़ों का राजस्व दे जरूर रहे हैं मगर बदले में उन्हें आज तक वो सुविधाएं नहीं मिल पाई हैं।

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खस्ता हाल सड़कें, खराब सीवरेज सिस्टम, टूटी-फूटी स्ट्रीट लाइटों समेत तमाम कमियों से वे जूझ रहे हैं। पहले फोकल प्वाइंट के फेज की डेवलपमेंट का जिम्मा उद्यमियों को सौंपा। अब पंजाब स्मॉल इंडस्ट्रीज एंड एक्सपोर्ट कारपोरेशन (पीएसआइईसी) का कमाल देखिए। उसने पार्कों के रखरखाव से पीछा छुड़ाते हुए इसकी जिम्मेदारी भी उद्यमियों पर डालने की तैयारी कर ली है। उद्यमी इंद्रजीत तंज कसते हैं कि अब पार्कों का रखरखाव भी हम करेंगे तो सरकार क्या करेगी। सारा आॢथक बोझ उद्यमियों पर डाला जा रहा है।

घरेलू कंपनियों का सीना चौड़ा
सस्ते सामान के लिए चीन काफी जाना जाता है। वहां से सस्ते आयात के कारण घरेलू निर्माता पहले दबाव में थे। वे चाहकर भी उत्पादों का अधिक दाम नहीं वसूल पा रहे थे, मगर परिस्थितियां बदलीं और चीन के साथ लद्दाख में तनातनी के बाद सरकार ने ड्रैगन देश से होने वाले आयात को नियंत्रित या प्रतिबंधित करना शुरू कर दिया। अब सस्ते माल से बाजार में भिडऩे की चुनौती लगभग खत्म हो गई।

नतीजतन घरेलू कंपनियों की बांछें खिल गईं और उन्होंने माल की किल्लत की आड़ में धीरे-धीरे दाम बढ़ाने शुरू कर दिए। इससे इलेक्ट्रॉनिक्स, स्पेयर पाट्र्स समेत कई चीजों के दाम में इजाफा हो गया। जेब अधिक ढीली होने से उपभोक्ता भी दुखी हो गए। साबुन बाजार स्थित प्लास्टिक कारोबारी कमल कहते हैं कि इस समय घरेलू कंपनियों को मनमर्जी करने का मौका मिल गया है। केंद्र सरकार को ही उपभोक्ताओं के हितों का ध्यान रखना होगा।

हमें तो बंदिशों ने रोक दिया
आॢथक राजधानी के कई रिहायशी इलाकों में हजारों छोटी-छोटी औद्योगिक इकाइयां हैं। उद्यमियों की मांग पर उद्योग बाहुल कुछ इलाकों को मास्टर प्लान में मिक्स लैंड यूज एरिया घोषित कर दिया गया। यहां पर इकाइयां चलाने की इजाजत तो दी गई, लेकिन उद्यमी विस्तार नहीं कर सकते। अब आगे बढऩा है तो आधुनिक तकनीक को अपनाना भी जरूरी है। मगर सरकारी बंदिशों ने उनका विकास रोक दिया है। वे चाहकर भी आगे नहीं बढ़ पा रहे। इससे जनता नगर स्थित उद्यमी जसविंदर सिंह भी खासे संकट में हैं।

कहते हैं कि सरकार ने मिक्स लैंड में भी कई बंदिशें लगा रखी हैं। इंडस्ट्री विकसित नहीं हो पा रही। उन्हें तो समझ नहीं आ रहा है कि वे खुद को कैसे अपग्रेड करके बाजार की चुनौतियों का मुकाबला करें। यह भी नहीं पता कि उन्हें रास्ता कौन दिखाएगा। इससे अच्छा तो मिक्स लैंड यूज इलाकों को औद्योगिक क्षेत्र घोषित कर दें।

मजदूर घटने पर बढ़ी धड़कन
किसी भी कारखाने या फैक्ट्री के लिए उसके कारीगर ही रीढ़ माने जाते हैं। लॉकडाउन में लाखों श्रमिक अपने मूल गांवों को लौट गए। अनलॉक में बंदिशों से छूट मिली तो उद्योग का पहिया चलाने वाले श्रमिक ही नहीं मिले। कहीं न कहीं इसका सीधा असर उत्पादन पर भी हो रहा है। स्थिति अब ऐसी है कि नए मजदूर मिल नहीं रहे और पुरानों को संभालना उद्यमियों के लिए बड़ी चुनौती बन गया है।

कुशल कारीगर भी अधिक पैसों के लालच में एक फैक्ट्री से दूसरी में छलांग लगा रहे हैं। फोकल प्वाइंट स्थित उद्यमी राजन कुमार भी इस संकट में फंसे हुए हैं। वह कहते हैं कि सुबह आकर लेबर की गिनती करते हैं, एक भी कम होता है तो धड़कन बढ़ जाती है। वैसे कुछ मजदूर छुट्टी पर हों तो उनके भी जल्द आने इंतजार रहता है। पता नहीं कब तक ऐसे हालात से इंडस्ट्री को जूझना पड़ेगा।

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