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'Nala to Nadi' project: वैदिक ज्ञान से निकाली नाले की सफाई की तकनीक, प्रदूषित पानी में मिलाया जाता है जड़ी-बूटियाें का घाेल

108 जड़ी-बूटियों के घोल से नाले की सफाई के बाद दुर्गंध से छुटकारा मिल गया है। नाला से नदी परियोजना के तहत पटियाला में चार साइट्स पर ट्रायल कामयाब रहा। काउनामिक्स हर्बल कंसंट्रेट काे नाले के पानी में मिलाने से 24 घंटे में बेहतर नतीजे सामने आ रहे हैं।

By Vipin KumarEdited By: Published: Wed, 07 Jul 2021 02:01 PM (IST)Updated: Wed, 07 Jul 2021 03:07 PM (IST)
'Nala to Nadi' project: वैदिक ज्ञान से निकाली नाले की सफाई की तकनीक, प्रदूषित पानी में मिलाया जाता है जड़ी-बूटियाें का घाेल
पटियाला में चार साइट्स पर ट्रायल कामयाब रहा। (जागरण)

पटियाला, [गौरव सूद]। नालों की सफाई के लिए बड़ी मशीनों का इस्तेमाल तो आम बात है, लेकिन जड़ी-बूटियों के घोल से गंदे पानी की सफाई अपने आप में नया प्रयोग है। पंजाब पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (पीपीसीबी) ने खत्म हो रहे जल स्रोतों व जल संकट के समाधान के लिए 'नाला से नदी' परियोजना शुरू की है। इसके तहत पटियाला के भारत नगर व धामोमाजरा गांव से होकर गुजरने वाले नाले की सफाई का काम शुरू किया गया है। इसका जिम्मा पीपीसीबी ने चंडीगढ़ की इंपीरियम अर्थ एडवाइजर्स एलएलपी कंपनी को साैंपा है। कंपनी सफाई के लिए दिल्ली की एक अन्य कंपनी 'वैदिक सृजन' की ओर से तैयार किए गए 108 जड़ी बूटियों घोल का इस्तेमाल कर रही है, जिसे काउनामिक्स हर्बल कंसंट्रेट नाम दिया गया है।

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दोनों कंपनियों ने आपस में टाईअप किया है। नाले की चार साइटों की पहचान कर हर रोज सुबह चार बजे से सात बजे के बीच घोल को पानी में मिलाया, जिसके परिणाम आश्चर्यचकित करने वाले रहे। लोगों को दूषित पानी की दुर्गंध से छुटकारा मिल गया है। इसके बाद अबलोवाल में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाकर यहां ट्रीट किया गया जल छोड़ा जाने लगा। इससे कुछ राहत तो मिली, लेकिन दुर्गंध से छुटकारा नहीं मिला, जिससे लगभग 100 से 120 परिवार प्रभावित हो रहे थे।

इस बीच नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पीपीसीबी से पटियाला के नालों समेत राज्य के कुछ नालों स्थिति के बारे में जवाब तलब किया था। इस पर पीपीसीबी ने इंपीरियम अर्थ एडवाइजर्स एलएलपी कंपनी से संपर्क किया। पीपीसीबी ने कंपनी को डेरा बस्सी (मोहाली), पटियाला और संगरूर की साइट्स पर काम शुरू करने का प्रस्ताव दिया। कंपनी ने प्रोजेक्ट के लिए पटियाला को चुना। 10 मई को काम शुरू हुआ और 24 घंटे में ही परिणाम दिखने को मिले। कंपनी के साथ एक किलोमीटर क्षेत्र के लिए दस लाख रुपये में करार हुआ है।

कंपनी एक साल से ज्यादा समय से काम कर रही है। उसने इस तकनीक की शुरुआत छत्तीसगढ़ में मोतीपुर की काई लेक से की। इसके अलावा मध्यप्रदेश में मंदाकिनी नदी का 500 मीटर का घाट साफ किया, जहां अच्छे नतीजे आए। 'नाला से नदी' परियोजना का उद्देश्य यहां के खत्म हो रहे जल स्रोतों को बचाना है। नाले के पानी की गुणवत्ता सुधरने से यह जलस्रोत भी साफ पानी से रिचार्ज होंगे और लोग इनका पानी इस्तेमाल कर पाएंगे। इससे जलसंकट भी दूर होगा।

भारतीय वैदिक विज्ञान की तकनीक अपनाई

इंपीरियम अर्थ एडवाइजर्स एलएलपी कंपनी ने सफाई के लिए भारतीय वैदिक विज्ञान पर आधारित तकनीक अपनाई। इसके तहत पानी को एक जीवित प्रणाली माना गया है, जिसका अपना उपचार व सफाई तंत्र है। इससे पानी के अंदर रहने वाली जलीय वनस्पति को पुनर्जीवित किया जाता है।

क्या है काउनामिक्स हर्बल कंसंट्रेट

काउनामिक्स हर्बल कंसंट्रेट में कई प्रकार की जड़ी बूटियों का घोल है। इनमें आक, आंवला, बबूल, बेल, अर्जुन, बरगद, चितावर, बन नींबू, भोटिया बादाम व ब्राह्मी आदि प्रमुख हैं। काउनामिक्स हर्बल कंसंट्रेट को वैदिक सृजन नाम की कंपनी ने तैयार किया है।

कैसे होती है सफाई

काउनामिक्स हर्बल कंसंट्रेट को कम से कम चार महीने तक रोज पानी में तय मात्रा डाला जाता है। नाले में काउनामिक्स हर्बल कंसंट्रेट डालते हुए दो महीने का समय पूरा होने वाला है। जिस एक किलोमीटर ड्रेन को ट्रीट किया गया है, वहां इस घोल से पानी को ब्लॉक करने वाले पदार्थ नेचुरल तरीके से पूरी तरह से घुल जाएंगे, जिसकी वजह से एक इलाके में पानी लोगों के घरों में नहीं घुसेगा। वाटर लॉगिंग नहीं होगी।

गाय को कचरा खाते देख मिला आइडिया

इस घोल को दिल्ली स्थित वैदिक सृजन कंपनी ने तैयार किया है। इसके डायरेक्टर मधुकर स्वयंभू ने बताया कि वह एक आइटी बेस्ड कंपनी में नौकरी करते थे। इसी दौरान आफिस के बाहर चाय पीते हुए उन्होंने एक गाय को नाले में कचरा खाते देखा। इसके बाद उन्होंने तय किया कि नालों की इस तरह से सफाई की जाए ताकि उसमें प्राकृतिक वनस्पति की बहुतायत हो। उन्होंने वैदिक साइंस का अध्यन किया और लंबे समय तक पढ़ाई व रिसर्च के बाद काउनामिक्स हर्बल कंसंट्रेट बनाने का नुस्खा खोजा। इसका आइडिया गाय से मिला इसलिए घोल का नाम काउनामिक्स हर्बल कंसंट्रेट रखा। उनका कहना है कि इसे इस्तेमाल करने से संबंधित ड्रेन की पूरी रिसर्च की जाती है। इसमें समय लगता है। घोल तैयार करने की प्रक्रिया पर भी काफी खर्च आता है।


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