सरकार कृषि को उद्योग के रूप में स्थापित करे तो गांवों का होगा विकास
भारत में कृषि इस समय डेंजर लाइन से गुजर रही है। 21वीं सदी में भी हमारे किसान कामर्शियल ²ष्टिकोण से खेती न करके केवल गुजारे के लिए कर रहे हैं। इस ट्रेंड को बदलने की जरूरत है। एग्रीक
जागरण संवाददाता, लुधियाना : भारत में कृषि इस समय खतरनाक लाइन से गुजर रही है। 21वीं सदी में भी हमारे किसान व्यवसायिक दृष्टिकोण से खेती न करके केवल गुजारे के लिए कर रहे हैं। इस ट्रेंड को बदलने की जरूरत है। एग्रीकल्चर एज इंडस्ट्री लिया जाए, तभी देश की आर्थिक स्थिति बदलेगी। यह कहना है होसई यूनिवर्सिटी टोक्यो के प्रोफेसर व इंडियन एसोसिएशन ऑफ जापान के प्रेसिडेंट डॉ. संजय मेहरोत्रा का। वह, वीरवार को पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित एशियन आस्ट्रेलेशियन कांफ्रेंस के अंतिम दिन वीरवार को टोटल इंटीग्रेशन ऑफ डेवेलपमेंट सल्यूशन इन इंडियन एग्रीकल्चर पर बोल रहे थे। उल्लेखनीय है कि चार दिनों तक चली इस कांफ्रेस में 11 मुल्कों से तीन सौ से अधिक वैज्ञानिक शामिल हुए। डॉ. संजय ने कहा कि इंडियन एसोसिएशन ऑफ जापान भारतीय कृषि की समस्याओं के समाधान तलाशने की कोशिश कर रही है। इन समाधानों में एक समाधान यह है कि भारत में एग्रीकल्चर को एग्रीकल्चर न रखकर इंडस्ट्री बनाया जाए। जब एग्रीकल्चर एक इंडस्ट्री बन जाएगी, तो हर गांव व देश का अपनेआप विकास शुरू हो जाएगा। जिससे एग्रीकल्चर सेक्टर में एक बड़ी जॉब मार्केट खड़ी हो सकेगी और गांवों से पलायन भी रुकेगा। सरकार को बनाने चाहिए प्लान उन्होंने कहा कि सरकार को इंडियन एग्रीकल्चर इश्यू के समाधान के लिए फ्यूचर एग्रीकल्चर प्लान कमेटी स्थापित करनी चाहिए। इस कमेटी में आइएएस ऑफिसर व एडमिनिस्ट्रेटर की बजाए कृषि से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों से एक्सपर्ट रखे जाएं। जिन्हें ग्राउंड लेवल पर कृषि से संबंधित पूरी जानकारी हो। जिला स्तर पर मॉर्डन लैब स्थापित की जाए। जिसमें एक ऐसा डेटाबेस डेवेलप किया जाए, जिसमें हर ¨सगल प्लांट व उसके बिहेवियर की जानकारी हो। दूसरा भारत सरकार पूरे देश के लिए एक जैसी पॉलिसी बनाती है। जबकि हर जिले, हर राज्य की कृषि एकदम विभिन्न है। ऐसे में अलग अलग फसलों के अनुसार लोकल व रिजनल पॉलिसी बनाई जाएं। कृषि विशेषज्ञ की हो नियुक्ति डॉ. संजय ने कहा कि सरकार को चाहिए कि किसानों को सहयोग करने के लिए गांव व पंचायत स्तर पर कृषि मित्र के तौर पर एग्रीकल्चर एक्सपर्ट की नियुक्ति करें। यह कृषि मित्र किसानों को सॉयल टे¨स्टग से लेकर मॉर्डन खेती से संबंधित दूसरी जानकारियां दें। किसानों को फसल मार्केट में प्रदर्शित करने व बेचने के तरीके बताएं। अगर एक गांव में सौ एकड़ खेत हैं, तो इतनी फसल चाहिए। अगर फसल कम आ रही है, तो क्यों आ रही है। उसके कारणों का पूरा डेटा तैयार हो। हर जिले में हो एग्रीकल्चर डेवेलपमेंट एजूकेशन सेंटर उन्होंने कहा कि देश के हर जिले में एग्रीकल्चर डेवेलपमेंट एजूकेशन सेंटर खोले जाएं और लोकल व रिजनल एग्रीकल्चर स्पेशलिस्ट नियुक्त किए जाएं। यह एक्सपर्ट, एग्रीकल्चर इकोनोमिस्ट के तौर पर स्पेशलाइज्ड होने चाहिए। जो किसान को स्थानीय जरूरतों के अनुसार एग्रीकल्चर एजूकेशन व ट्रे¨नग दें। इस सेंटर में जो सीजन के अनुसार समय समय पर किसानों को अलग अलग क्राप्स, वेजीटेबिल, फ्रूट की ट्रे¨नग दी जाए। दिन ब दिन घट रहा है कृषि का रकबा चिंता का विषय डॉ. संजय ने कहा कि खेती का रकबा दिन ब दिन घटता जा रहा है जो चिंता का विषय है। जनसंख्या व अनाज जरूरतें तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में सरकार को ऐसी पॉलिसी बनानी चाहिए, जिससे कि एग्रीकल्चर लैंड को सिर्फ एग्रीकल्चर के लिए इस्तेमाल किया जाए, न कि हाइवे, बिलिडंग व इंडस्ट्री के उद्देश्य से। कृषि को बचाने के लिए इस तरह के कड़े नियम बनाने होंगे। दूसरी तरफ कांफ्रेंस के अंतिम दिन कई अन्य विशेषज्ञों ने भी संबोधित किया। विशेषज्ञों ने मशरूम उत्पादन की भी जानकारी दी टोक्यो के ही इंडियन एसोसिएशन ऑफ जापान के संजीव मेहरोत्रा ने सौर उर्जा की खेती में प्रयोग पर नई विधियों पर बात की। जबकि ईको फार्म ग्रुप जापान के चेयरमैन किशीमोटो टाकेमासारू ने ईको मशीन टेक्नोलॉजी संबंधी जापान में हो रहे कार्यों के बारे में बताया। जबकि सूगीमोटो तासूनोरी ने मशरूम उत्पादन की जानकारी दी।