किसानों के लिए प्रेरणा बने श्री माछीवाड़ा साहिब के किसान गुरदीप सिंह, जीव-जंतुओं के सुरक्षा के लिए कभी पराली नहीं जलाई
किसान गुरदीप सिंह के परिवार ने 1975 के आसपास धान की खेती शुरू की लेकिन कभी पराली में आग नहीं लगाई ताकि जमीन के अंदर रहने वाले जीव-जंतु भी सुरक्षित रहें। गुरदीप सिंह ने कहा कि उनका परिवार शुरू से ही पराली का भुगतान करता रहा है।
लुधियाना, जेएनएन। श्री माछीवाड़ा साहिब के गांव बर्मा के 36 वर्षीय मेहनती और प्रगतिशील किसान गुरदीप सिंह ब्लॉक के किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। इस किसान परिवार ने 1975 के आसपास धान की खेती शुरू की लेकिन कभी पराली में आग नहीं लगाई, ताकि जमीन के अंदर रहने वाले जीव-जंतु भी सुरक्षित रहें।
किसान गुरदीप सिंह ने कहा कि उनका परिवार शुरू से ही पराली का भुगतान करता रहा है। वर्ष 2003 के बाद पराली का मूल्य जानने के बाद, उन्होंने इसे गुजरों को देने की बजाय खेतों में मिलाना शुरू कर दिया। वैज्ञानिक और आधुनिक विचारक गुरदीप सिंह ने 2019 में कृषि और किसान कल्याण विभाग के तहत 'इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन योजना' के तहत एक नई सोच समूह बनाया। जीरो ड्रिल खरीदी। इन मशीनों की मदद से लगभग 100 एकड़ के क्षेत्र में पराली का प्रबंधन करते हैं।
प्रगतिशील किसान ने आसपास के गांवों के किसानों के खेतों में भी अलग-अलग तरीकों से पराली का प्रबंधन किया और गेहूं की बुवाई करके उन्होंने अन्य किसानों को भी इस तकनीक को अपनाने के लिए राजी किया। पराली को आग लगाने वाले अन्य किसान भी अब खेतों में पराली मिलाने लगे। इस किसान से प्रेरित होकर किसानों ने इस वर्ष 'इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन' योजना के तहत अधिक पराली प्रबंधन समूह बनाने में सक्रिय भाग लिया।
किसान गुरदीप सिंह ने कहा कि वह 15 एकड़ में खेती करते हैं। गेहूं की कटाई के बाद, वह धनिया की खेती भी करते हैं, जिसके बाद वह इसे खेतों में मिलाते हैं और इसे हरी खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने कहा कि गेहूं और धान के अलावा वह गन्ने की खेती करके अधिक लाभ कमाते हैं, क्योंकि वह गन्ने से चीनी, गुड़, चीनी इत्यादि का स्थानीय तरीके से उत्पादन करते हैं जिसकी लोगों में काफी डिमांड है। बढ़ती मांग को देखते हुए इस साल गन्ने के क्षेत्र में भी वृद्धि की है।