मक्की की काश्त करने वाले किसानों पर कोरोना की मार
श्री माछीवाड़ा साहिब कोरोना महामारी से प्रत्येक वर्ग प्रभावित है और मक्की की काश्त करने वाले किसानों पर भी इस बीमारी की काफी मार पड़ी है।
संवाद सहयोगी, श्री माछीवाड़ा साहिब: कोरोना महामारी से प्रत्येक वर्ग प्रभावित है और मक्की की काश्त करने वाले किसानों पर भी इस बीमारी की काफी मार पड़ी है। इस कारण फसल के भाव में बड़ी गिरावट देखने को मिली, जिस कारण किसान भी मायूस हैं। माछीवाड़ा अनाज मंडी में शुक्रवार को मक्की की फसल बिकने की शुरुआत हुई । पिछले वर्ष की तुलना में इस बार फसल का भाव 2000 रुपये प्रति क्विंटल से भी अधिक रहा, परंतु इस बार कोरोना के कारण 1200 से 1300 रुपये प्रति क्विटंल फसल बिकना शुरू हुई। जानकारी अनुसार मक्की की फसल से मुर्गो की फीड तैयार की जाती है, परंतु कोरोना के कारण बड़े-बड़े पोलट्री फार्म खाली हो गए और कई लोग इस धंधे को छोड़ भी गए। इसके अलावा मक्की की फसल से पशुओं की फीड्ड सहित अन्य खुराक वाली वस्तुए भी तैयार होती हैं, परंतु बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों की फैक्टरियों में इन का उत्पादन घटने के कारण मक्की की मांग घट गई है। इसका सीधे तौर पर यह प्रभाव हुआ कि फसल का भाव 700 से 800 रुपए प्रति क्विंटल घट गया। फसल में भारी गिरावट का कारण किसानों का 20 से 25 हजार एकड़ नुकसान हुआ बताया जा रहा है। इस बार माछीवाड़ा इलाके में मक्की की काश्त भी बहुत ज्यादा है, परंतु भाव में गिरावट से किसानों ने सरकार से माग की कि उनकी फसल केंद्र से निर्धारित किए समर्थन मूल्य पर ही खरीदी जाए। माछीवाड़ा अनाज मंडी में फसल खरीद शुरू करवाने मौके मार्केट कमेटी अधिकारी गुरमेल सिंह, सुशील लूथरा, विनीत अग्रवाल, कपिल आनंद, संजीव मल्होत्रा, परमिदर गुल्यिानी, हरिदर मोहण सिंह कालडा, विनीत जैन आदि भी मौजूद थे। समर्थन मूल्य 1850 रुपये पर की जाए खरीद: लक्खोवाल वही भारतीय किसान यूनियन के महासचिव हरिदर सिंह लक्खोवाल ने कहा कि एक तरफ जहा सारा देश कोरोना महामारी से लड़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ केंद्र व पंजाब सरकार किसानों की व्यापारियों के हाथों लूट करवा रही है। उन्होंने कहा कि जब केंद्र सरकार ने मक्की का समर्थन मूल्य 1850 रुपये प्रति क्विंटल निधार्रित किया है, तो उस से कम मंडियों में फसल नहीं बिकनी चाहिए। लक्खोवाल ने कहा कि किसानों फसल 1850 रुपए प्रति क्विंटल ही खरीदी जाए। उन्होंने कहा कि यदि किसानों ने सरकारों के खिलाफ संघर्ष न किया, तो आने वाले समय में धान की फसल व गेहूं भी समर्थन मूल्य से कम बिकेगी।