खेती में 'इंजीनियरिंग', मोगा के जसप्रीत ने इस तकनीक से खेती कर किया कमाल, स्ट्राबेरी से हुआ मालामाल
पंजाब के मोगा के जसप्रीत ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद नौकरी की तलाश की पर वेतन ज्यादा नहीं मिल पाया। इसके बार उन्होंने खेती करने की सोची। स्ट्राबेरी की खेती में जसप्रीत ने तकनीक का इस्तेमाल किया और मालामाल हो गया।
मोगा [सत्येन ओझा]। कृषि सुधार बिलों को लेकर पंजाब के किसान जब सड़कों अपना गुस्सा उतार रहे थे, उन्हीं दिनों में शहर का एक युवा इंजीनियर अपनी पढ़ाई का इस्तेमाल कर खेती को नए मायने दे रहा था। जसप्रीत सिंह ने धान व गेहूं से अलग हटकर शहर के बाहरी क्षेत्र में दो कनाल जमीन पर स्ट्राबेरी की खेती शुरू की। इस पर करीब दो लाख रुपये की लागत आई, लेकिन यह पहले दो महीने में ही वसूल हो गई। वह रोज खुद स्ट्राबेरी की ट्रे तैयार करते हैं, खुद ही मार्केटिंग करते हैं। मार्च के अंत तक अच्छी फसल मिलती रहेगी। तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाने के बाद फल कम होने लगेंगे।
साल 2007 में शहर के लाला लाजपत राय ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन से मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद मोगा के जसप्रीत सिंह ने नौकरी की तलाश शुरू की तो शुरुआती वेतन 10 से 15 हजार रुपये का ही आफर मिला। किसान परिवार से आने वाले जसप्रीत सिंह को इससे काफी निराशा हुई। जसप्रीत ने बाद में पुराने ट्रैक्टर की सेल-परचेज का काम करना शुरू किया। इस धंधे में पैसा तो अच्छा बनने लगा, लेकिन जसप्रीत अलग पहचान बनाना चाहते थे। इंजीनियरिंग के बाद वह कुछ बड़ा करना चाहते थे। एक बार विदेश जाने की भी सोची, लेकिन दोस्तों के अनुभव के बाद मन बदल दिया।
आखिरकार उन्होंने सोचा कि क्यों न पुश्तैनी धंधे में कुछ नया किया जाए। बस इसी सोच के साथ उन्होंने मुक्तसर में अपनी बुआ के बेटे की पहचान वाले किसान बलबिंदर सिंह से संपर्क किया। वे स्ट्राबेरी के साथ कई प्रकार के फलों पर बढिय़ा काम कर रहे हैं। जसप्रीत को स्ट्राबेरी की खेती भा गई। उन्होंने बलबिंदर से खेती का तरीका समझा और सबसे ज्यादा पैदावार करने वाले पुणे व हिमाचल प्रदेश के गांवों का दौरा किया। दो साल तक बारीकियां सीखने के बाद दो कनाल जमीन पर स्ट्राबेरी की खेती शुरू की।
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खुद बनाया ड्रिप इरिगेशन सिस्टम
15 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर पैदा होने वाली स्ट्राबेरी के उत्पादन के लिए जसप्रीत सिंह ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई का इस्तेमाल किया। उन्होंने खुद ड्रिप इरिगेशन (तुपका सिंचाई) सिस्टम तैयार किया, ताकि कम पानी से भी अच्छी पैदावार हो सके। तापमान को मेंटेन रखने के लिए क्यारियों में पालीथिन कवर का प्रयोग किया। इसके बाद लोहे के सरिए को अर्धचंद्राकार में मोड़ कर क्यारियों के ऊपर गाड़ दिया, ताकि अक्टूबर में बिजाई के बाद जब दिसंबर-जनवरी में तापमान में कमी आए तो पौधों को पालीथिन से ढककर बचाया जा सके। जैसे ही तापमान ज्यादा होता है पॉलीथिन का कवर हटा दिया जाता है।
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जसप्रीत सिंह की ये तरकीब काम आई। पहले साल में ही मुनाफा दो गुणा होने की उम्मीद है। उन्होंने अगली बार स्ट्राबेरी का रकबा बढ़ाने की सोची है। इसके साथ ही दूसरे हिस्सों में वे अन्य फल व सब्जियां लगाएंगे। इनमें छोटा तरबूज, आडू, मिर्च व ब्रोकली शामिल है। वह खेती में अत्याधुनिक टेक्नोलाजी का इस्तेमाल करेंगे। जसप्रीत सिंह कहते हैं कि स्ट्राबेरी पहले साल से ही मुनाफा दे रही है। अब स्ट्राबेरी की खेती की तकनीक जानने के लिए पंजाब के कई जिलों से किसान उनके पास आ रहे हैं। वे खुद मार्केटिंग सीख रहे हैं। वे चाहते हैं कि बड़े व्यापारी उनके खेत तक आएं।
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रोज तीन हजार से ज्यादा की कमाई
प्रति एकड़ स्ट्राबेरी का सालाना खर्च चार से साढ़े चार लाख रुपये आता है। इससे आमदनी 10 से 12 लाख की होती हैं। प्रतिदिन दो कनाल जमीन से जसप्रीत सिंह 12 से 15 ट्रे माल निकालते हैं। खर्च निकालकर वह इससे रोज करीब 3200 से लेकर 3500 रुपये कमा लेते हैं। एक एकड़ में औसतन शुरुआत के दिनों में 500 ट्रे प्रतिदिन और सीजन के अंतिम दिनों में 250 से 300 ट्रे पैदा होती हैं।
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