लुधियाना में डाइंग इंडस्ट्री का प्रदूषित पानी प्रशासन के लिए बना सिरदर्द, सब्सिडी नहीं मिलने पर CETP का काम अटका
डाइंग इंडस्ट्री का गंदा पानी प्रशासन के लिए परेसानी का सबव बन गया है। उद्यमियाें के सामने कई बार मामला उठाने के बाद भी इस समस्या का समाधान नहीं हाे पा रहा है।
लुधियाना, [राजीव शर्मा]। डाइंग इंडस्ट्री का गंदा पानी प्रशासन के लिए सिरदर्द बना हुआ है। वहीं तमाम मानक पूरे कर रहे उद्यमियों को भी बार-बार कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है। बुड्ढा दरिया में प्रदूषण फैलने का ठीकरा सबसे पहले डाइंग उद्यमियों पर फोड़ने का मानो चलन ही बन गया हो।
इस संताप से निजात पाने के लिए खुद उद्यमियों ने सरकारी स्कीम से कॉमन एफ्ल्यूऐंट ट्रीटमेंट (सीईटीपी) लगाने की ठानी, लेकिन दस साल से वे सीईटीपी ही बना रहे हैं। सरकारी सब्सिडी नहीं मिलने पर कुछ महीनों से काम अटका हुआ है। अब उद्यमी कितनी रकम अपनी जेब से लगाते रहें, वे भी थक चुके हैं। एनजीटी ने दबाव बनाया तो राज्य सरकार ने सब्सिडी जारी कर दी, लेकिन अभी केंद्र का बकाया रहता है। डाइंग उद्यमी बॉबी जिंदल कहते हैं कि जैसे ही केंद्र से सब्सिडी मिलेगी, वे तो पूरा जोर लगाते हुए इसे तीन माह में पूरा कर देंगे।
फैक्ट्रियों से दूर हुए बुजुर्ग उद्यमी
उद्यमियों को अपनी फैक्ट्री से बेहद लगाव होता है। जीवन भर यहीं से सुख और समृद्धि हासिल की, समाज में पहचान बनाने हुए मुकाम हासिल किया। फैक्ट्री के अंदर हो रहे कामकाज को देख कर, श्रमिकों से बात किए बिना उद्यमियों की एक तरह से रोटी तक हजम नहीं होती। यह उनकी दिनचर्या ही नहीं, बल्कि जीवन का हिस्सा भी बन गया है। मगर कोरोना महामारी ने उनका पूरा सिस्टम ही बिगाड़ दिया है।
संक्रमण से बचाव की गाइडलाइंस में दस साल के बच्चे एवं वरिष्ठ नागरिकों को घर में ही रहने और पूरी एहतियात बरतने के लिए कहा गया। इससे कहीं न कहीं फोकल प्वाइंट स्थित उद्यमी सुभाष चंद्र भी प्रभावित हुए। वह चुटकी लेते हुए कहते हैं कि कोरोना ने तो नजरबंद ही कर दिया है। बच्चे भी उन्हेंं फैक्ट्री में जाने ही नहीं देते। कोरोना काल की दिनचर्या में अब काम का स्वाद नहीं आ रहा है।
कुंडली में सांप बनकर बैठा कोरोना
लुधियाना में रेडिमेड कपड़ों का होलसेल कारोबार काफी होता है। होजरी का हब होने के कारण हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर समेत आसपास के राज्यों एवं शहरों से व्यापारी यहां माल की खरीद करने के लिए आते हैं। ज्यादातर व्यापारी वीकएंड को खरीदारी करते थे, लेकिन कोरोना के कारण पहले दो माह तक कफ्र्यू और फिर लॉकडाउन ने होलसेल कारोबार की दशा ही बिगाड़ दी है। सरकार ने ढील जरूर दी है, लेकिन शाम को बंद होने की पाबंदियों ने कारोबार में मंदी ला दी है।
हिमाचल में सख्ती के कारण व्यापारी नहीं आ रहे हैं। बाकी अन्य शहरों से भी कारोबारी इधर का रुख नहीं कर रहे। अकालगढ़ मार्केट स्थित होलसेल दुकानदार गुङ्क्षरदर सिंह कहते हैं कि कोरोना ने तो होलसेल कारोबार चौपट करके रख दिया है। नया माल बिकना तो दूर, पुरानी पेमेंट तक वसूलना मुश्किल हो रहा है। पता नहीं कोरोना कब तक हमारी कुंडली में सांप बनकर बैठा रहेगा।
काम की खुशी, पर छत नसीब नहीं
जब कोरोना ने दस्तक दी तो लाखों श्रमिक शहर से अपने मूल गांवों को लौट गए। अनलॉक होते ही श्रमिक अब लौट रहे हैं। फैक्ट्रियों में काम मिलने से वह खुश भी हैं, लेकिन कई श्रमिकों के लिए नई समस्या खड़ी हो गई है। दरअसल, पुलिस के आदेश हैं कि बिना प्रमाणपत्र के मकान मालिक किरायेदार को नहीं रख सकते। उसका वेरिफिकेशन करवाना भी जरूरी है। अब लौटे कई श्रमिक आधार कार्ड घर में ही भूल गए हैं।
नतीजतन किराये का मकान नहीं मिलने पर उनकी सारी खुशी काफूर हो रही है। उधर, मकान मालिक भी बिना आधार कार्ड एवं पूरे विवरण के किराये पर कमरा देने को तैयार नहीं, क्योंकि उनसे पुलिस पूछती है। ऐसे में उन्हेंं पुलिस के डंडे का भी भय है। श्रमिकों को घर किराये पर देने वाले एक व्यक्ति ने यह बात बताई और कहा कि वह तो कागजात देखकर ही कमरा किराये पर देंगे।