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लुधियाना के दंडी स्वामी महाराज के कमंडल में अचूक शक्ति, जल ग्रहण करने से हो जाते है कई रोग दूर

दंडी स्वामी जिस सथान पर तपस्या की वह अब श्री दंडी स्वामी तपोवन के नाम से लुधियाना के प्रमुख धार्मिक स्थलों में अपनी जगह बना चुका है। लुधियाना ही नहीं देश-विदेश में बसे लुधियानवियों के लिए श्री दंडी स्वामी जी महाराज की यह तपस्थली आस्था का केंद्र है।

By Vipin KumarEdited By: Published: Mon, 30 Nov 2020 08:53 AM (IST)Updated: Mon, 30 Nov 2020 08:53 AM (IST)
लुधियाना के दंडी स्वामी महाराज के कमंडल में अचूक शक्ति, जल ग्रहण करने से हो जाते है कई रोग दूर
दंडी स्वामी ने शहर को धार्मिक क्षेत्र में विशेष पहचान दिलाई।

लुधियाना, [राजेश भट्ट]। लुधियाना भले ही साइकिल व होजरी इंडस्ट्री के लिए विश्व विख्यात है पर यहां एक शख्स ऐसे भी थे जिन्होंने शहर को धार्मिक क्षेत्र में विशेष पहचान दिलाई। श्री दंडी स्वामी जी महाराज ही वह शख्स थे जो 60 सालाें तक लुधियाना की कुशलता के लिए तपस्या में लीन रहे।लाेगाें की मान्यता है कि यहां पर स्वामी जी के पास कमंडल है, जिससे जल ग्रहण करने मात्र से कई रोग दूर हो जाते हैं।

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मंदिर के पुजारी रोजाना उनके इस कमरे की सफाई करवाते हैं और उनके सामान को खुद साफ करते हैं। उनके कमंडल में रोजाना पानी बदला जाता है। श्रद्धालु उनकी इस धरोहर के दर्शन शीशे के बाहर से ही करते हैं। जिस स्थान पर उन्होंने तपस्या की वह अब श्री दंडी स्वामी तपोवन के नाम से लुधियाना के प्रमुख धार्मिक स्थलों में अपनी जगह बना चुका है। लुधियाना ही नहीं देश-विदेश में बसे लुधियानवियों के लिए श्री दंडी स्वामी जी महाराज की यह तपस्थली आस्था का केंद्र है।

मंदिर ट्रस्ट ने अब श्री दंडी स्वामी जी महाराज की इस तपस्थली को एक विशाल व भव्य मंदिर प्रांगण में तबदील कर दिया। यही नहीं जिस स्थान पर वह तपस्या में लीन रहते थे उस स्थान पर उनकी एक प्रतिमा स्थापित कर दी है। जहां श्रद्वालु आकर माथा टेकते हैं।

श्री दंडी स्वामी महाराज सामन्यत: तपस्या में लीन रहते थे, लेकिन हर संक्रांति को वह इसी स्थान पर बैठकर भक्तों का प्रवचन देते थे। उनके प्रवचन सुनने के लिए लोग दूर दूर से आते थे। संक्रांति पर प्रवचन की परंपरा को आज भी उसी तरह निभाया जाता है। संक्रांति पर बड़ी संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं और मंदिर के पुजारी उन्हें श्री दंडी स्वामी जी के प्रवचन सुनाते हैं। मंदिर प्रांगण में ट्रस्ट ने एक कमरा बनाया है जहां श्री दंडी स्वामी जी की एक एक वस्तु को संरक्षित किया गया है। जिसमें उनके खड़ाऊ, आसन, मृगछाल, कमंडल और जिस तख्तपोश पर व विश्राम करते थे उसे रखा गया है।

श्री दंडी स्वामी जी गाेभक्त थे इसलिए अब प्रांगण में गाेशाला का भी निर्माण किया गया है। ट्रस्ट ने इस परिसर में भगवान शिव व दुर्गा के विशाल मंदिर स्थापित किए हैं।

बरगद के पेड़ को बना दिया था उत्तराधिकारी

श्री दंडी स्वामी तपोवन के अंदर एक विशाल बरगद का पेड़ है। जिस पर भक्त चालिया करते हैं। चालिया का अर्थ है कि किसी मानोकामना को लेकर लगातार चालीस दिन तक बरगद के पेड़ पर पानी अर्पित करना और उसकी पूजा करना। मंदिर के पुजारी महानंद बताते हैं स्वामी जी से मिलने हजारों की संख्या में भक्त आते थे लेकिन उन्होंने किसी को अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाया बल्कि इसी बरगद के पेड़ को अपना उत्तराधिकारी बता दिया था। तब से ही लोग इस बरगद के पेड़ की पूजा करते आ रहे हैं और यहां पर चालिया करते हैं। उन्होंने बताया कि यहां चालिया करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।


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