धान की सीधी बिजाई के फायदे ही फायदे, पानी और पैसे दोनों की बचत, पर पंजाब अभी लक्ष्य से दूर
पंजाब में हालांकि पिछले सालों के मुकाबले धान की सीधी बिजाई की रकबा बढ़ा है लेकिन यह लक्ष्य के अनुरूप नहीं है। दस लाख हेक्टेयर में सीधी बिजाई की लक्ष्य रखा गया था लेकिन केवल साढ़े छह लाख हेक्टेयर में ही सीधी बिजाई हुई है।
जागरण संवाददाता, लुधियाना। पंजाब में भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है। इसे बचाने के उद्देश्य से पंजाब में पारंपरिक विधि के बजाय अब धान की सीधी बिजाई (डीएसआर पद्धति) को प्रोत्साहित किया जा रहा है। पिछले साल कोरोना महामारी के संकट के बीच पंजाब में पांच लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान सीधी बिजाई के तहत लगाया गया था, जबकि इस साल कृषि विभाग ने दस लाख हेक्टेयर क्षेत्र को धान की सीधी बिजाई के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा था।
तमाम कोशिशों के बावजूद विभाग इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया है और इस साल साढ़े छह लाख हेक्टेयर क्षेत्र सीधी बिजाई के दायरे में लाया जा सका। हालांकि दूसरे साल में लेबर की उपलब्धता होने के बावजूद डीएसआर के तहत डेढ़ लाख हेक्टेयर क्षेत्र के बढ़ने से कृषि वैज्ञानिक उत्साहित हैं। पीएयू के एग्रोनामी विभाग के प्रमुख डा. मक्खन सिंह भुल्लर कहते हैं कि पिछले साल जब रकबा बढ़ा, तब यह कहा जा रहा था कि किसानों ने कोरोना महामारी संकट में लेबर की शार्टेज की वजह से इस तकनीक को अपनाया। इस साल तो लेबर की बिलकुल शार्टेज नहीं थी।
उन्होंने कहा कि किसानों को आसानी से लेबर मिल रही थी, इसके बाद भी किसानों ने पारंपरिक विधि से धान लगाने के बजाय इस तकनीक से बिजाई की, जो कि यह दर्शाता है कि किसानों का डीएसआर पद्धति पर भरोसा बढ़ा है। साल 2009 में 23 हजार हेक्टेयर क्षेत्र धान की सीधी बिजाई के तहत था, जो कि साल 2020 में बढ़कर पांच लाख हेक्टेयर क्षेत्र हो गया और इस साल साढ़े छह लाख हेक्टेयर क्षेत्र सीधी बिजाई के दायरे में लाया गया है।करीब 15 से 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। हमारे लिए सबसे बड़ी बात यह है कि डीएसआर पद्धति के तहत एरिया घटा नहीं।
उन्होंने कहा कि अगर एरिया घटता तो हम कह सकते थे कि किसानों ने डीएसआर पद्धति से गुरेज कर रहे हैं। रकबा बढ़ने से साफ है कि इस पद्धति को लेकर किसानों का कांफीडेंस डेवलप हुआ है। हमें उम्मीद है कि आने वाले सालों में डीएसआर के तहत एरिया अब लगातार बढ़ेगा।
सीधी बिजाई से पानी और पैसे दोनों की होती है बचत
जिसने भी धान की सीधी बिजाई की है, उनका प्रति एकड़ चार से पांच हजार रूपये खर्च कम हो जाता है। यह पद्धति न केवल पानी की बचत करती है, बल्कि श्रमिकों की कमी का भी समाधान करती है। सबसे बड़ी बात यह है कि धान की सीधी बिजाई वाले खेत में गेहूं लगाने पर झाड़ भी अधिक निकलता है। डा. भुल्लर कहते हैं कि किसानों से मिले फीडबैक के अनुसार इस बार उन्हें डीएसआर को लेकर कोई डर नहीं था।