मनोवांछित गुणों के बिना व्यक्ति किसी को सुख नहीं दे सकता
सिविल लाइंस जैन स्थानक महावीर भवन में चातुर्मास कथा में उप-प्रवर्तक श्री पीयूष मुनि ने दैनिक प्रवचनों में कहा कि मानव पर्याय पाना बहुत मुश्किल नहीं है, पर यदि कोई उपलब्धि दुर्लभ है तो वह मानवता की आबादी बढ़ते-बढ़ते आठ अरब तक पहुंच गई है परंतु मानवता दुर्लभ है।
संस, लुधियाना : सिविल लाइंस जैन स्थानक महावीर भवन में चातुर्मास कथा में उप-प्रवर्तक श्री पीयूष मुनि ने दैनिक प्रवचनों में कहा कि मानव पर्याय पाना बहुत मुश्किल नहीं है, पर यदि कोई उपलब्धि दुर्लभ है तो वह मानवता की आबादी बढ़ते-बढ़ते आठ अरब तक पहुंच गई है परंतु मानवता दुर्लभ है।
किसी काम को करने के लिए व्यक्ति की जरूरत का विज्ञापन करते ही हजारों व्यक्ति सिफारिश लेकर नौकरी के लिए आ जाते हैं। वस्तुओं की कीमत बढ़ गई है पर मनुष्यों की कीमत घट गई है। खाद्य पदार्थ महंगे होकर आसमान को छू रहे हैं। पर मानव सस्ता होता जा रहा है। मानव तथा मानवता में उतना अंतर है, जितना पिसे हुए आटे और बनी हुई रोटी में। पिसा हुआ आटा मनुष्य के खाने के काम में नहीं आता, जब तक उसे खाने योग्य नहीं बनाया जाता। इसी तरह ही मानव शरीर है। मानव शरीर होने पर भी अगर उसमें मनोवांछित गुण नहीं हैं तो वह किसी का शुभचिंतक तथा सुख प्रदाता नहीं बन सकता। ऐसा मानव सिर्फ अपना पेट भर लेता है। पर सिर्फ इसी आधार पर उसे पशु पक्षियों से श्रेष्ठ नहीं माना जा सकता।
मुनि श्री ने कहा कि यदि किसी मानव को बैत, गधे या घोडे़ के समान बताया जाए तो वह कुपित हो जाता है। मानव के लिए पशुत्व का प्रयोग हो तो उसे शर्मनाक लगता है। पशु अपनी भूख प्यास मिटाते हैं तथा मस्त रहते है। वे किसी का बुरा नहीं सोचते और बेवजह किसी को कष्ट नहीं पहुंचाते, उल्टा अनेक पशु तो मनुष्य के लिए अपने प्राण भी त्याग देते हैं। जो मनुष्य दूसरों के प्रति ईष्र्या विद्वेष की भावना रखते हैं, दूसरों को दुखी करते हैं, उन्हें पशुओं से श्रेष्ठ कैसे कहा जाएगा। आज मानव मानवता छोड़कर दानवता का सेवक बन गया है।