लुधियाना में श्री दंडी स्वामी के दर्शनों काे लगता है भक्ताें का तांता, तख्तपोश आज भी सुरक्षित
तपस्या के दौरान स्वामी जी किसी को भी दर्शन नहीं देते थे। वह खुद की तपस्या में लीन रहा करते थे। लेकिन 1951 में पंडित जगदीश चंद्र कोमल ने स्वामी जी से आग्रह किया कि भक्तों में उनके प्रति अथाह आस्था है और वह उनके दर्शन करना चाहते हैं।
लुधियाना, [राजेश भट्ट]। श्री दंडी स्वामी जी महाराज ने कई सालाें तक तपस्या की और सनातन धर्मावलंबियों के पथ प्रदर्शक बने रहे। उनके परलोक गमन के बाद भी उनके प्रति लोगों में अपार श्रद्धा है। लोगों की श्रद्धा का आलम यह है कि श्री दंडी स्वामी सिद्धपीठ में जिस तख्तपोश पर स्वामी जी ने अंतिम समाधि ली उसे सुरक्षित रखा गया है और उस पर उनकी प्रतिमा को स्थापित किया गया है। उस तख्तपोश के दर्शनों के लिए आज भी श्री दंडी स्वामी सिद्ध पीठ में भक्तों का तांता लगा रहता है।
श्री दंडी स्वामी सिद्धपीठ में मत्था टेकते भक्त। (कुलदीप काला)
सनातन धर्मावलंबियों की मान्यता है कि लुधियाना के श्री दंडी स्वामी सिद्धपीठ में तख्तपोश व स्वामी जी की प्रतिमा के दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। दंडी स्वामी जी ने कई वर्षो तक तपोवन में तपस्या की और अपने आखिरी समय में सिद्धपीठ में आ गए। 14 सितंबर 1962 में स्वामी जी ने सिद्धपीठ में प्रवेश किया और 24 अगस्त को स्वामी जी परलोक सिधार गए। जीवन के आखिरी समय में स्वामी जी ने अमर सिंह नाम के मिस्त्री को बुलाया और उसे एक तख्तपोश बनाने को कहा।
1963 में तैयार हुआ था तख्तपोश
श्री दंडी स्वामी सिद्धपीठ का बाहरी दृश्य। (कुलदीप काला)
मिस्त्री अमर सिंह ने भी बड़े भाव के साथ स्वामी जी के लिए तख्तपोश तैयार किया। 23 अगस्त 1963 को तख्तपोश तैयार हुआ और स्वामी जी उस पर समाधि मुद्रा में विराजमान हुए। 24 अगस्त को स्वामी जी इसी तख्तपोश पर चिर समाधि में लीन हो गए। उसके बाद से इस तख्तपोश को यहीं पर स्थापित किया गया और फिर उसके ऊपर स्वामी जी की प्रतिमा स्थापित की गई। खास बात है कि जहां पर स्वामी जी परलोक सिधारे थे वहीं पर उनकी समाधि बनाई गई और समाधि के ऊपर इस तख्तपोश को रखा गया है। स्वामी जी की समाधि स्थल पर बरगद और पीपल का पेड़ लगाया है।
हर रविवार को भक्तों को दर्शन देते थे महाराज
तपस्या के दौरान स्वामी जी किसी को भी दर्शन नहीं देते थे। वह खुद की तपस्या में लीन रहा करते थे। लेकिन 1951 में पंडित जगदीश चंद्र कोमल ने स्वामी जी से आग्रह किया कि भक्तों में उनके प्रति अथाह आस्था है और वह उनके दर्शन करना चाहते हैं। इसलिए उन्हें भक्तों को दर्शन देने चाहिए। स्वामी जी ने उनकी बात मान ली और रविवार को भक्तों को दर्शन देने शुरू किए। इस दौरान सत्संग होने लगा। श्री दंडी स्वामी सिद्ध पीठ में यह परंपरा आज भी चली आ रही है और रविवार को यहां पर सत्संग होता है।