अगर आप सांवले हैं तो यह गंभीर रोग नहीं जकड़ेगा आपको
जितना अधिक मेलानिन होगा, उतना ही रंग काला होगा, परंतु काला रंग बुरा नहीं है। मेलानिन पिगमेंट हमें पराबैंगनी किरणों के दुष्प्रभाव से बचाता है। इससे स्किन कैंसर का खतरी कम होता है।
लुधियाना [आशा मेहता]। आपको अपने सांवलेपन से दुखी होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि आपका सांवला रंग ही आपको स्किन कैंसर जैसे गंभीर रोग से बचाता है। सांवले लोगों को पराबैंगनी किरणों से होने वाला स्किन कैंसर होने की संभावना बहुत कम होती है। यह जानकर आप भी हैरान होंगे, लेकिन यह सच है। दयानंद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में कुछ दिन पहले आयोजित दो दिवसीय डर्मोटोलॉजी व लेप्रोलॉजी कांफ्रेंस में यह जानकारी सामने आई है।
इंडियन एसोसिएशन ऑफ डर्मोटोलॉजिस्ट, वेनिरियोलॉजिस्ट एंड लेप्रोलॉजिस्ट (आइएडीवीएल) के पूर्व नेशनल वाइस प्रेजीडेंट व एमएम मेडिकल कॉलेज मूलना अंबाला के डर्मोटोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड प्रो. डॉ. संजीव गुप्ता का कहना है कि हमारी चमड़ी का रंग मुख्य तौर पर मेलानिन रसायन की मात्रा पर निर्भर करता है। यह मेलानिन मेलोनोसाइटिस कोशिकाएं बनाता है।
चमड़ी में जितना अधिक मेलानिन होगा, उतना ही रंग काला होगा, परंतु काला रंग बुरा नहीं है। मेलानिन पिगमेंट हमें पराबैंगनी किरणों के दुष्प्रभाव से बचाता है। यह सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों को चमड़ी की ऊपरी सतह में ही चूस कर चमड़ी के अंदर की परतों तक प्रवेश नहीं करने देता। इससे हम पराबैंगनी किरणों से होने वाले स्किन कैंसर से बचे रहते हैं। मेलानिन एक नेचुरल सन स्क्रीन की तरह काम करता है।
भारतीयों की त्वचा का रंग मेडिकल साइंस में सबसे उच्च श्रेणी में
डॉ. संजीव गुप्ता के अनुसार मेडिकल साइंस में धूप की किरणों के दुष्प्रभाव व चमड़ी की धूप की किरणों के प्रति सहनशीलता के आधार चमड़ी के छह प्रकार बताए गए हैं। टाइप एक व दो में मेलानिन बहुत कम होने से स्किन का रंग बहुत ज्यादा सफेद होता है। अमेरिकन व रशियन की चमड़ी इसी श्रेणी में आती है। सेंटर ऑफ डिजीज कंट्रोल के आंकड़ों के अनुसार टाइप एक व दो श्रेणी के लोगों में स्किन कैंसर की समस्या अधिक पाई गई है।
दूसरी तरफ एशियन, विशेषकर भारतीय लोगों की त्वचा टाइप 5 में आती है। भारतीयों की त्वचा का रंग न तो बहुत ज्यादा काला और न ही बहुत ज्यादा सफेद होता है। इसलिए मेडिकल साइंस में भारतीय त्वचा सबसे उच्च श्रेणी में है। भारतीय त्वचा में मेलानिन अधिक मात्रा में होता है। मेलानिन की वजह से ही एशियन लोगों में त्वचा कैंसर कम पाया जाता है। एक लाख के पीछे सिर्फ एक से तीन मरीज ही देखे गए हैं।
परामर्श : बिना क्रीम लगाने से त्वचा हो सकती है खराब
डॉ. गुप्ता कहते हैं कि गोरे होने के लिए विभिन्न उत्पाद जो बाजार में भरे पड़े हैं, उनमें से कुछ उत्पादों में स्टीरॉयड इस्तेमाल हो रहा है। स्टीरॉयड युक्त दवाइयां लगाने से कुछ समय के लिए तो चमड़ी के रंग में बदलाव आ जाता है, लेकिन लंबे समय तक यह दवाइयां लगाने से चमड़ी पतली व नाजुक हो जाती है। इसके साइड इफेक्ट चेहरे पर बाल, काफी ज्यादा मुंहासे, दाद, फोड़े के रूप में सामने आते हैंं। इससे एक वक्त ऐसा आता है जब चमड़ी स्थायी रूप से खराब हो जाती है और इलाज बहुत मुश्किल हो जाता है।
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फेयरनेस क्रीम शेडयूल 'एच' कैटागिरी में हो शामिल
डॉ. गुप्ता ने बताया कि भारत सरकार से मांग की गई है कि कुछ स्टीरॉयड युक्त फेयरनेस क्रीमों के दुष्प्रभावों को देखते हुए इसे शेड्यूल एच कैटागिरी में शामिल किया जाना चाहिए। स्टीरॉयड युक्तदवा को चिकित्सक के परामर्श के बगैर बेचने पर प्रतिबंध लगाया जाए, ताकि इसके दुष्प्रभावों को रोका जा सके।