साइकिल की सवारी मोटरसाइकिल पर भारी... कोरोना काल ने बदली इंडस्ट्री की किस्मत
कोरोना काल के दौरान लोगों में इम्यूनिटी बढ़ाने का क्रेज बढ़ा है। इसी कारण उनकी साइक्लिंग में दिलचस्पी में दिलचस्पी बढ़ गई है। इससे डिमांड में भी इजाफा हुआ है।
लुधियाना, [राजीव शर्मा]। रफ्तार के दौर में साइकिल कहीं न कहीं पिछड़ता चला गया। साइकिल के बजाय लोगों ने मोटरसाइकिल को तवज्जो देनी शुरू की। नतीजतन बाइक और स्कूटर का बाजार बढ़ता गया और साइकिल की मार्केट एक दायरे में ही सिमट कर रह गई। कोरोना काल में लॉकडाउन के बाद ऑटो खासकर दोपहिया वाहन ने बाजार में अपनी पुरानी स्पीड नहीं पकड़ी जबकि साइकिल लोगों की पसंद बनकर ऊभरा और धड़ाधड़ बिक्री होती गई। कोरोना से बचने के लिए जब इम्यूनिटी बढ़ाने का चलन चला तो लोग साइकिल चलाने में दिलचस्पी लेने लगे हैं। इससे साइकिल उद्यमियों के सीने भी तने हुए हैं। उद्यमी विशाल कहते हैं कि कभी सोचा नहीं था कि साइकिल इस तरह से अप होगा। साइकिल की मांग ने तो इस बार कमाल कर दिया है। अर्से बाद लोग इसके दीवाने हो रहे हैं। अच्छी बात है कि साइकिल का भविष्य भी सुधरता दिख रहा है।
इनोवेशन अभी नहीं...
बाजार में टिके रहने के लिए महानगर के उद्यमी अकसर नए प्रयोग करते रहते हैं। दुनिया भर के आइडियाज को यहां लाकर उसे नए रंग रूप में पेश करके ग्राहकों को आकर्षित करने की कला में यहां के उद्यमी माहिर हैं। लुधियाना के उद्यमियों के बारे में विख्यात है कि यदि वे एक मशीन को कहीं भी देख लें तो उससे मिलती-जुलती मशीन तैयार कर लेते हैं, लेकिन कोविड ने उनकी इनोवेशन को भी मानो डस लिया है। बायर ने उद्यमी मनजीत ङ्क्षसह से उनकी नई इनोवेशन के बारे में सवाल किया तो वह तपाक से बोले कि अब तो स्थिति ऐसी है कि पुराने को ही संभालना मुश्किल हो रहा है। सारा ध्यान तो पहले से चल रहे कारोबार को संभालने में लगा है। ऐसे में इनोवेशन कहां से होगी। अब तो हालत सुधरने के बाद ही कुछ नया करेंगे। कुछ ऐसी ही हालत अन्य उद्यमियों की भी है।
इनके लिए कफ्र्यू जारी
जब कोरोना ने देश में दस्तक दी तो इतनी दहशत थी कि सरकार ने लॉकडाउन लगाया और लोग घरों में ही बंद हो गए। बेवजह बाहर जाने से डर लगने लगा कि कहीं संक्रमण की चपेट में न आ जाएं। हर वक्त मास्क नाक के उपर और सैनिटाइजर जेब में रहता था। दो गज की दूरी से ही बात होती रही। इसके बाद कोरोना संक्रमितों की बाढ़ आने लगी और लोग भी बेखौफ होते गए। अभी भी बच्चों और बुजुर्गों के बाहर निकलने पर प्रशासन की तरफ से प्रतिबंध हैं। शहर में कई बुजुर्ग उद्यमी राजनीति एवं औद्योगिक क्षेत्र में काफी सक्रिय हैं। अकसर पार्टियों में जाना, औद्योगिक बैठकों का हिस्सा बनना उनकी दिनचर्या का हिस्सा रहता। पिछले दिनों उनको एक बैठक में हिस्सा लेने के लिए न्यौता आया तो उद्यमी मदन मोहन ने कहा कि हमारे लिए तो कफ्र्यू अभी खत्म नहीं हुआ। आजकल बाहर आना-जाना बंद किया है।
बातों से काट नहीं
अंतरराष्ट्रीय सीमा पर उकसाने की हरकतों को लेकर लोगों में चीन के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है। चीन के उत्पादों के बहिष्कार की आवाजें आ रही हैं। सरकार ने भी कई तरह की पाबंदियां लगा दी हैं। चीन के सामान को लेने से अब लोग कतराने लगे हैं। ऐसे में अब चीन के विकल्प भी तलाशे जा रहे हैं। कई सेक्टरों में चीनी सामान का काफी दबदबा है। इसे गर्म विषय पर उद्यमी मंथन कर रहे थे। तभी कारोबारी अमरजीत ने कहा कि केवल बातों से चीन को पछाड़ा नहीं जा सकता। इसके लिए दृढ़ निश्चय, मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर और विश्व स्तरीय तकनीक एवं रिसर्च की जरूरत है। सभी हवा में ही बातें कर रहे हैं और जमीन पर कुछ नजर नहीं आ रहा। चीन का विकल्प बनने के लिए सभी को तत्परता से जुटकर काम करना होगा। विश्व स्तर पर खुद को साबित करना होगा। तभी कुछ हासिल होगा।