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लुधियाना के घंटाघर को बनाने में लग गए थे 44 साल, महारानी विक्टोरिया की याद में किया था निर्माण

लुधियाना वासियों को शायद पता नहीं होगा कि रेलवे स्टेशन के नजदीक बने इस घंटाघर के निर्माण में 44 साल का वक्त लग गया था। जब घंटाघर का निर्माण हुआ था तब यह शहर की सबसे ऊंची इमारत हुआ करती और शहर के हर कौने से घंटाघर दिखा करता था।

By Vipin KumarEdited By: Published: Sat, 05 Dec 2020 09:32 AM (IST)Updated: Sat, 05 Dec 2020 09:32 AM (IST)
लुधियाना के घंटाघर को बनाने में लग गए थे 44 साल, महारानी विक्टोरिया की याद में किया था निर्माण
लधियाना के घंटाघर का निर्माण कार्य 1862 में शुरु हुआ था। (कुलदीप काला)

लुधियाना, [राजेश भट्ट]। अंग्रेजों ने हर शहर में अपनी महारानी विक्टोरिया की याद में घंटाघर बनाए। अंग्रेजों ने शहरों के व्यस्ततम स्थानों पर घंटाघर बनवाए ताकि लोग उनकी महारानी को हमेशा याद रख सकें। उस दौर में बहुमंजिला इमारतों के निर्माण के लिए टेक्नाेलाजी इतनी एडवांस नहीं थी इसलिए घंटाघर जैसी ऊंची इमारत बनाने में काफी वक्त लग जाता था।

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लुधियानावासियों को शायद पता नहीं होगा कि रेलवे स्टेशन के नजदीक बने इस घंटाघर के निर्माण में 44 साल का वक्त लग गया था। जब घंटाघर का निर्माण हुआ था तब यह शहर की सबसे ऊंची इमारत हुआ करती और शहर के हर कौने से घंटाघर दिखा करता था। यही नहीं घंटाघर के घंटे की आवाज भी शहर में दूर दूर तक सुनाई देती थी और लोगों को समय का बोध होता था।

1862 में शुरु हुआ था निर्माण

घंटाघर का निर्माण कार्य 1862 में शुरु हुआ था। 44 सालाें तक लगातार इसका निर्माण कार्य चलता रहा और 19 अक्तूबर 1906 को इसका निर्माण कार्य पूरा करके इसका उद्घाटन किया गया। घंटाघर की ऊंचाई 30 मीटर है और यह दस मंजिला है। 1906 में इसका उद्घाटन पंजाब के तात्कालिक लेफ्टिनेंट गवर्नर चार्ल्स और लुधियाना के ताकालिक डिप्टी कमिश्नर दीवान टेक चंद ने किया था। उस दौर में लोगों के पास घड़ियां नहीं हुआ करती थी और घंटाघर के घंटे की आवाज ही उनको समय की जानकारी देती थी।

आजादी से पहले घंटा बजाने के लिएलगती थी कर्मचारियों की डय़ूटी

आजादी से पहले घंटाघर में घंटा बजाने के लिए कर्मचारियों की डय़ूटी लगा करती थी। बाद में घंटा बजाने के लिए मशीन लगाई गई। घंटाघर का घंटा आजादी के कुछ साल तक बजता रहा और बाद में घंटा बजना बंद हो गया। अब स्मार्ट सिटी मिशन के तहत फिर से घंटाघर को रिपेयर किया गया और अब फिर से घंटे की आवाज आने लगी है। यही नहीं अब इस घंटाघर को लाइटनिंग के जरिए रात को अलग अलग शेड में देख सकते हैं। इसमें 36 तरह के शेड सेट किए गए हैं जो कि रात को कुछ देर बाद बदलते रहे हैं। घंटाघर की देखरेख पयर्टन विभाग व नगर निगम कर रहे हैं।

महारानी विक्टोरिया के बजाए अब बन गया भगवान महावीर जैन घंटाघर

घंटाघर 1990 तक भी पुराने शहर में सबसे ऊंची इमारतों में से एक हुआ करता था। इस घंटाघर को पहले महारानी विक्टोरिया मेमोरियल घंटाघर कहा जाता था। जब ज्ञानी जैल सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री बने तो जैन समाज ने उनके सामने एक मांग रखी कि इस घंटाघर का नाम भगवान महावीर जैन के नाम से रखा जाए। जिसके बाद पंजाब सरकार ने इसका नाम बदलकर भगवान महावीर जैन घंटाघर रख दिया।

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