फेसबुक पर आपके टशन से सहपाठियों को टेंशन
सोशल नेटवर्किग साइट्स का एक और साइड इफेक्ट सामने आया है। जब आप घर से बाहर टूर पर मजा ले रहे होते हैं।
राजन कैंथ, लुधियाना : सोशल नेटवर्किग साइट्स का एक और साइड इफेक्ट सामने आया है। जब आप घर से बाहर टूर पर मजा ले रहे होते हैं। तब साथ ही आप उन लम्हों को कैमरे में कैद कर फेसबुक पर अपलोड कर रहे होते हैं, तो भले ही उन पोस्ट पर आप खूब लाइक्स और कमेंट तो लेते हैं। साथ ही किसी को टेंशन देकर आप उसे डिप्रेशन में भी धकेल रहे होते हैं। शहर के मनोचिकित्सकों के पास इस खास वजह से डिप्रेशन का शिकार होकर पहुंचने वालों में ज्यादातर संख्या बच्चों व टीनएजर्स की है।
शहर की नामी स्कूल का छात्र हाल ही में अपने माता-पिता एवं परिवार के साथ विदेश यात्रा पर गया था। वहा उसने यादगार लम्हों को अपने कैमरे में कैद किया। बाद में उन फोटोज को अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के साथ शेयर करने के लिए उसने उन्हें फेसबुक पर अपलोड कर दिया। उन्हें देखकर असंख्य दोस्तों व रिश्तेदारों की ढेरों लाइक और कमेंट आए। उस छात्र की फोटोज का एक साइड इफेक्ट भी सामने आया। उसकी इन पोस्ट्स ने 9वीं कक्षा की छात्रा उसकी चचेरी बहन को साइकेटरिस्ट के पास पहुंचा दिया। लुधियाना के मॉडल टाउन में स्थित एक डॉक्टर के पास 2 महीने उसका इलाज चला। तब जाकर वो डिप्रेशन से बाहर आ सकी। डॉक्टर ने जब उसकी डिप्रेशन की वजह जानने के लिए उससे बातचीत की, तो पता चला कि अपने चचेरे भाई को ऑस्ट्रेलिया घूमते देख उसे महसूस हुआ कि वो वहा घूमने नहीं जा सकती, क्योंकि उसके माता-पिता की इतनी कमाई नहीं।
डॉक्टर के अनुसार अभिभावक अक्सर बच्चों के पेट व सिर दर्द की समस्या लेकर उनके पास आते हैं। मगर जब बच्चों से बात की जाती है तो पता चलता है कि वो अपने दोस्तों की सैर सपाटे की फेसबुक पोस्ट को लेकर टेंशन में आ चुके हैं। कई केसों में तो बच्चों से ज्यादा पेरेंट्स की भी काउंसलिंग करनी पड़ती है, क्योंकि संपन्न होने के बावजूद समय के अभाव के चलते वो बच्चों के साथ टूर पर जाने को तवज्जो नहीं दे पाते। काउंसलिंग में ऐसे पेरेंट्स को सलाह देनी पड़ती है। अगर उनकी क्षमता ज्यादा महंगा टूर करने की न हो तो वो बच्चों के साथ 1-2 दिन की टूरिंग जरूर करें। तेजी से आ रहे डिप्रेशन से पीड़ित मरीज
मनोचिकित्सक डॉ. रविंदर काला कहती हैं कि इस समस्या से पीड़ित मरीज तेजी से आ रहे हैं। सर्दियों व गर्मियों की छुट्टियों में इस समस्या से पीड़ित बच्चों व टीनएजर्स की संख्या और बढ़ जाती है। ज्यादातर बच्चों व टीनएजर्स को पहले कभी भी डिप्रेशन की ऐसी समस्या नहीं रही होती। इस तरह के मरीजों का कई बार 2 महीने तक इलाज चलता है। ये होते हैं लक्षण
-डिप्रेशन में जाने वाला बच्चा उदास रहने लगता है
- बात-बात पर रोता है
-गुमसुम व अकेला रहने लगता है
-उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता
- बच्चे को नींद भी नहीं आती
-वह नकारात्मक बातें करने लगता है
-भूख भी कम हो जाती है। बच्चों को मोबाइल व इंटरनेट न करवाएं मुहैया
डॉक्टर काला का कहना है कि छोटी उम्र के बच्चों को मोबाइल व इंटरनेट मुहैया कराना उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। इससे उनकी फिजिकल एक्टिविटीज खत्म हो जाएंगी। फेसबुक पर दोस्तों के भ्रमण की ऐसी फोटोज व पोस्टर देखकर वो डिप्रेशन में आ सकते हैं। बच्चों या टीनएजर्स में गुस्सा, गुमसुम रहने या कुछ अजीब से लक्षण नजर आएं तो उसे तुरंत मनोचिकित्सक के पास लेकर जाएं।