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विवादों के बीच आतंक के खिलाफ डटे रहे सुपरकॉर्प गिल

देश के मानचेस्टर के रूप में विख्यात लुधियाना आजादी के बाद से ही तेजी के साथ औद्योगिक शहर के रूप में विकसित हुआ। हालांकि एक समय पंजाब में छाए आतंकवाद का असर इस शहर पर भी पड़ा लेकिन यहां का औद्योगिक पहिया चलता रहा।

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Jan 2022 07:18 PM (IST)Updated: Fri, 21 Jan 2022 07:18 PM (IST)
विवादों के बीच आतंक के खिलाफ डटे रहे सुपरकॉर्प गिल
विवादों के बीच आतंक के खिलाफ डटे रहे सुपरकॉर्प गिल

भूपेंदर सिंह भाटिया, लुधियाना : देश के मानचेस्टर के रूप में विख्यात लुधियाना आजादी के बाद से ही तेजी के साथ औद्योगिक शहर के रूप में विकसित हुआ। हालांकि एक समय पंजाब में छाए आतंकवाद का असर इस शहर पर भी पड़ा, लेकिन यहां का औद्योगिक पहिया चलता रहा। पंजाब के साथ इस शहर में शांति बहाल करने के लिए तत्कालीन डीजीपी केपीएस गिल के कड़े कदमों ने अहम भूमिका अदा की थी और उसके बाद लुधियाना का सुरक्षा स्वरूप भी समय के साथ बदलता रहा। हालांकि डीजीपी गिल पर कई तरह के आरोप लगाते रहे, लेकिन लुधियाना के सुपरकॉर्प के रूप में मशहूर आइपीएस गिल ने दो बार राज्य के डीजीपी के रूप में योगदान किया और पंजाब में आतंक को नियंत्रित करने का श्रेय उन्हें दिया जाता है।

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1958 बैच के पुलिस अफसर केपीएस गिल ने 28 सालों तक नार्थ ईस्ट में सेवाएं देने के बाद 1984 में अपने जन्म स्थान पंजाब में वापसी की। उनके काम करने के 'नो-नानसेंस स्टाइल' के कारण उन्हें पंजाब में सुपरकॉर्प का नाम दिया गया। पंजाब में उन्होंने डीजीपी के रूप में पहले कार्यकाल में 1988 से 1990 तक आंतकवाद के खिलाफ काम किया। 1991 में उन्हें फिर दोबारा डीजीपी बनाया गया और 1995 में रिटायर्ड होने तक पंजाब में शांति बहाल करने में लगे रहे। पंजाब में पहले डीजीपी कार्यकाल की तुलना दूसरे कार्यकाल से की जाए तो उसमें हिसा ज्यादा देखने को मिली। हालांकि खालिस्तानी मूवमेंट के दौरान उन पर मानवाधिकार उल्लंघन के लगातार आरोप लगते रहे, लेकिन वह अपने मिशन से हटे नहीं। जिस तरह से उन्होंने पंजाब में बहाली के लिए काम किया, उसे देखते हुए अन्य राज्यों और देशों ने भी अपने यहां आतंकवाद के खिलाफ उनसे सलाहकार के रूप में सेवाएं ली। मई 1988 में उन्होंने आपरेशन ब्लैक थंडर चलाया था, जो काफी चर्चित रहा।

आतंकवादियों को पकड़ने व ढेर करने वालों के दिए इनाम

1992 में जब पंजाब पूरी तरह हिसा में डूबा था, तो उस समय भी उन्होंने अपनें ही स्टाइल से काम किया। इसमें कई लोगों की जानें गईं। जानकार बताते हैं कि उस समय डीजीपी गिल ने पुलिसकर्मियों को प्रोत्साहित करने के लिए रिवार्ड स्कीम चलाई, जिसमें आतंकवादियों को पकड़ने या ढेर करने वाले पुलिसकर्मियों को नकद इनाम दिए गए। इतना ही नहीं, उनके कार्यकाल में पुलिस की एक 'हिट टीम' बनाई गई, जो देश के अन्य हिस्सों में जाकर आतंकियों के खिलाफ मोर्चा लेती रही। एकबार तत्कालीन बंगाल सरकार ने प्रोटेस्ट जताया था, लेकिन इसमें शामिल कमांडो के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया। हालांकि गिल के खिलाफ मानवाधिकार के उल्लंघन के अलावा कई तरह के आरोप लगते रहे, लेकिन पंजाब में आतंकवाद को ध्वस्त करने में उनकी भूमिका रही। 29 दिसंबर 1934 को लुधियाना में जन्मे केपीएस गिल न सिर्फ आईपीएस अधिकारी थे, बल्कि एक लेखक, वक्ता, संपादक, भारतीय हाकी संघ के अध्यक्ष भी रहे। 26 मई 2017 का उनका देहांत हो गया था।

आइसीपी की स्थापना की

केपीएस गिल ने 1995 में रिटायरमेंट के बाद इंस्टीट्यूट आफ कान्फि्लक्ट मैनेजमेंट (आइसीपी) की स्थापना की और उसके पहले प्रेसिडेंट बने। गिल ने आतंकवाद विरोधी मामलों पर सरकारों को सलाह देना शुरू किया। 1997 में असम के मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत ने गिल को सुरक्षा सलाहकार के रूप में सेवाएं देने का अनुरोध किया। चूंकि उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न का मामला लंबित था, इसलिए वह सेवाएं नहीं दे सके।


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