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स्‍वतंत्रता के सारथी: पंजाब के इस शख्‍स ने तोड़ीं असमानता की बेडिय़ां, दिलाई 'समता' की आजादी

स्‍वतंत्रता के सारथी पंजाब के तरनतारन जिले के एक अधिवक्‍ता ने समाज में असमानता देखी तो इसके खिलाफ मुखर हुए और असमानता की बेडि़यों को तोड़कर समता का अधिकार दिलाया।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sun, 09 Aug 2020 02:22 PM (IST)Updated: Sun, 09 Aug 2020 02:36 PM (IST)
स्‍वतंत्रता के सारथी: पंजाब के इस शख्‍स ने तोड़ीं असमानता की बेडिय़ां, दिलाई 'समता' की आजादी
स्‍वतंत्रता के सारथी: पंजाब के इस शख्‍स ने तोड़ीं असमानता की बेडिय़ां, दिलाई 'समता' की आजादी

कपूरथला, [हरनेक सिंह जैनपुरी]। बचपन में दोस्त के साथ खेत में लगे ट्यूबवेल पर नहा रहे थे। इस बीच में जमींदार पहुंच गया। उसने कहा, ट्यूबवेल पर नहाने से पानी अशुद्ध हो गया है। पास आकर पांच थप्पड़ भी जड़ दिए। एेसा इसलिए कि वे चूंकि पिछड़े वर्ग से संबंध रखते थे। विडंबना तो यह थी कि गांव का नाम समता था, लेकिन समानता नाम की चीज नहीं थी। इस घटना ने एडवोकेट डॉक्टर संतोख लाल विर्दी की जिंदगी का रास्ता ही बदल दिया। उसी वक्त से मन में ठान लिया कि असमानता की इन बेडिय़ों को तोड़ गांव समता को ही नहीं हर गरीब व असहाय को समानता का अधिकार दिलाएंगे। किसी के साथ जात-पात, धर्म के नाम पर होने वाला अन्याय बर्दाश्त नहीं करेंगे।

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गांव समता के एडवोकेट विर्दी गरीबों के बने हमदर्द, नि:शुल्क केस लड़ दिला चुके हैं न्याय

एडवोकेट विर्दी कई सालों से दबे-कुचले और पिछड़े लोगों के लिए समानता की लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसे लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए केस लडऩे की फीस नहीं लेते हैं। अब तक 25 से अधिक लोगों के केस नि:शुल्क लड़कर उन्हें न्याय दिला चुके हैं। समाज ऐसे लोगों की पीड़ा को समझे इसलिए 40 से अधिक किताबें भी लिख चुके हैं। 'तूफानों ने जिन्हें पाला है तो भला राह की मुश्किलें हौसला क्या तोड़ेंगी', इन पंक्तियों को आत्मसार कर डॉ. विर्दी जिंदगी की नई कामयाबी हासिल कर चुके हैं।

डॉक्टर विर्दी का परिवार काफी गरीब था। दिहाड़ी करके उन्होंने बीए की पढ़ाई की। पैसे नहीं थे इसलिए वकालत करने के लिए रिक्शा चलाया लेकिन किसी के सामने हाथ नहीं फैलाए। डॉक्टर विर्दी ने जन चेतना जगाने के लिए कई आंदोलन किए। पंजाब में उन्होंने पिछड़े लोगों के संघर्ष की नींव रखी और उसे नई दिशा दी। 26 जनवरी 1974 को अनुसूचित जाति से संबंधित बच्चों को वजीफा दिलाने के लिए पंजाब के तत्कालीन शिक्षा मंत्री गुरमेल सिंह के गांव बिरका में काले झंडे लेकर उनका घेराव किया। उनके संघर्ष की जीत हुई और छठी कक्षा से वजीफा शुरू हो गया।

इमरजेंसी में दो साल रहे नजरबंद

डॉक्टर विर्दी वर्ष 1975 में आपातकाल के दौरान नजरबंद रहे। दो साल बाद 1977 में रिहा किए गए। घर में नजरबंद रहने के दौरान उन्होंने दो किताबें भी लिखी। डॉक्टर विर्दी को दर्जनों सम्मान मिल चुके है। वे कनाडा, अमेरिका, इंग्लैंड सहित 20 से अधिक देशों की यात्रा कर चुके हैं।

बेटों के नाम रखे मानव और इंसान, दोनों जज बन दिला रहे इंसाफ

डॉक्टर विर्दी के दो बेटे हैं। एक बेटे का नाम मानव और दूसरे का नाम इंसान है। दोनों के नाम के साथ जाति या गोत्र नहीं लगाया है। डॉक्टर विर्दी कहते हैं कि देश में ङ्क्षहदू, मुस्लिम, सिख, इसाई पैदा होते हैं लेकिन इंसान पैदा नहीं होते। इसलिए उन्होंने अपने बेटों के नाम मानव और इंसान रखा है। उनके दोनों बेटे जज हैं और दोनों बहुएं भी जज हैं।

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संघर्ष से बदल दी इनकी जिंदगी

1. गांव रावलपिंडी के अनुसूचित जाति के एक परिवार ने गांव के जम्मीदारों की आबादी के बीच घर खरीद लिया। संपन्न लोगों को यह नागवार गुजरा और उन्होंने घर को ताला जड़ दिया। डॉक्टर विर्दी ने अदालत में यह केस लड़ा और छह महीने में अनुसूचित परिवार का घर खुलवा दिया। जिन लोगों ने घर पर ताला लगाया था उन्हें जेल पहुंचाया।

2. फगवाड़ा के एक गांव के किसान रेशम सिंह को अधरंग होने पर परिवार वालों ने उसे घर से निकाल दिया। डॉक्टर विर्दी ने उसका केस लड़ा और अदालत से उसे जमीन और घर में जगह दिलाई।

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क्या है आर्टिकल 15

संविधान के भाग-तीन में मौजूद समता का अधिकार में आॢटकल 14 के साथ ही अनुच्छेद-15 जुड़ा है। इसमें कहा गया है, राज्य किसी नागरिक के खिलाफ सिर्फ धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेद नहीं करेगा।

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