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अद्भूत है इस शख्‍स की रिक्शाचालक से प्रिंसिपल बनने की कहानी, हौसला देती है यह दास्‍तां

भूषण पासवान की कहानी किसी बाॅलीवुड फिल्‍म सरीखी है। कभी रिक्‍शा चलाने वाला यह शख्‍स नशे में धुत रहता था और जुए में डूबा रहता था। आज वह ननकाना चैरिटेबल स्कूल के प्रिंसिपल हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 05 Sep 2018 03:01 PM (IST)Updated: Thu, 06 Sep 2018 09:08 PM (IST)
अद्भूत है इस शख्‍स की रिक्शाचालक से प्रिंसिपल बनने की कहानी, हौसला देती है यह दास्‍तां
अद्भूत है इस शख्‍स की रिक्शाचालक से प्रिंसिपल बनने की कहानी, हौसला देती है यह दास्‍तां

कपूरथला, [हरनेक सिंह जैनपुरी]। सुल्तानपुर लोधी स्थित ननकाना चैरिटेबल स्कूल के प्रिंसिपल भूषण पासवान की कहानी एकदम फिल्मी है। वह कभी रिक्शा चलाते थे। नशे की लत थी तो पूरी कमाई शराब पर उड़ा देते थे। परिवार भी उनकी इस लत से परेशान था। ऐसे विकट समय में काली बेईं का उद्धार करने वाले संत बलबीर सिंह सींचेवाल गुरु बनकर उनकी जिंदगी में आए और भूषण की जिंदगी बदल दी।

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संत सीचेवाल की प्रेरणा से शिक्षा पूरी की और आज हैं ननकाना चैरिटेबल स्‍कूल के प्रिंसिपल

दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ चुके भूषण ने न सिर्फ शराब छोड़ दी, बल्कि आगे की पढ़ाई भी शुरू कर दी। मेहनत रंग लाई और भूषण आज खुद गरीब बच्चों की जिंदगी में ज्ञान का उजियारा फैला रहे हैं। उन्होंने अब तक 750 से अधिक बच्चों को शिक्षित किया है।

 

बच्‍चों को स्‍कूल में पढ़ाते भूषण पासवान।

कभी इनकी नशे व जुए की लत से परेशान था परिवार, मां बर्तन मांज करती थी परिवार का गुजारा

पुराने दिनों को याद करते हुए बिहार के नालंदा जिले के नेपुरा गांव के मूल निवासी भूषण बताते हैं कि अब से 13 साल पहले मेरी जिंदगी ऐसी नहीं थी। मैं सुल्‍तानपुर लोधी में रिक्शा चलाता था। मुझे शराब पीने व जुआ खेलने की लत थी। पूरी कमाई शराब व जुए पर उड़ा देता था। मेरी मां कलावती लोगों के घरों में बर्तन मांज कर जैसे-तैसे परिवार का पालन-पोषण कर रही थीं। परिवार झुग्गी में रहता था।

ऐसे बदली जिंदगी की दशा व दिशा

भूषण कहते हैं कि 13 दिसंबर 2005 को संत बलबीर सिंह सीचेवाल सुल्‍तानपुर लोधी में आए। वह झुग्गियों वाले क्षेत्र में आए। उन्‍होंने झुग्गियों में रहने वाले लोगों को अपने बच्चों को पढ़ाने की प्रेरणा दी। संत सीचेवाल ने कहा कि अगर आप में से ही कोई पढ़ा-लिखा हो तो वह इन बच्चों को अच्छे ढंग से पढ़ा सकेगा। मैंने नालंदा के माफी हाईस्कूल से मैट्रिक पास कर रखी थी, इसलिए लोगों ने मेरा नाम बताया। संत सींचेवाल ने मुझसे पूछा कि क्या बच्चों को पढ़ा सकोगे। मैंने कहा, मैं वादा नहीं कर सकता, लेकिन कोशिश करूंगा।

बाबा ने समझाया तो छोड़ दी शराब

भूषण कहते हैं, इसके बाद मैंने काली बेईं नदी के किनारे शीशम के पेड़ के नीचे 12 बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढऩे लगी, लेकिन मेरी नशे की लत अभी छूटी नहीं थी। संत सीचेवाल ने इसके बारे में पूछा तो मैंने बताया कि रोजाना सुबह-शाम में दो बोतल शराब पी लेता हूं। बाबा ने मुझे समझाया कि अगर शिक्षक शराबी व जुआरी होगा तो उसका बच्चों पर कैसा प्रभाव पड़ेगा। उनके घंटों समझाने के बाद मुझे  उनकी बात समझ आ गई और मैंने शराब छोड़ दी।

 

बच्‍चों को स्‍कूल में पढ़ाते भूषण पासवान।

बाबा की प्रेरणा से शुरू की पढ़ाई

अपनी बात कहते-कहते भूषण भावुक हो जाते हैं। फिर बात को बढ़ाते हुए कहते हैं, बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते मुझमें  भी आगे पढ़ने की ललक जागी। मैंने पढ़ाई शुरू की और वर्ष 2006 में नालंदा के अलीनगर के आरलाल कॉलेज  से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। इसके बाद वर्ष 2010 में बिहार के बिहारशरीफ के अल्लामा इकबाल कॉलेज  से बीए की डिग्री भी हासिल की।

भूषण कहते हैं, इसके बाद सुल्तानपुर लोधी स्थित ननकाना चैरिटेबल स्कूल में पढ़ाना शुरू किया और फिर प्रिसिंपल भी बन गया। इस स्कूल में अब 172 बच्‍चे मुफ्त में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ये बच्चे बिहार व उत्‍तर प्रदेश आदि राज्यों से आकर सुल्तानपुर लोधी की झुग्गी झोपिडय़ों में रहने वालों के हैं। हिंदी मीडियम वाला यह स्कूल 2008 से आरंभ हुआ था।

इस तरह बढ़ा शिक्षा का कारवां

शिक्षक के तौर पर अकेले भूषण की तरफ से शुरू किए गए इस स्कूल में अब नौ अध्यापक पढ़ा रहे हैं। भूषण के पढ़ाए बच्चों में से एक रवि कुमार बीटेक कर इस समय दिल्ली में छह माह की ट्रेनिंग ले रहे हैं। अजय कुमार व राम कुमार बिहार के कृषि विभाग में नौकरी कर रहे हैं। लगभग 78 लड़के व लड़कियां बिहार और पंजाब में प्लस टू के आगे पढ़ रहे हैं। इस स्कूल में सभी बच्चों को खाना भी ट्रस्ट की तरफ से ही मुहैया करवाया जाता है। अब भूषण भी बीएड करने की सोच रहे हैं। वह कहते हैं कि अब वह खुद बीएड करेंगे। अपने स्कूल को अपग्रेड कर प्लस टू बनवाने की कोशिश करेंगे, ताकि बच्चों को अन्य स्कूलों में न जाना पड़े।

संत बलवीर सिंह सींचेवाल के साथ भूषण व अन्‍य लोग।

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संत सींचेवाल से लिया नामदान

भूषण पासवान ने संत सींचेवाल से नामदान ले लिया है और केस व दाढ़ी रख कर सिंह सज गए हैं। वह सिखों की तरह पगड़ी भी डालते हैं, लेकिन अपनी बेटी की शादी हिंदू रीति रिवाजों अनुसार ही की है। भूषण का कहना है कि संत सीचेवाल ने धर्म के मामले में उन परर कोई बंदिश नहीं लगाई है। भूषण का कहना है कि वह तो सिख धर्म भी अपनाने को तैयार थे लेकिन संत जी ने इस मामले में पूरी तरह स्वतंत्र कर रखा है। संत सींचेवाल का कहना है कि यह तुम्हारे मन व विवेक का विषय है। व्‍यक्ति किसी भी धर्म में हो कोई दिक्‍कत नहीं, लेकिन उसे सच्चा व नेक इंसान होना चाहिए।
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काफी बदल गया है भूषण : संत सींचेवाल

'' पहली बार जब मिला था तो भूषण की हालत कुछ और थी। शराब व जुए की लत के कारण इसको कोई भी पसंद नहीं करता था। आज वह अपने आप को काफी बदल चुका है। गरीब बच्चों को शिक्षित करने में सराहनीय योगदान दे रहा है।

                                                                                                              - संत बलबीर सिंह सींचेवाल।


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