मन के विकारों पर विजय पाना मुश्किल : साध्वी रितु
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान कपूरथला आश्रम में सत्संग का आयोजन किया गया।
जागरण संवाददाता, कपूरथला : भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि हजारों मनुष्यों में कोई एक मेरी अर्थात ईश्वर की प्राप्ति के लिए यत्न करता है। यत्न करने वाले योगियों में से भी कोई एक मेरे परायण होकर मुझको तत्व से जानकर मंजिल तक पहुंचता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह मार्ग इतना सहज नहीं है। यह मार्ग चाकू की धार के समान है इसलिए बहुत सतर्क होकर चलने की आवश्यकता है। जरा सी असावधानी बहुत बड़ी हानि पहुँचा सकती है। यह बात आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी रितु भारती ने दिव्य ज्योति जागृति संस्थान कपूरथला आश्रम में आयोजित सत्संग के दौरान प्रवचन करते हुए कहीं।
भक्ति मार्ग की कठिनाईयों के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने फरमाया कि जैसे कि ऊंचे पहाड़ पर चढ़ना हो, तो संकरी पगडंडियों से होकर गुजरना पड़ता है । यदि पैर फिसल गया तो सीधा नीचे खाई में जाकर गिरेंगे। ठीक ऐसे ही उत्थान यात्रा में भी कदम-कदम पर संघर्ष है। इसमें हमें हर पल अपने विकारों से युद्ध करना है। अपने व्यसनों से कुविचारों से लड़ना है। बाहरी शत्रुओं को परास्त करना फिर भी आसान है पर मन के विकारों पर विजय पाना सच में दुष्कर है। इसीलिए तो कहा है, मन जीते जग जीत है और इस मन को जीतने के लिए पूरा उत्साह और जोश चाहिए। ठंडा-ठंडा, सुस्त-सुस्त होकर चलने से बात नहीं बनेगी।
कहते हैं कि एक जीव पर चार कृपाएं होती हैं। पहली कृपा ईश्वर करते हैं मानव का चोला देकर। यही एक ऐसा चोला है, जिसमें कर्म करने की स्वतंत्रता है। मानव ज्ञान मार्ग पर चलकर स्वयं को आवागमन से मुक्त कर सकता है। दूसरी कृपा मानव पर करते हैं संत। सत्संग रूपी अमूल्य धरोहर मानव को देकर। यह ग्रन्थ हमें अपने जीवन के लक्ष्य से अवगत करवाते हैं, जो है ईश्वर को पाना और वह ब्रह्मज्ञान द्वारा संभव है। यह तीसरी कृपा पूर्ण सद्गुरु किया करते हैं लेकिन चौथी कृपा आपको स्वयं अपने पर करनी होगी और वह होगी इस ज्ञान मार्ग पर कटिबद्धता से चलने की । तभी आप मंजिल पर पहुंच पाएंगे । साध्वी रमन भारती ने अपनी मधुर वाणी से भजनों का गायन किया। अंत में प्रसाद वितरित किया गया।