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गुरु श्री नानकदेव जी का 550वां पर्व: जिसने यहां नहीं लगाई डुबकी, उसने कुछ नहीं किया

गुरु नानक की तपो स्‍थली सुल्‍तानपुर लोधी पहुंच कर पवित्र नदी काली बेईं के प्रति गहरी और अद्भूत श्रद्धा है। यहां कहा जाता है जिहनें काली बेईं नहीं नाती ओस ने कुछ नहीं कित्ता।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Fri, 08 Nov 2019 04:57 PM (IST)Updated: Fri, 08 Nov 2019 09:12 PM (IST)
गुरु श्री नानकदेव जी का 550वां पर्व: जिसने यहां नहीं लगाई डुबकी, उसने कुछ नहीं किया
गुरु श्री नानकदेव जी का 550वां पर्व: जिसने यहां नहीं लगाई डुबकी, उसने कुछ नहीं किया

सुल्तानपुर लोधी, [भूपेंदर सिंह भाटिया]। श्री गुरुनानक देव जी के तपो स्थान सुल्तानपुर लोधी में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं में काली बेईं के प्रति आस्था देखने योग्य है। यहां पहुंचने वाला हर श्रद्धालु बेईं में स्नान को उत्सुक नजर आया। गुरुद्वारा बेर साहिब के पीछे से गुजरने वाली इस पवित्र नदी में 24 घंटे श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। प्रशासन ने भी आस्था देखते हुए इसके किनारों पर विशेष रोशनी सज्जा की है, ताकि उन्हेंं इसका सुखद नजारा देखने को मिले। दिल्ली से पहली बार सुल्तानपुर लोधी पहुंचे करमजीत सिंह कहते हैं कि गुरुनानक देव जी के 550 साल पर यहां आने का सौभाग्य मिला।

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जिहनें काली बेईं नहीं नाती, ओस ने कुछ नहीं कित्ता

सुल्तानपुर का रुख करने से पहले इंटरनेट पर काली बेईं के बारे पता चला तो दिली इच्छा हुई कि उस पवित्र नदी में अवश्य स्नान करना चाहिए जहां श्री गुरुनानक देव जी ने अपने प्रवास के दौरान स्नान किया। मोगा से आए बुजुर्ग करम सिंह का कहना है कि वह लंबे समय से बेर साहिब गुरुद्वारे आ रहे हैं और बिना काली बेईं में स्नान लिए कभी नहीं लौटे। स्नान या फिर मुंह हाथ धोकर सीधे उस स्थान पर पहुंच रहे हैं, जहां गुरुनानक देव जी ने बेरी के पेड़ के नीचे तप किया था। श्रद्धालु कहते हैं, जिन्हें काली बेईं नहीं नाती, ओस ने कुछ नहीं कित्ता (जिस श्रद्धालु ने काली बेईं में स्नान नहीं किया, उसने जिंदगी में कुछ नहीं किया)।

क्यों खास है काली बेईं

सुल्तानपुर लोधी में गुरु नानक देव जी 14 साल नौ महीने 13 दिन रहे। बताया जाता है कि वे रोज काली बेई में स्नान के बाद ही प्रभु का सिमरन करते। एक बार वे स्नान करने गए और तीन दिन तक पवित्र नदी से बाहर नहीं आए। इसी नदी के तट पर उन्होंने मूल मंत्र इंक ओंकार सतनाम का सृजन किया था।

एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के 80 जवानों की पैनी नजर

भीड़ में किसी तरह की अप्रिय घटना को रोकने के लिए एनडीआरएफ व एसडीआरएफ के लगभग 80 जवान 24 घंटे काली बेईं पर पैनी नजर रखे हुए हैं। बेर साहिब से लेकर संत घाट तक इनकी छह मोटरबोट दिन-रात घूमती रहती हैं।

श्रद्धालुओं को अपनी तरफ खींचती पवित्र काली बेईं, 24 घंटे जमा रहती है श्रद्धालुओं की भीड़

एसडीआरएफ के जालंधर हेडक्वार्टर से पहुंची टीम के इंस्पेक्टर हरीश कुमार और सब इंस्पेक्टर पलविंदर सिंह का कहना है कि 1 से 15 अक्टूबर तक यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। उनकी टीम उनकी सुरक्षा को लेकर पूरी तरह तैयार हैं। टीम में चार ऐसे गोताखोर भी हैं, जो सौ फुट नीचे से लोगों को निकालने में सक्षम हैं। शाम से सुबह तक उनकी टीमें ज्यादा सतर्क रहती हैं, क्योंकि अंधेरे में घटना की आशंका ज्यादा रहती है।

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और सियासत भी...बेईं के दोनों और बंट गई संगत

गुरु नानक देव जी के पवित्र पर्व पर सियासत भी नजर आती है, क्योंकि पवित्र काली बेईं के दोनों और संगत बंटी है। इसका मुख्य कारण एसजीपीसी और पंजाब सरकार की अलग-अलग स्टेज होना है। पवित्र नदी के इस ओर पंजाब सरकार का विशाल पंडाल है जबकि दूसरी तरफ गुरुद्वारा बेर साहिब की ऐतिहासिक इमारत जहां एसजीपीसी का समागम होना है।

यहां पहुंचने वाली संगत काली बेईं के दोनों ओर समानांतर चल रहे समागमों में बंट गई है। इसको लेकर एसजीपीसी की पूर्व प्रधान बीबी जगीर कौर का कहना है कि 550वें प्रकाश पर्व पर समागम आयोजित करना एसजीपीसी की जिम्मेदारी है और उसने उसे निभाया है, जबकि पंजाब सरकार का कहना है कि इस ऐतिहासिक मौके पर पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए इंतजाम करना सरकार की जिम्मेदारी है।

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