World Disability Dayः सूबे के स्पेशल बच्चे खेलों में जीत चुके हैं कई मेडल, कभी आड़े नहीं आई दिव्यांगता
जालंधर में आनंद ने कहा कि केंद्र सरकार ने इन बच्चों के लिए कई कदम उठाए हैं। विभिन्न प्रकार की स्कीमें चलाई हैं लेकिन अभी तक राज्य सरकार इस मामले में बहुत पीछे है। बच्चे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीत कर लाते हैं लेकिन उन्हें नौकरी नहीं दी जाती।
जालंधर [अंकित/प्रियंका]। मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। यह लाइनें सूबे के स्पेशल बच्चों पर फिट बैठती हैं, जिन्होंने बीते कुछ समय में जालंधर ही नहीं बल्कि पूरे पंजाब की नाम दुनिया में रौशन किया है। इन बच्चों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल में कई उपलब्धियां प्राप्त की हुई हैं। दिव्यांगता इनके खेल के आड़े कभी नहीं आई। हर चुनौतियों को पार कर इन्होंने सफलता पाई है।
शालू : शालू अंतरराष्ट्रीय वेट लिफ्टिंग की खिलाड़ी है। इन्होंने अपनी कमी को पीछे कर दुनिया भर में अपने नाम का झंडा लहराया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चार सिल्वर मेडल अपने नाम कर चुकी हैं।
हरमनजीत सिंह : हाकी के खिलाड़ी हरमनजीत सिंह दुनिया भर में अपने शहर का नाम रोशन कर रहे हैं। इन्होंने इंटरनेशनल स्तर पर कई मेडल जीते हैं। हाकी इनके सोच में बसा है।
उदयवीर सिंह विर्क : साइकिलिंग के खिलाड़ी उदयवीर सिंह ने भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महारत हासिल की है। स्पेशल ओलंपिक में इन्होंने दो ब्रांज मेडल जीत कर नाम चमकाया है।
जसवीर सिंह विर्क : बास्केटबाल के खिलाड़ी जसवीर सिंह विर्क ने स्पेशल ओलंपिक 2019 में इंडिया को रिप्रेजेंट किया। इस दौरान उन्होंने सिल्वर मेडल जीत कर नाम रोशन किया।
आकाशदीप सिंह : क्रिकेट के खिलाड़ी आकाशदीप सिंह अपनी शारीरिक कमी को भूल कर दुनिया में आगे बढ़ रहे हैं और बाकियों के लिए एक मिसाल बन रहे हैं। इन्होंने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल जीते हैं।
दीपक शर्मा : क्रिकेट खिलाड़ी दीपक शर्मा ने राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीता है। उन्होंने कई टूर्नामेंट जीते हैं और अपने देश का नाम चमकाया है। क्रिकेट इनकी सांसों में बसता है।
इश्विंदर सिंह : फ्रेंड्स कालोनी निवासी इश्विंदर सिंह जिला सेशन कोर्ट कपूरथला में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उन्हें राज्य सरकार की तरफ से स्टेट अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। वह कराटे, बैडमिंटन, टेबल टेनिस और कराटे का खिलाड़ी हैं। वह एशिया पैसिफिक स्पेशल ओलंपिक में 100 मीटर रेस में ब्रांज मेंडल जीत चुके हैं।
इनके हौसले से आसान होगी दूसरों की राह
पवनदीप सिंह : लद्देवाली के कबीर एवेन्यू में रहने वाला 23 वर्षीय पवनदीप गवर्नमेंट कालेज आफ एजुकेशन से बीएड कर रहा है। वह थैलेसीमिया से ग्रस्त है, लेकिन खून की कमी के बाद भी निरंतर पढ़ाई जारी रखी है। इसने कोविड-19 के दौरान ब्लड की कमी झेली, लेकिन हार नहीं मानी।
यासमीन : गांव ढिलवां की रहने वाली यासमीन सिस्टमिक लुपस एरीदीमटोसस (एसएलई) की मरीज है। उसका ब्रेन ब्लाक है और दाया हिस्सा पैरालाइज्ड है। वह बीएससी नर्सिंग में पहले वर्ष की पढ़ाई कर रही है। उसकी ख्वाइश है कि वह बीएससी नर्सिंग करके मरीजों की सेवा करे।
भवनिश : गुरु गोबिंद सिंह एवेन्यू निवासी भवनिश डाउनसिंड्रोम से ग्रस्त होने के बावजूद मल्टी टैलेंटेड है। डांस, खेल, पढ़ाई आदि में राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार जीत चुका है। राष्ट्रीय स्तर पर फेस्टिवल में भी पहला स्थान हासिल किया और इलेक्शन कमीशन की तरफ से आयोजित प्रतियोगिता में भी पहला स्थान पा चुका है।
राज्य सरकार उदासीन, मेडल जीतने पर कोई पूछता भी नहीं : अमरजीत
मेंबर स्टेट एडवाइजरी बोर्ड दिव्यांगजन अमरजीत सिंह आनंद बताते हैं कि उन्होंने 1996 में स्पेशल बच्चों की देखरेख व प्रवेश के लिए संस्था बनाई थी। उन्होंने पेरेंट एसोसिएशन भी बनाई, जिसमें स्पेशल बच्चों के माता-पिता को उनकी परवरिश के बारे में जानकारी दी जाती है। वह कहते हैं कि केंद्र सरकार ने इन बच्चों के लिए कई कदम उठाए हैं। विभिन्न प्रकार की स्कीमें चलाई हैं, लेकिन अभी तक राज्य सरकार इस मामले में बहुत पीछे है। हमारे स्पेशल बच्चे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीत कर लाते हैं, लेकिन उन्हें नौकरी देना तो दूर उनका हाल-चाल भी नहीं पूछा जाता। नाम के लिए केवल 750 रुपये पेंशन दी जा रही है। 2016 में दिव्यांग बच्चों के लिए एक कानून बना। उसे भी पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है।