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एनआइटी में डिग्री पाकर खिले स्टूडेंट्स के चेहरे

13वें दीक्षा समारोह में विभिन्न विभागों के करीब 1041 स्टूडेंट्स को डिग्री देकर सम्मानित किया गया। इसमें बीटेक के 740, एमटेक के 199, एमएससी के 58, एमबीए के 12 और पीएचडी के 33 स्टूडेंट्स शामिल रहे। इनमें 25 स्टूडेंट्स को गोल्ड मेडल भी दिया गया। स्टूडेंट एकनूर ¨सह को अकेडमिक्स व अन्य गतिविधियों में बेहतरीन सफलता हासिल करने के लिए चेयरपर्सन मेडल दिया गया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 28 Apr 2018 09:31 PM (IST)Updated: Sat, 28 Apr 2018 09:31 PM (IST)
एनआइटी में डिग्री पाकर खिले स्टूडेंट्स के चेहरे
एनआइटी में डिग्री पाकर खिले स्टूडेंट्स के चेहरे

जागरण संवाददाता, जालंधर : डॉ. बीआर आंबेडकर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में शनिवार को आयोजित 13वें दीक्षा समारोह में विभिन्न विभागों के करीब 1041 स्टूडेंट्स को डिग्री देकर सम्मानित किया गया। इसमें बीटेक के 740, एमटेक के 199, एमएससी के 58, एमबीए के 12 और पीएचडी के 33 स्टूडेंट्स शामिल रहे। इनमें 25 स्टूडेंट्स को गोल्ड मेडल भी दिया गया। स्टूडेंट एकनूर ¨सह को अकेडमिक्स व अन्य गतिविधियों में बेहतरीन सफलता हासिल करने के लिए चेयरपर्सन मेडल दिया गया।

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बतौर मुख्यातिथि इसमें तकनीकी शिक्षा के अतिरिक्त सचिव डॉ. एसएस संधू ने शिरकत की। विशेष मेहमान के तौर पर एनआईटी हमीरपुर के पूर्व डायरेक्टर व आईआईटी दिल्ली से रिटायर्ड लेक्चरर डॉ. चंद्रशेखर पहुंचे। एनआइटी जालंधर के निदेशक डॉ. एलके अवस्थी ने कहा कि डिग्री इस बात का प्रतीक है कि अब आप विभिन्न क्षेत्रों में आने वाले चैलेंजिस का सामना करने के लिए तैयार हैं। रजिस्ट्रार डॉ. एसके मिश्रा, डीन स्टूडेंट वेल्फेयर डॉ. एएल सांगल, डॉ. एसपी ¨सह, डॉ. एसके सिन्हा, डॉ. अर¨वद भारद्वाज, डॉ. जीएस धालीवाल मौजूद रहे। पैकेज नहीं पैशन देखें युवा : डॉ. एसएस संधू

तकनीकी शिक्षा के अतिरिक्त सचिव डॉ. एसएस संधू ने संबोधित करते हुए कहा कि हमारे देश में युवाओं की गिनती ज्यादा है और ये हमारी जिम्मेदारी है कि युवाओं को प्रोडक्टिव बनाया जाए। अब तक आप समाज के विभिन्न मुद्दों को लेकर सरकार या समाज की आलोचना करते थे, आज डिग्री लेने के बाद आप जब फील्ड में जाओगे तो आपके पास मौका होगा उन मुद्दों को खत्म करने का। वही स्टूडेंट सफल होगा जिसके पास क्रिएटिव आइडिया होंगे, इनोवेटिव सोच होगी। 1980 में जब भारत में कंप्यूटर आए थे तो लोग कह रहे थे कि इससे लोग बेरोजगार हो जाएंगे, सारा काम कंप्यूटर पर हुआ करेगा। लेकिन आज टेक्नोलॉजी की वजह से ही रोजगार का दायरा बढ़ा है। जो समय के साथ खुद को अपग्रेड करेगा, वही सफल होगा। कंप्यूटर या टेक्नोलॉजी तो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस है जबकि आपके पास नेचुरल इंटेलीजेंस है। सभी स्टूडेंट्स अपने आप में यूनीक है। आप अपनी जॉब अपने पैशन के हिसाब से करो, ना कि सैलरी देखकर। वही काम करे तो आपके व्यक्तित्व से मेल खाता हो।

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पहली बार बेस्ट टीचर सम्मानित

एनआइटी के दीक्षा समारोह में पहली बार बेस्ट टीचर्स को भी गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया। उन्हें उनकी मेहनत, डेडीकेशन व अकेडमिक्स रिजल्ट को देखकर साल के बेस्ट टीचर्स के रुप में चुना गया। इसमें केमिस्ट्री विभाग के प्रो. बीएस कैंथ, सिविल इंजीनिय¨रग विभाग के प्रो. एसपी ¨सह, केमिकल इंजीनिय¨रग विभाग के डॉ. एस वाजपेयी, कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनिय¨रग विभाग के डॉ. हर्ष कुमार वर्मा, इंडस्ट्रियल एंड प्रोडक्शन इंजीनिय¨रग के डॉ. अनीश सचदेवा और फिजिक्स विभाग के डॉ. रोहित मेहरा शामिल रहें।

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पिता जसविंदर चार साल हॉस्टल में साथ रहे, माइलो¨मजोसिल से पीड़ित आलम ने भी पाई डिग्री

साल 2017 में बीटेक इन कंप्यूटर साइंस में 6.86 सीजीपीए हासिल करने वाले आलमजोत ¨सह बचपन से ही माइलो¨मजोसिल (रीढ़ की हड्डी की बीमारी) से पीड़ित थे। यहां पढ़ाई करते हुए कोई दिक्कत न हो इसलिए पिता जस¨वदर ¨सह चार साल उसके साथ होस्टल में ही रहे। उनके यहां रहने के कारण बिजनेस प्रभावित हो सकता था लेकिन मां गुरप्रीत कौर ने सारा बिजनेस संभाला। आज जब आलमजोत को डिग्री मिल रही थी तो पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। सभी का सलाम था आलमजोत व उसके परिवार के जज्बे को। आलमजोत ने बताया - मैं एमटैक करना चाहता हूं। विभिन्न कंपीटेटिव परीक्षाएं देने की भी तैयारी कर रहा हूं और कुछ एग्जाम दिए भी हैं। मूल रूप से लुधियाना के गिल चौक नजदीक रहने वाले आलमजोत के पिता ने बताया कि बेटा स्कूल में भी टॉपर रहा। टीचर्स के कहने पर हमने उसे इंजीनिय¨रग करने के लिए प्रोत्साहित किया। यहां हॉस्टल में उसके साथ रहते हुए उसे क्लासेस तक छोड़ता व वापस रूम में लाता। एनआइटी प्रबंधन ने काफी मदद की। इस दौरान उन्होंने मुझे लैब अटेंडेंट भी रख लिया। यहां तक कि आलम की दवाइयों का खर्च भी मैनेजमेंट ने ही दिया। वीकेंड के दौरान हम बस से ही आते जाते रहे। 23 वर्षीय आलमजोत ने कहा कि ये उनके परिवार व टीचर्स का ही प्रोत्साहन था कि आज यहां तक पहुंच पाया।


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