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श्री करतारपुर साहिब के दर्शनों के साथ पुरखों की मिट्टी से भी जुड़ रहे सिख परिवार

करतारपुर कोरिडोर से श्री करतारपुर साहिब के दर्शन करने के बाद कई सिख परिवार अपने पुरखों की मिट्टी को नमन करने पैतृक गांवों में भी जा रहे हैं।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Wed, 04 Dec 2019 02:26 PM (IST)Updated: Fri, 06 Dec 2019 10:07 AM (IST)
श्री करतारपुर साहिब के दर्शनों के साथ पुरखों की मिट्टी से भी जुड़ रहे सिख परिवार
श्री करतारपुर साहिब के दर्शनों के साथ पुरखों की मिट्टी से भी जुड़ रहे सिख परिवार

सिडनी (आस्ट्रेलिया), जेएनएन। भारत और पाकिस्तान की तरफ से श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोलने के बाद जहां सिख परिवार कॉरिडोर के माध्यम से श्री करतारपुर साहिब के दर्शन दीदार कर रहे हैं, वहीं विदेश में बसे सिख परिवार भी वीजा लेकर पाकिस्तान पहुंच रहे हैं। खास बात यह है कि वह श्री करतारपुर साहिब के दर्शन करने के बाद अपने पुरखों की मिट्टी को भी नमन करने जा रहे हैं। बंटवारे के समय पाकिस्तान से उजड़कर भारत आए कई परिवार अब विदेश में जा बसे हैं लेकिन पुरखों की मिट्टी की याद उन्हें हमेशा सताती है। इन्हीं में से एक हैं आस्ट्रेलिया के सिडनी में बसे सिख नेता अजीत सिंह निझर।

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श्री करतारपुर साहिब के दर्शन करने पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) गए अजीत सिंह इस दौरान पैतृक गांव धनूआणा चक्कर 91 भी पहुंचे। जि़ला फैसलाबाद (लायलपुर) की तहसील जड़ांवाला के इस गांव में लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया। वहां सबसे पहले वह ऐतिहासिक गुरुद्वारा शहीदगंज साहिब देखने गए तो इमारत देख भावुक हो गए। गुरुद्वारा साहिब का गुंबद चाहे आज भी वैसे ही कायम है लेकिन गुरुद्वारा के अंदर आटा चक्की व रूई की पिंजाई चल रही है।

जालंधर के आदमपुर से ऑस्ट्रेलिया जाकर बसे सिख नेता अजीत सिंह निझर (पीली पगड़ी में) परिवार के साथ पाकिस्तान स्थित अपने पैतृक गांव धनूआणा चक्कर 91 पहुंचे। उनके साथ पत्नी तरनजीत कौर (पिंक सूट में) भी थीं।

पत्रकारों से बातचीत में अजीत सिंह निझर ने बताया कि बंटवारे से पहले उनका परिवार धनूआणा चक्क 91 में रहता था। गांव में ही उनकी जमीन थी। आजादी के बाद परिवार जालंधर के आदमपुर के नजदीक महमदपुर में आ बसा। उनके दादा दीदार सिंह, पिता परगाशा सिंह, चाचा मलकीत सिंह और चाचा शिंगारा सिंह अक्सर धनूआणा गांव की बातें करते थे। बातों के दौरान दादा अकसर उदास हो जाते। कहते-बंटवारे ने हमसे हमारा सब कुछ छीन लिया और उपजाऊ जमीन को छोड़कर पूर्वी पंजाब (भारत) आना पड़ा।

बुजुर्गों का गांव देखने की इच्छा हुई पूरी

अजीत सिंह ने बताया कि भले ही वह जालंधर से ऑस्ट्रेलिया चले गए लेकिन बुजुर्गो के पैतृक गांव को देखने की इच्छा हमेशा से थी। इस बार करतारपुर साहिब के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। ऑस्ट्रेलिया से पाकिस्तान गए जत्थे में अजीत सिंह के साथ पत्नी तरनजीत कौर भी थीं। उन्होंने पश्चिमी पंजाब के ब्रॉडकास्टर मसूद मल्ली का भी विशेष तौर पर धन्यवाद किया क्योंकि पैतृक गांव घुमाने और बचपन की इच्छा पूरी करने का श्रेय उन्हीं को जाता है। बंटवारे का दर्द दिल में सहेज कर बैठे गांव धनूआणा के बुजुर्ग मोहम्मद अरश और जहूर ने अजीत सिंह के साथ उस समय की यादें साझा की। बुजुर्ग महबूब, अब्दुल हमीद और अब्दुल रहमान ने निझर सिंह को यादगार भी भेंट की।

पाकिस्तान के गांव धनूआणा चक्कर 91में एक महिला से गले मिलती हुईं  अजीत सिंह निझर की पत्नी तरनजीत कौर।

नौ सिख शहीदों की याद में बना है गुरुद्वारा शहीदगंज

गांव धनूआणा चक्कर 91 ननकाना साहिब से कुछ मील दूर स्थित है। गुरुद्वारा ननकाना साहिब पर अंग्रेजों के समर्थक महंत नरायण दास का कब्जा था। वह सरेआम सिख मर्यादा के खिलाफ चलकर सिख कौम पर जुल्म करता था। यही नहीं महंत व उसके गुर्गे गुरुद्वारा साहिब के दर्शनों के लिए आने वाली सिख बच्चियों व महिलाओं के साथ र्दुव्‍यवहार करते थे। महंत से गुरुद्वारा साहिब को आजाद करवाने के लिए हुए संघर्ष में इसी गांव के नौ सिख 20 फरवरी 1921 को शहीद हो गए थे। इन्हीं शहीद सिखों की याद में गांव में गुरुद्वारा शहीदगंज बनाया गया था।

पाकिस्तान के गांव धनूआणा चक्कर 91 में ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिब शहीदगंज की खस्ताहाल इमारत। गुरुद्वारे पर की गई नक्काशी जो अब मिट चुकी है।

सिख राजनीति में पंजाब व आस्ट्रेलिया में सक्रिय है अजीत का परिवार

अजीत सिंह का परिवार सिख राजनीति में पंजाब (भारत) और आस्ट्रेलिया में दोनों जगह सक्रिय है। अजीत सिंह सिख फेडरेशन ऑफ आस्ट्रेलिया के प्रधान रहे हैं। उनके बड़े भाई तीर्थ सिंह निझर ऑस्ट्रेलिया के शहीदी टूर्नामेंट ग्रिफ्त के मुख्य प्रधान रह चुके हैं। वह कई बार ग्रिफ्त गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के प्रधान भी बने। उनके महमदपुर रहते भाई गुरदयाल सिंह शिअद के पॉलिटिक्ल अफेयर्स समिति के सदस्य हैं।

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