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लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हजारों अनफिट वाहन

जिले की सड़कों पर दौड़ रहे हजारों अनफिट वाहन लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 26 Nov 2020 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2020 06:00 AM (IST)
लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हजारों अनफिट वाहन
लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हजारों अनफिट वाहन

सुक्रांत, जालंधर

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जिले की सड़कों पर दौड़ रहे हजारों अनफिट वाहन लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं। कंडम वाहनों की वजह से आए दिन कोई न कोई हादसा होता है और हजारों लोग अब तक इनकी वजह से या तो अपनी जिदगी गंवा चुके हैं या जीवन भर का दर्द झेल रहे हैं।

जिले में 9400 से ज्यादा ट्रक, पांच हजार से ज्यादा बसें, 17 हजार से ज्यादा ट्रैक्टर, छह लाख से ज्यादा चौपहिया वाहन व 17 हजार से ज्यादा आटो सड़कों पर दौड़ रहे हैं। नियमों के मुताबिक किसी भी वाहन की मियाद महज 15 साल होती है। हर पांच साल बाद वाहनों की फिटनेस का प्रमाण पत्र लेकर ही उसे सड़कों पर दौड़ाया जा सकता है। प्रमाण पत्र भी सिर्फ तीन बार ही मिल सकता है। लापरवाही और लालच के चलते अनफिट व कंडम वाहन सड़कों पर दौड़ रहे हैं, जो कि सड़क हादसों का कारण बनते हैं। शहर में दौड़ रहे निजी वाहनों की फिटनेस जांच निजी वर्कशाप से हो जाती है, लेकिन कामर्शियल वाहनों की फिटनेस महज कागजों तक ही सीमित होकर रह जाती है। बीते तीन साल में फिटनेस प्रमाणपत्र के लिए करीब 44 हजार फार्म परिवहन विभाग के पास आए। ज्यादातर वाहन, जिनमें सरकारी वाहन ज्यादा थे, फिट करार दिए गए। कागजों में फिट वाहन असल में अनफिट हैं। जो वाहन अनफिट हैं, उन्हें पूछने वाला कोई नहीं है और हालात तो ये हैं कि 70 के दशक से भी पुराने वाहन रोज सड़कों पर दौड़ते नजर आते हैं। कागजी कार्रवाई पर गौर किया जाए तो विभाग की तरफ से आज तक कभी अनफिट वाहन का चालान नहीं काटा गया है। न स्पीड गवर्नर और न ही लगती हैं फॉग लाइटें

सड़क सुरक्षा को देखते हुए हाईकोर्ट ने कामर्शियल वाहनों पर स्पीड गवर्नर, फाग लाइटें, पार्किंग लाइट, रिफ्लेक्टर लगाने का आदेश जारी किया हुआ है, लेकिन इसका पालन न के बराबर हो रहा है। हालांकि वाहनों पर रिफ्लेक्टर लगाने के मामले में ट्रैफिक पुलिस कुछ संजीदा दिखाई देती है, लेकिन लोग इसकी परवाह नहीं करते। हर साल पुलिस शहर में रिफ्लेक्टर लगाने के लिए अभियान चलाती और वाहनों पर लगाती भी है, लेकिन लोग खुद कभी रिफ्लेक्टर लगवाने नहीं जाते। ये है नियम

व्यवसायिक वाहनों के लिए परिवहन विभाग से फिटनेस सर्टिफिकेट लेना जरूरी होता है। इसके लिए बाकायदा फिटनेस कैंप लगाए जाते हैं। टैक्स के साथ प्रति वाहन 500 रुपये फिटनेस सर्टिफिकेट फीस भी जमा होती है। इस सर्टिफिकेट के जरिए वाहन को सड़क पर ले जाने की इजाजत होती है। जुगाड़ू तकनीक भी बनती है हादसों का कारण

अनफिट आटो रिक्शा, ट्रैक्टर ट्राली तथा जुगाड़ू वाहन हादसों का कारण बनते हैं। विभाग के पास ऐसे वाहनों का पूरा डाटा नहीं है, बावजूद ऐसे वाहन धड़ल्ले से सड़कों पर दौड़ रहे हैं। बिना रिफ्लेक्टर व लाइट के हाईवे पर दौड़ रहे ये वाहन दूसरों के लिए मौत का कारण बन रहे हैं। शहर के हाईवे पर चल रहे अधिकतर जुगाड़ू टेंपों या ट्रैक्टर ट्राली, जो सवारियां ढोते हैं, के परमिट खत्म हुए सालों बीत चुके हैं, लेकिन ये भी सड़कों पर नजर आ जाते हैं। इस समय जिले में 150 से ज्यादा जुगाड़ू टेंपो सड़कों पर चल रहे हैं, जो देहात के इलाकों में नजर आते हैं। 22 हजार के करीब ट्रैक्टर परिवहन विभाग के पास रजिस्टर्ड हैं। 45 के करीब व्यवसायिक ट्रैक्टर रजिस्टर्ड हुए हैं, लेकिन सड़कों पर इनसे कहीं ज्यादा नजर आते हैं। अभी तक ट्रैक्टर ट्राली के लिए आठ हजार के करीब लाइसेंस जारी हुए हैं, लेकिन हैरानी वाली बात तो यह है कि लाइसेंस लेने वाले ट्रैक्टर ट्राली नहीं चलाते, बल्कि उनके पास काम करने वाले चलाते हैं। पिछले एक साल में कंडम वाहनों का नहीं हुआ है चालान

बीते दो सालों में दर्जनों हादसे हुए हैं, लेकिन कंडम वाहन की वजह से लिखित में एक भी हादसा नहीं हुआ है। एक साल में कंडम वाहनों का कोई चालान नहीं हुआ। कंडम वाहन पता चलने पर भी हादसे की वजह बस, ट्रक, ट्राली ही दुर्घटना ही लिखी जाती है। क्या है नियम

-ट्रैक्टर ट्राली की फिटनेस एमवीआइ से करवानी जरूरी है।

- ट्राली के पीछे रिफ्लेक्टर लगे होने चाहिए।

- जुगाड़ू वाहन सड़क पर नहीं चलाए जा सकते

---- पुराने वाहनों पर रोक लगाए सरकार : कंबोज

आल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस जालंधर यूनिट के चेयरमैन जगजीत सिंह कंबोज ने कहा कि सरकार को पुराने और कंडम वाहनों पर रोक लगानी चाहिए। उनका कहना था कि जुगाड़ू तकनीक से सड़कों पर दौड़ने वाले वाहन दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। ऐसे वाहनों पर कार्रवाई होनी चाहिए।


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