ये हैं स्वावलंबन के सारथी, जिंदगी के मैदान में संकल्पशक्ति से जीती बाजी, खेल उद्योग के बने बादशाह
स्वावलंबन के सारथी देश के विभाजन के समय पाकिस्तान में सब कुछ छोड़ कर आए कई परिवारों ने पंजाब काे अपना ठिकाना बनाया। इसके बाद उन्होंने अपनी संकल्पशक्ति से जिंदगी के मैदान में बाजी जीती। इन लोगों ने खेल उद्योग स्थापित किया व इसके बादशाह बन गए।
जालंधर, [मनोज त्रिपाठी]। स्वावलंबन के सारथी: देश विभाजन का दर्द सीने में लेकर 75 साल पहले पाकिस्तान के स्यालकोट से जालंधर आए चुनिंदा परिवारों ने देश में खेल उद्योग की स्थापना की। ये परिवार आज बहुत से देशों में खेल उत्पादों की सप्लाई कर रहे हैं। जालंधर में 127 तरह के खेल उत्पाद तैयार करने वाले इन परिवारों ने पाकिस्तान ही नहीं चीन व ताइवान सहित तमाम यूरोपीय देशों को भी अपने पुरुषार्थ के दम पर पीछे छोड़ दिया है।
बंटवारे के बाद पाकिस्तान के स्यालकोट से आए परिवारों ने देश में स्थापित किया खेल उद्योग
विभाजन के बाद बेघर होकर जालंधर में स्थापित होने वाले ज्यादातर खेल कारोबारी व उद्योगपति खाली हाथ ही आए थे। किसी के पास रहने को छत नहीं थी तो किसी के पास दो वक्त की रोटी की व्यवस्था नहीं थी, लेकिन इन्होंने हिम्मत नहीं हारी। जालंधर के लोगों व प्रशासन ने इन्हें रहने की जगह दी और मदद की। इनमें से कुछ परिवारों ने जालंधर में अपना डेरा डाल लिया तो कुछ मेरठ चले गए। इन परिवारों ने खेल उत्पाद बनाने का कारोबार शुरू किया।
स्पार्टन स्पोर्ट्स: फुटबाल से क्रिकेट तक का सफर
पाकिस्तान से जालंधर आए वेद प्रकाश ने खेल कारोबार की जो नींव रखी, उसे आज उनकी तीसरी पीढ़ी आगे बढ़ा रही है। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान एमएस धोनी तथा क्रिस गेल जैसे महान खिलाड़ियों ने आज उस नींव को स्पार्टन के बैट से चौके-छक्के लगाकर और मजबूती दे दी है। स्पार्टन के डायरेक्टर कुणाल शर्मा बताते हैं कि दादा वेद प्रकाश सबसे पहले जालंधर आकर चमड़े के फुटबाल, वालीबाल व विभिन्न खेलों में इस्तेमाल होने वाली चमड़े की गेंदें तैयार करते थे। पाकिस्तान में भी वेद प्रकाश फुटबाल बनाने का काम करते थे।
कुणाल के पिता व दादा पाकिस्तान से महज 600 रुपये लेकर आए थे
कुणाल बताते हैं कि पिता ज्योति प्रकाश व दादा कभी-कभी बताते थे कि किस प्रकार जब वह पाकिस्तान से जालंधर आए थे तो दादा जी के पास 600 रुपये थे। उसी से यहां रहने का प्रबंध किया। बाद में कारोबार शुरू किया। दादा जी कहते थे कि शुरुआती दो साल तो बहुत संर्घष के थे। रहने को जगह नहीं थी और न ही बर्तन थे। विभाजन के दौरान कुछ कपड़े व सामान लेकर ही आ पाए थे। उसी से नए सिरे से दादा जी ने अपनी गृहस्थी जमाने का काम शुरू किया। पहले दादा जी खुद फुटबाल बनाते थे। फिर यहां के कारीगरों को उन्होंने खुद प्रशिक्षण देकर फुटबाल को हाथ से सिलना सिखाया।
उनके बेटे ज्योति प्रकाश ने इस काम को आगे बढ़ाया। धीरे-धीरे फुटबाल के साथ-साथ क्रिकेट के उत्पादों को तैयार करने का काम शुरू किया। उनके क्रिकेट के बैटों ने थोड़े ही समय में बेहतरीन स्टाइल व पंच के दम पर क्रिकेटरों के दिल में जगह बना ली।
स्पोर्टन स्पोर्ट्स में तैयार होता क्रिकेट बैट। (जागरण)
ज्योति प्रकाश ने पिता द्वारा तैयार किए जाने वाले उत्पादों को बनाने का काम बंद नहीं किया, बल्कि बाजार की मांग के हिसाब से नए-नए प्रयोग किए और 50 से ज्यादा प्रकार के खेल उत्पाद बनाने का काम शुरू कर दिया। आज उनकी फैक्ट्री में क्रिकेट के बैट के अलावा क्रिकेट में इस्तेमाल होने वाली हर प्रकार की एसेसरीज तैयार की जाती है। तीसरी पीढ़ी के कुणाल इस काम को फाइटर नामक ब्रांड को लांच करके और आगे बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं। फाइटर ब्रांड के तहत वह विभिन्न प्रकार के स्पोर्टस वियर का निर्माण करेंगे।
चीन व चाइवान को भी दे रहे टक्कर
विभाजन के बाद पाकिस्तान से दिल्ली और फिर जालंधर आकर बसे इकबाल नाथ शर्मा की तीसरी पीढ़ी ने आज खेल उद्योग में चीन व ताइवान को भी मात देनी शुरू कर दी है। इकबाल परिवार के साथ विभाजन के बाद पहले दिल्ली आकर बसे। वहां दो साल रहने के बाद जालंधर शिफ्ट हो गए। दिल्ली में उन्हें खेल कारोबार को लेकर ज्यादा उम्मीद नहीं दिखाई दी। चूंकि, उनके पास खेल उत्पाद तैयार करने का हुनर ही था।
जालंधर आने के बाद यहां उन्होंने चमड़े के फुटबाल व वालीबाल बनाने का कारोबार शुरू किया। उनके पोते सुमित शर्मा बताते हैं कि शुरुआती दौर के संघर्ष की कहानी दादा के मुंह से कई बार सुनी थी कि किस प्रकार उन्होंने खुद ही फुटबाल तैयार करते थे और फिर उसे बेचने जाते थे। जब पिता सुभाष शर्मा बड़े हुए तो उन्होंने कारोबार में हाथ बंटाना शुरू कर दिया।
वह बताते हैं कि पिता सुभाष ने फुटबाल व वालीबाल के साथ-साथ बैडमिंटन के रैकेट बनाने का काम भी शुरू किया। पहले लकड़ी के रैकेट बनते थे। उनकी काफी डिमांड थी। यहीं से उन्होंने अपना ब्रांड फिलिप्स शुरू किया। फिलिप्स के रैकेटों ने 1980 के दौर में बडा बाजार तैयार कर लिया। उन्होंने बैडमिंटन में प्रयोग होने वाली चिड़िया (शटल काक) के अलावा नेट तथा जूते भी तैयार करने शुरू कर दिए।
दादा व पिता के बाद कंपनी के एमडी सुमित शर्मा बताते हैं कि समय बदला और फुटबाल बनाने में चम़ड़े की जगह सिंथेटिक लेदर (चमड़े) ने ली। उसका भी प्रयोग किया और अपने उत्पाद तैयार किए। वहीं, इनकी कंपनी में तैयार होने वाले लकड़ी के रैकटों की मांग दुनिया भर में थी। सबसे ज्यादा डिमांड मलेशिया व सिंगापुर में थी। दादा की मृत्यु के बाद कारोबार ठप हो गया। पिता सुभाष शर्मा ने एफसीआइ की नौकरी छोड़कर खेल का कारोबार शुरू किया। सुमित ने फिटनेस उद्योग के उत्पाद तैयार करने शुरू किए। अब तीन फैक्ट्रियां हैं। अब चीन व ताइवान को मात देने के लिए बैडमिंटन के फुल कार्बन ग्रेफाइट वाले रैकेट तैयार करने शुरू कर दिए हैं।
हाकी का कमाल,इसके दम पर मचाया धमाल
विभिन्न प्रकार के खेल उत्पाद तैयार करने वाली कंपनियों की नींव रखने वाले देश राज कोहली का खानदान आज अलग पहचान बना चुका है। पाकिस्तान के स्यालकोट में वैंपायर हाकी ब्रांड को स्थापित करने वाले देशराज विभाजन के बाद भारत आकर भी अपने ब्रांड को प्रोमट करते रहे। उन्होंने जालंधर आने के बाद हाकी स्टिक निर्माण का काम ही किया। उनके बेटे रमेश चन्द्र कोहली ने भी इस कारोबार को आगे बढ़ाया। 1950 में जालंधर आने के बाद देशराज व उनके बेटे रमेश ने हाकी के साथ लकड़ी के बैडमिंटन और क्रिकेट के बैट बनाने का काम शुरू किया।
1965 के युद्ध के दौरान जब बंदूकों के लकड़ी के बट बनाने की किल्लत हुई तो कोहली परिवार ने एकजुट होकर सेना की बंदूकों के लिए बट बनाकर सप्लाई किए। उनकी अगली पीढ़ी के संजय कोहली ने हाकी स्टिक में नए प्रयोग करके रक्षक ब्रांड की हाकी को स्थापित करना शुरू किया।
संजय के बेटे सार्थक व बेटी अकांक्षा भी अब कारोबार में मदद कर रहे हैं। 1980 में शुरू किए रक्षक ब्रांड की हाकियों के दम पर संजय कोहली ने दुनिया के तमाम देशों में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने 1992 के ओलिंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करने गए खिलाड़ियों को स्पांसर किया था। इसके अलावा 2018 के कामनवेल्थ गेम्स के पांच हाकी खिलाड़ियों को स्पांसर किया। इस बार भी रक्षक ने हाकी के दो खिलाड़ियों को स्पांसर किया है।