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विलफुल डिफाल्टर्स के खिलाफ कड़े आपराधिक कानून से ही बचेंगे बैंक

जागरण संवाददाता, जालंधर : बैंकों का 70 फीसद मुनाफा प्रोवीज¨नग में एडजस्ट हो रहा है और इसकी मुख्य वजह

By JagranEdited By: Published: Mon, 25 Jun 2018 07:22 PM (IST)Updated: Mon, 25 Jun 2018 07:22 PM (IST)
विलफुल डिफाल्टर्स के खिलाफ कड़े आपराधिक कानून से ही बचेंगे बैंक
विलफुल डिफाल्टर्स के खिलाफ कड़े आपराधिक कानून से ही बचेंगे बैंक

जागरण संवाददाता, जालंधर : बैंकों का 70 फीसद मुनाफा प्रोवीज¨नग में एडजस्ट हो रहा है और इसकी मुख्य वजह देश के वे अमीर हैं, जो जानबूझ कर बैंकों का ऋण वापस नहीं कर रहे हैं। बैंकों के ऐसे विलफुल डिफाल्टर्स के खिलाफ कड़े आपराधिक कानून ही बैंकों को खराब दौर से बाहर निकाल सकते हैं। ये बातें यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस के कन्वीनर व सेवानिवृत्त बैंक मैनेजर अमृत लाल एवं बैंक यूनियन नेता आरके ठाकुर ने कही। वे खराब दौर से कैसे बाहर निकलें बैंक विषय पर सोमवार को दैनिक जागरण प्रेस कार्यालय में आयोजित जागरण विमर्श कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

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अमृत लाल एवं आरके ठाकुर ने कहा कि बैंक बेहतर परफार्म कर रहे हैं। एक वर्ष में बैंकों ने 1 लाख 59 11 हजार करोड़ का मुनाफा अर्जित किया, लेकिन एनपीए अकाउंट्स की वजह से प्रोवीज¨नग में 1 लाख 70 हजार करोड़ रुपये रखने पड़े और बैंकों को 11 हजार करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा। उन्होंने कहा कि देश के 12 कापोर्रेट समूहों पर 2 लाख 50 हजार करोड़ और 40 छोटे घरानों पर 2 लाख 25 हजार करोड़ की देनदारी है। 5 वर्ष में 1 लाख 80 हजार करोड़ रुपये तो माफ ही कर डाले गए। उन्होंने कहा कि अपने देश में जानबूझ कर बैंकों का ऋण वापस नहीं करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं होती, लेकिन पाकिस्तान में बैंक डिफाल्टर्स चुनाव नहीं लड़ सकते और चीन में तो जहाज की टिकट ही खरीद नहीं सकते। उन्होंने कहा कि देश में सरफेसी एक्ट आया और डैब्ट रिकवरी ट्रिब्यूनल भी लाया गया, लेकिन अपेक्षाकृत नतीजे सामने नहीं आ सके। पिछले 10 वर्ष में तो बैंक अपने न्यूनतम पर आ पहुंचे। अगर बैंकों के पास अगर पैसा वापस आ जाए तो लोगों को कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध हो सकेंगे, पैसा विकास पर खर्च हो सकेगा। अब तो बैंक सर्विस चार्ज लगा कर अपनी कमाई करने को मजबूर हो चुके हैं। सवाल-जवाब

-सख्त कानून के मायने क्या हैं?

जानबूझ कर बैंकों का ऋण न लौटाने वालों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज हों। अब तो ऐसे बड़े औद्योगिक घराने सैकड़ों करोड़ का ऋण लेने के बाद उसे डायवर्ट कर खुद को दिवालिया घोषित कर देते हैं। बैंक ऋण वसूली को भागादौड़ी करते हैं और डिफाल्टर मजे में रहते हैं। जब ऐसे विलफुल डिफाल्टरों पर आपराधिक मामले दर्ज होंगे तो कम से कम बैंकों का पैसा डकारने का सिलसिला तो थमेगा ही। -बैंक विलय को कैसा मानते हैं?

यह तो गलत ही हो रहा है। इसका विरोध इस कारण किया जा रहा है कि यह तो विदेशों की टेकओवर करने की रणनीति है। छोटे बैंकों का विलय कर एक ही बार में अधिकृत करने की तैयारी हो रही है। हालांकि छोटे बैंकों में प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए, ताकि उम्दा सर्विस और कार्य प्रणाली सामने आ सके। निजी बैंक और सरकारी बैंकों में अंतर बताएं?

निजी बैंकों का निचला स्टाफ सरकारी बैंकों की बजाय कम वेतन पाता है, जबकि ऊपर वाले पदों पर करोड़ तक वेतन जा पहुंचता है। सरकारी बैंकों में एक सिस्टम के तहत वेतन मिलता है। निजी बैंक ऋण हो सकता है तत्काल प्रदान कर दें, लेकिन सरकारी बैंकों की तुलना में ब्याज दर ऊंची होती है।

-सीधे जाने पर ऋण नहीं मिलता, एजेंट तत्काल मुहैया करवा रहे?

10 वर्ष पहले तक ऐसा बिल्कुल नहीं था। शर्ते पूरी करने पर ही ऋण मिलता था। अब एजेंट सक्रिय हैं, यह गलत है।


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