भगवान विष्णु की आराधना के लिए षटतिला एकादशी सात को
धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक माघ मास में किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान का दोहरा फल प्राप्त होता है। इस माह में दान स्नान व पुण्य का फल भी बढ़ जाता है।
शाम सहगल, जालंधर: धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक माघ मास में किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान का दोहरा फल प्राप्त होता है। इस माह में दान, स्नान व पुण्य का फल भी बढ़ जाता है। भगवान विष्णु की अराधना के लिए सबसे उत्तम माघ मास में मनाई जा रही षटतिला एकादशी को लेकर मंदिरों में भी व्यापक स्तर पर तैयारियां की जा रही है। बताया जा रहा है कि सात फरवरी को मनाए जा रहे षटतिला एकादशी व्रत का दोहरा फल मिलता है।
- कृष्ण पक्ष में मनाई जाएगी षटतिला एकादशी व्रत
ज्योतिषाचार्य नरेश नाथ बताते है कि सनातन धर्म में माघ मास का धार्मिक महत्व खास होता है। उन्होंने कहा कि इस माह में जहां दान, स्नान तथा हवन यज्ञ का अहम महत्व होता है वहीं, इस माह में मनाए जाने वाले षटतिला एकादशी व्रत का इंसान को दोहरा फल हासिल होता है। इस बार कृष्ण पक्ष में यह व्रत मनाया जाएगा। - यह है व्रत कथा
इस बारे में श्री मेला राम मंदिर खोदियां मोहल्ला के प्रमुख पुजारी पंडित भोला नाथ त्रिवेदी बताते है कि इस व्रत की कथा का जिक्र कई धार्मिक शास्त्रों में किया गया है। जिसके मुताबिक एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी. भगवान विष्णु की परम भक्त थी। लेकिन उसने कभी भी अन्न का दान नहीं किया था। एक बार भगवान विष्णु स्वयं भिखारी के रूप में अन्न मांगने पहुंच गए। इस पर उक्त महिला ने मिट्टी की पिडी दे दी। देह त्याग के बाद उक्त महिला को लोक में खाली कुटिया प्राप्त हुई। जब उक्त महिला ने भगवान विष्णु से सवाल किया तो उन्होंने हकीकत बता दी। इसके साथ ही उसे कहा कि देव लोक में जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं तो षटतिला एकादशी का पालना जानने के बाद ही दरवाजा खोलना। इसके बाद इस व्रत को विधिवत पूरा करने से तमाम सुविधाएं प्राप्त हो जाएंगी। तब से लेकर षटतिला एकादशी व्रत की प्रसिद्धि बरकरार है। - षटतिला एकादशी व्रत विधि
- तिल के पानी के साथ स्नान के उपरांत साफ वस्त्र पहनें
- श्री हरि विष्णु का स्मरण कर व्रत का संकल्प लें।
- काले तिलों का दान करें
- भगवान विष्णु को पंचामृत में तिल मिलाकर स्नान करवाएं
- दिन भर निराहार रहने के बाद शाम को कथा सुने षटतिला एकादशी व्रत
- सात फरवरी
- एकादशी की शुरूआत
सात फरवरी : सुबह 6.26 बजे - एकादशी की समाप्ति
आठ फरवरी : तड़के 4.47 बजे