मेरे गुरु मामा जी ने सिखाया परिश्रम करना
जब मैं स्कूल की पढ़ाई खत्म करके हटा तो मामा जी की फैक्ट्री में जाने लगा।
यूं तो मामा-भांजा के रिश्ते में अलग ही प्यार होता है, लेकिन मेरे मामा जी स्व. मोहन सिंह ने तो मामा के प्यार के अलावा जिदगी में कठिन परिश्रम एवं निरंतर कार्य करते रहने का जो मंत्र दिया, वह तो कोई गुरु ही दे सकता था। जब मैं स्कूल की पढ़ाई खत्म करके हटा तो मामा जी की फैक्ट्री में जाने लगा। वहां उनके मामा जी खुद काम करते नजर आए। एक बार तो उन्हें काम करते हुए गंभीर चोट भी लग गई थी। इसके बावजूद उन्होंने किसी को काम बंद करने को नहीं कहा और खुद ही डॉक्टर के पास चले गए। इस घटना से मामा जी का काम के प्रति समर्पण और उनका जुझारू व्यवहार सामने आया और प्रेरणादायक भी बना। तब से मैंने भी कठिन परिश्रम को ही जिदगी का मंत्र बना लिया है और निरंतर तरक्की के लिए प्रयत्नशील हूं।
- नरेंद्र सिंह सग्गू, जालंधर फोकल प्वाइंट एक्सटेंशन एसोसिएशन
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पिता ही गुरु, उन्होंने दी व्यवहार व धैर्य की शिक्षागुरु द्वारा दी गई शिक्षा जीवन भर साथ देती हैं। मेरे पिता एनके अरोड़ा पंजाब के मुख्य सचिव पद से रिटायर हुए हैं। कठिन परिस्थितियों एवं हालातों में अपना सौ फीसद देने का एक लंबा अनुभव था। इसी अनुभव के आधार पर उन्होंने मुझे संयम और धैर्य रखने की शिक्षा दी। बस इसी को जिदगी का मूल मंत्र बनाया और पिताजी गुरु की तरह हमेशा प्रेरणादायक बने रहे। पिता ने बताया कि जिदगी, हालात और व्यापार हमेशा अच्छे और बुरे हो सकते हैं, लेकिन अगर विपरीत परिस्थितियों को भी संयम और धैर्य से देखा जाए तो उनका हल जरूर निकलता है। इस मूल मंत्र को अपनी जिदगी में लागू किया तो वाकई में हर समस्या का हल निकला और हर परिस्थिति में संतुष्टि मिली।
- मनीष अरोड़ा, अध्यक्ष, स्पोर्ट्स एंड सर्जिकल कांप्लेक्स