Move to Jagran APP

दोहराया जा रहा चार साल पुराना इतिहास, आप वर्कर बोले- 2022 के नतीजे भी अलग नहीं होंगे

बीते लगभग पांच वर्ष से पार्टी से जुड़े पुराने सिपहसालार खुद को अलग-थलग मान रहे हैं और उनके असंतोष की मुख्य वजह पार्टी की बागडोर उन लोगों के हवाले कर दिया जाना है जिनका पार्टी से पुराना नाता भी नहीं है और वह राजनीति को लेकर भी जानकारी नहीं रखते।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Sat, 07 Nov 2020 01:59 PM (IST)Updated: Sat, 07 Nov 2020 02:00 PM (IST)
दोहराया जा रहा चार साल पुराना इतिहास, आप वर्कर बोले- 2022 के नतीजे भी अलग नहीं होंगे
पार्टी के पुराने लोग कहने लगे हैं कि 2022 के चुनाव में भी नतीजे चार वर्ष पुराने ही रहेंगे।

जालंधर, मनुपाल शर्मा। आम आदमी पार्टी (आप) के भीतर दोहराया जा रहा चार बरस पुराना इतिहास पार्टी के भीतर असंतोष को भड़का रहा है। बीते लगभग पांच वर्ष से पार्टी से जुड़े पुराने सिपहसालार खुद को अलग-थलग मान रहे हैं और उनके असंतोष की मुख्य वजह पार्टी की बागडोर उन लोगों के हवाले कर दिया जाना है, जिनका पार्टी से पुराना नाता भी नहीं है और वह स्थानीय राजनीति को लेकर भी कोई खास जानकारी नहीं रखते हैं। चुनावी वर्ष शुरू होने से ठीक पहले कुछ ऐसे बदलाव कर दिए गए हैं, जो पार्टी के पुराने लोगों को नागवार गुजरे हैं।

loksabha election banner

हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि अब पार्टी के पुराने लोग यहां तक कहने लगे हैं कि 2022 के चुनाव में भी नतीजे चार वर्ष पुराने ही रहेंगे और उनमें कोई ज्यादा बदलाव होता दिखाई नहीं दे रहा है। लंबे समय तक पार्टी की बागडोर संभालने वाले आप के नेता अब सक्रिय राजनीति से भी किनारा कर रहे हैं और अंदर खाते पार्टी हाईकमान के फैसलों का भारी विरोध भी किया जा रहा है। पार्टी हाईकमान पहले की भांति असंतोष को पूरी तरह से नजरअंदाज कर रही है, जिसका सीधा असर आगामी चुनावी वर्ष की गतिविधियों को प्रभावित करता नजर आने लगा है।

पार्टी के भीतर बढ़ रहे असंतोष की वजह है कि निचले स्तर पर पार्टी कैडर को मजबूत बनाने के लिए अब कोई कवायद होती नजर नहीं आ रही है। जब पुराने नेता ही खुद को नजरअंदाज समझ रहे हैं तो वह कैडर को मजबूत करने में कोई रुचि भी नहीं दिखाएंगे। बात जालंधर की जाए तो इस समय पार्टी के पुराने लगभग सभी दिग्गज घरों में ही बैठे हुए नजर आ रहे हैं और पार्टी हाईकमान के फैसलों का दबी जुबान विरोध कर रहे हैं, लेकिन सार्वजनिक तौर पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं। अब पार्टी दिग्गजों का कहना यह भी है कि अगर बागडोर बाहरी लोगों के हाथ में ही रही और पैराशूट से उतरने वाले ही चुनाव में फैसले लेते रहे तो फिर चुनाव जीतना तो दूर की बात है जमानत बचा पाना भी 2017 के चुनाव की तरह ही चुनौती बना रहेगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.