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पराली की आग बुझाने में आड़े आ रही गरीबी, किसानों पर Punjabi University की स्टडी में बड़ा खुलासा

स्टडी के मुताबिक सब्सिडी के बावजूद किसानों को कृषि उपकरण मंहगे पड़ते हैं। हैपी सीडर किसानों को 1.5 लाख रुपये में मिलता है। इसे चलाने के लिए 65 हार्स पावर के ट्रैक्टर की जरूरत पड़ती है जो छोटे किसानों की पहुंच से बाहर है।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Tue, 24 Nov 2020 10:52 AM (IST)Updated: Tue, 24 Nov 2020 10:52 AM (IST)
पराली की आग बुझाने में आड़े आ रही गरीबी, किसानों पर Punjabi University की स्टडी में बड़ा खुलासा
कर्ज के बोझ तले दबे पंजाब के किसान अतिआधुनिक उपकरणों की खरीद करने में सक्षम नहीं हैं।

जालंधर [जगदीश कुमार]। पंजाब में खेतों में धान की पराली को आग लगाने से हवा प्रदूषित हो रही है। सरकार इस साल पराली को आग लगाने के शून्य मामले करने का लक्ष्य भी हासिल नहीं कर पाई है। पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला की एक स्टडी में इसकी बड़ी वजह सामने आई है। किसानों की गरीबी इसमें आड़े आ रही है। वे अतिआधुनिक उपकरणों की खरीद करने में सक्षम नहीं हैं। इसी के साथ सरकार के पराली को खेतों में जलाने से रोकने के दावे खोखले साबित हुए हैं।

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किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के प्रदेश प्रधान सतनाम सिंह पन्नू ने कहा कि नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक फाइनेंस एंड पालिसी, नई दिल्ली, की ओर से कोरोना काल में खेतों में पराली जलाने के मामलों पर पड़ताल की गई थी। इसी के मद्देनजर पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला में डिवेलपमेंट इकोनामिक्स एंड इंनोवेशन स्टडी की गई। स्टडी के मुताबिक साल 2019 में जीरो ट्रिल ड्रिल सहित पराली प्रबंधन के लिए 10 प्रकार की मशीनें उतारी गईं थी। पराली प्रबंधन के लिए पैडी स्ट्रा चापर, आरएमबी प्लो, मल्चर, सुपर एसएमएस, कटर कम स्प्रेडर, सुपर सीडर और सुपर मास्टर पंजाब में बांटने के लिए जारी किए गए थे। किसानों को सब्सिडी पर 22854 मशीनें दी गईं। राज्य सरकार 14625 मशीनें ही मुहैया करवा पाई।

किसानों को महंगी पड़ती हैं मशीनें

स्टडी के मुताबित इन-सीटू मैनेजमेंट मशीनें सब्सिडी के बावजूद किसानों को मंहगी पड़ती हैं। हैपी सीडर किसानों को 1.5 लाख रुपये में मिलता है। इसे चलाने के लिए 65 हार्स पावर के ट्रैक्टर की जरूरत पड़ती है, जो छोटे किसानों की पहुंच से बाहर है। इसकी वजह से किसान पचास फीसद सब्सिडी के बावजूद मशीनें खरीदने में असमर्थ है। सरकार कोआपरेटिव सोसायटियों को 80 फीसद सब्सिडी पर मशीनरी मुहैया करवाती है, इसके बावजूद ज्यादातर सोसायटियों के पास इन्हें खरीदने के लिए फंड नहीं है।

सरकार किसानों पर थोप रही नीतियां

भारतीय किसान यूनियन के जिला प्रधान जसबीर सिंह लिट्टे का कहना है कि किसान पहले से ही कर्ज को बोझ तले दबा है। महंगी मशीनरी की खरीद किसानों की पहुंच से बाहर है। सरकार किसानों से बिना विचार विमर्श किए नीतियां तैयार कर उन पर थोप रही है। सरकार छोटे किसानों क पराली प्रबंधन के लिए मुफ्त मशीनरी देने की बात करती है परंतु इसका लाभ बहुत कम किसानों को मिला। सरकार खेतों से पराली उठवाने की योजना पर काम करे।

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