मुक्तसर के लेखक गुरदेव सिंह रुपाना को पंजाबी लघुकथा 'आम खास' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार
Sahitya Academy Award लेखक गुरदेव सिंह रुपाना को पंजाबी भाषा में उनकी लघुकथा आम खास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया है। वहीं फतेहगढ़ साहिब के करनैल सिंह सोमल को बाल साहित्य पुरस्कार दिया गया है।
गुरप्रेम लहरी, बठिंडा। अपने घर के लान में बैठे 85 वर्षीय गुरदेव सिंह रुपाणा को जब दैनिक जागरण के माध्यम से सूचना मिली कि सरकार ने उन्हें कहानी संग्रह 'आम खास' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार देने की घोषणा की है, तो वे भावुक हो गए। रुपाणा पांच कहानी संग्रह व चार उपन्यास लिख चुके हैं। इन दिनों वे अपना पांचवां उपन्यास 'मूर्ति' लिख रहे हैं। दिल्ली से एमए व पंजाबी कवि कादरयार (कादर बक्श) पर पीएचडी करने वाले लेखक रुपाणा दसवीं से ही लिख रहे हैं।
अवार्ड की सूचना मिलते ही वे यादों में खो गए। उन्होंने बताया कि दिल्ली के काफी हाउस में उनकी मुलाकात अकसर अमृता प्रीतम, इमरोज, शिव कुमार बटालवी व बलराज साहनी जैसे लेखकों से होती रहती थी। उस समय ही कहानी संग्रह 'आम खास' को लेकर प्लानिंग शुरू हो गई थी। उन्होंने कहा कि इस कहानी संग्रह को अवार्ड के लिए चयनित करने के लिए वे साहित्य सभा के आभारी हैं।
'गोरी' सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला उपन्यास
रुपाणा का उपन्यास 'गोरी' सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला उपन्यास है। इसके अब तक 25 संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। कहानी संग्रह 'आम खास' भी बहुत पढ़ा गया है। उन्हें दर्जनों अवार्ड मिल चुके हैं। इनमें शिरोमणि साहित्यकार अवार्ड, दो बार भारतीय साहित्य अकादमी पुरस्कार, कुलवंत सिंह विर्क कहानीकार अवार्ड व बलराज साहनी अवार्ड विशेष हैं।
प्रमुख कहानी संग्रह
आम खास
डिफेंस लाइन
इक टोटा औरत
अपनी अक्ख दा जादू
छाया
उपन्यास
गोरी
जलदेव
आसो दा टब्बर
श्रीपर्वा
बस्सी पठाना के करनैल सिंह सोमल को बाल साहित्य पुरस्कार
धरमिंदर सिंह, बस्सी पठाना (फतेहगढ़ साहिब)। फतेहगढ़ साहिब के बस्सी पठाना क्षेत्र के गांव कलौड़ में पैदा हुए व पले-बढ़े करनैल सिंह सोमल को भी अवार्ड की जानकारी दैनिक जागरण के माध्यम से ही मिली। वह इन दिनों मोहाली के फेस-6 में रहते हैं। खबर मिलते ही सोमल का परिवार खुशी से झूम उठा। 80 वर्षीय सोमल की प्रारंभिक शिक्षा गांव कलौड़ के सरकारी स्कूल से ही हुई है। बस्सी पठाना के सरकारी हाई स्कूल से दसवीं पास करने के बाद उन्होंने ग्रेजुएशन की। इसके बाद पंजाबी यूनिवॢसटी चंडीगढ़ से एमए हिंदी व एमए पंजाबी की पढ़ाई पूरी की।
पंजाब यूनिवॢसटी पटियाला से पीएचडी करने के बाद पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड में नौकरी पर लगे। लंबी सेवा के बाद वर्ष 1998 में इस विभाग के अकादमिक विंग से सहायक निदेशक पद से सेवानिवृत हुए। नौकरी के दौरान सिलेबस तैयार करते समय ही उन्हें लिखने का शौक पैदा हुआ। उन्होंने बताया कि पुरस्कार मिलने की बहुत खुशी है। कैसे मिला ये उन्हें नहीं पता। करीब चार वर्ष पहले वे कनाडा के ब्रैम्पटन में रहती अपनी बेटी के पास गए थे। पहली बार हवाई सफर किया था। वहां सौ दिन रहते हुए स्कूलों में शिक्षा का सिस्टम, बच्चों के रहने का तरीका और लोगों की जिंदगी व शहर की सुंदरता पर जो दिमाग में आया उस पर 'फूलों का शहर' किताब लिख दी थी।
दोस्त ने कहा था सरप्राइज दूंगा
सोमल ने बताया कि कुछ समय पहले उनके एक दोस्त ने उनसे किताब मांगी थी और कहा था कि उन्हेंं सरप्राइज देंगे। शायद यह पुरस्कार ही उनका सरप्राइज है। सोमल बच्चों पर आधारित 40 किताबें लिख चुके हैं। 12 किताबों में निबंध लिखे हैं। वे ज्ञानी दित्त सिंह, भाई रणधीर सिंह डूमछेड़ी और गुरबख्श सिंह केसरी की जीवनी भी लिख चुके हैं।